________________
६०
जैनसाहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश
गणधर - पदपर नियुक्त किया गया । साथ ही, यह भी मालूम हुआ कि मध्यमाके इस द्वितीय समवसरण के बाद, जिसमें धर्मचक्रवर्तित्व प्राप्त हुआा बतलाया गया है।, भ० महावीरने राजगृहकी ओर जो राजा श्रेणिककी राजधानी थी प्रस्थान किया, जहाँ पहुँचते ही उनका तृतीय समवसरण रचा गया और उन्होंने सारा वर्षा काल वहीं बिताया, जिससे श्रावरणादि वर्षाके चातुर्मास्यमें वहां बराबर धर्मतीर्थ की प्रवृत्ति होती रही ।
परन्तु यह मालूम नहीं हो सका कि प्रथम समवसरण में मनुष्योंका प्रभाव क्यों रहा- वे क्यों नहीं पहुँच सके ? समवसरणकी इतनी विशाल योजना होने, हजारों देवी-देवताओं के वहाँ आकर जय जयकार करने, देवदुंदुभि बाजोंके बजने और अनेक दूसरे आश्वयके होनेपर भी, जिनसे दूर दूरकी जनता ही नहीं किन्तु पशु-पक्षी तक भी खिंचकर चले आते हैं, जृम्भकादि आस-पासके ग्रामोंके मनुष्यों तक को भी समवसरण में जानेकी प्रेरणा न मिली हो, यह बात कुछ समझ मे नही आती । दूसरे, केवलज्ञान जब दिनके चौथे पहरमें उत्पन्न हुआ था तब उस केवलोत्पत्तिकी खबर को पाकर अनेक समूहोंमें देवताओंके ऋजुकूला नदीके तट पर वीरभगवानके पास ग्राने, ग्राकर उनकी वन्दना तथा स्तुति करने - महिमा गाने, समवमरण में नियत समय तक उपदेशके होने तथा उसे सुनने आदि सब नेग - नियोग इतने थोड़े समय में कैसे पूरे हो गये कि भ० महावीरको संध्याके समय ही विहारका अवसर मिल गया ? X तीसरे, यह भी मालूम नहीं हो सका कि केवलज्ञानकी उत्पत्तिमे पहले जब भ० महावीर
* देखो, मुनिकल्याण विजयकृत 'श्रमण भगवान महावीर पृ० ४८ से ७३ । + अमर-रायमहिश्रो पत्तो धम्मवरचक्कवट्टित्तं ।
बीयम समवसरणे पावाए
मज्झिमाए उ 11
- ग्राव० नि० ४५० पृ० २२६
+ देखो, उक्त 'श्रमण भगवान महावीर पृ० ७४ मे ७८ ।
X स्थानकवासी श्वेताम्बरोंमें केवलज्ञानका होना १० मीकी रात्रिको माना गया है ( भ० महावीरका आदर्श जीवन पृ० ३३२ ) अतः उनके कथनानुसार भी उस दिन संध्या समय विहारका कोई अवसर नही था ।