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६२ जैनसाहित्य और इतिहास विशद प्रकाश अधिक रहा है-उसके काव्योंका मूलके साथ मेल बहुत कम है । अध्यात्म-कथन होनेपर भी जगह जगहपर स्त्रीका अनावश्यक स्मरण किया गया है और अलंकाररूपमें उसके लिये उत्कंठा व्यक्त की गई है, मानो सुख स्त्रीमें ही है। इस ग्रंथका टीकासहित हिन्दी अनुवाद ब्रह्मचारी शीतलप्रसादजीने किया है और वह प्रकाशित भी हो चुका है।
५, बारस-अगुवेक्खा (द्वादशानुप्रेक्षा)-इसमें १ अध्र व (अनित्य), २ अशरण, ३ एकत्व, ४ अन्यत्व, ५ संसार, ६ लोक, ७ अशुचित्य, ८ पासव, ६ संवर, १० निर्जरा, ११ धर्म, १२ बोधिदुर्लभ नामकी बारह भावनाओंका ६१ गाथाओंमें सुन्दर वर्णन है। इस ग्रंथकी 'सव्वे वि पोग्गला खलु' इत्यादि पांच गाथाएँ (नं० २५ से २६) श्रीपूज्यपादाचार्य-द्वारा, जो कि विक्रमकी छठी शताब्दोके विद्वान् हैं, सर्वार्थसिद्धि के द्वितीय अध्यायान्तर्गत दशवें सूत्रको टीकामें 'उक्तं च' रूपसे उद्धृत की गई है।
६. दसणपाहुड-इसमें सम्यग्दर्शनके माहात्म्यादिका वर्णन ३६ गाथाओंमें है और उससे यह जाना जाता है कि सम्यग्दर्शनको ज्ञान और चारित्रपर प्रधानता प्राप्त है । वह धर्मका मूल है और इसलिये जो सम्यग्दर्शनमे-जीवादि तत्त्वोंके यथार्थ श्रद्धानसे-भ्रष्ट है उसको सिद्धि अथवा मुक्तिकी प्राप्ति नहीं हो सकती ।
७. चारित्तपाहुड-इम ग्रंथकी गायासंख्या ४४ और उसका विषय सम्यक् चारित्र है । सम्यक्चारित्रको सम्यक्त्वचरण और संयमचरण मे दो भेदोंमें विभक्त करके उनका अलग अलग स्वरूप दिया है और संयमचरगाके सागार अनगार ऐसे दो भेद करके उनके द्वारा क्रमशः श्रावकधर्म तथा यतिधर्मका अतिसंक्षेपमें प्रायः सूचनात्मक निर्देश किया है।
८. सुत्तपाहुड--यह ग्रंथ २७ गाथात्मक है। इसमें सूत्रार्थकी मार्गणाका उपदेश है-आगमका महत्व ख्यापित करते हुए उसके अनुसार चलनेकी शिक्षा दी गई है । और साथ ही सूत्र (पागम) की कुछ बातोंका स्पष्टताके साथ निर्देश किया गया है, जिनके संबंध उस समय कुछ विप्रतिपत्ति या गलतफहमी फली हुई थी अथवा प्रचारमें प्रारही थी।
६. बोधपाहुड-इस पाहुड़ का शरीर ६२ गाथामोंसे निर्मित है। इनमें