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१०४ जैनसाहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश लब्धिफलोपयोग्यवन्दनानुकूलव्यापारगर्भमंगलमाचरति
मोक्षमार्गस्य नेतारं भेत्तारं कर्मभूभृतां ।
ज्ञातारं विश्वतत्त्वनां वंदे तद्गुणलब्धये ॥ ____एतद्गुणोपलक्षितं समवसतावुपदिशंतं भगवंतमहदाख्यं केवलिनं तद्गुणानां नेतृत्व-भेतृत्व-ज्ञातृत्वादीनां सम्यगुपलब्धये वंदे नतोऽस्मि ।। सूत्र ॥ "सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः ।।" अत्र बहुवचनत्वात्समुदायार्थघातकत्वेन त्रयाणां समुदायो मोक्षमार्गः।"
"इति तत्त्वार्थाधिगमे मोक्षशास्त्र सिद्धान्तसूत्रवृत्तौ दशमोऽध्ययाय.।।१०।।
"मूलसंघबलात्कारगणे गच्छे गिरां शुभे ।। राजेंद्रमौलि-भट्टार्कः सागत्य पट्टराडिमां ।
व्यरचीनकुदकुदार्यकृतसूत्रार्थदीपिकाम् ।।" जहाँ तक मैंने जनसाहित्यका अन्वेषण किया है और तत्त्वार्थमूत्रकी बहुतसी टीकाओंको देखा है, यह पहला ही ग्रंथ है जिसमें तत्त्वार्थमूत्रका कर्ता 'उमास्वाति' या गृध्रपिच्छाचार्यको न लिख कर 'कुन्दकुन्द मुनिको लिखा है । यह ग्रन्थ कब बना अथवा राजेंद्रमौलिका आस्तित्व समय क्या है, इसका अभी तक कुछ ठीक पता नहीं चल सका-इतना तो स्पष्ट है कि पाप मूलसंघ-सरस्वतीगच्छके भट्टारकतथा सागत्यपट्टके आधीश्वर थे। हाँ; उक्त श्वेताम्बर टिप्परिणकार रत्नसिंहके समयका विचार करते हुए, राजेंद्रमौलिभ०का समय संभवत. १४वीं शताब्दी या उससे कुछ पहले-पीछे जान पड़ता है। मालूम नही भट्टारकजीने किस आधार पर इस तत्त्वार्थसूत्र को कुन्दकुन्दाचार्यकी कृति बतलाया है ! उपलब्ध प्राचीन साहित्य परसे तो इसका कुछ भी समर्थन नहीं होता। हो सकता है कि पट्टावली (गुर्वावलि)-वर्णित कुन्दकुन्दके नामोंमें गृद्ध पिच्छका नाम देख कर भोर यह मालूम करके कि उमास्वातिका दूसरा नाम 'गृपिच्छाचार्य' है, मापने कुन्दकुन्द
• ततोऽभवत्पंचसुनामधामा श्रीपानंदी मुनिचक्रवर्ती ॥ - प्राचार्यकुन्दकुन्दाल्यो वक्रगीवो महामतिः । • एनाचार्यों गृधपिच्छ: पवनन्वीति तन्यते । नन्दिसंपविली.।