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८२ जैनसाहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश ११ प्राचार्य ग्यारह अंगों और उत्पादपूर्वादि दश पूर्वोके पारगामी तथा शेष चार पूर्वोके एक देश धारी हुए । - धर्मसेनके बाद नक्षत्राचार्य, जयपाल, पाण्डुस्वामी, ध्र वसेन और कंसाचार्य ये क्रमशः पांच आचार्य ग्यारह अंगोंके पारगामी और चौदह पूर्वोके एक देशधारी हुए।
कंसाचार्यके अनन्तर सुभद्र, यशोभद्र,यशोबाहु और लोहाचार्य ये क्रमश: चार प्राचार्य आचारांगके पूर्णपाठी और शेष अंगों तथा पूर्वोके एक देशधारी हुए * ।
लोहाचार्यके बाद सर्व अंगों तथा पूर्वोका वह एकदेशश्रुत जो प्राचार्यपरम्परासे चला आया था धरसेनाचार्यको प्राप्त हुआ । धरसेनाचार्य अष्टाग महानिमित्तके पारगामी थे । वे जिस समय सोरठ देशके गिरिनगर (गिरनार) पहाड़की चन्द्र-गुहामें स्थित थे उन्हें अपने पासके ग्रन्थ (श्रुत) के व्युच्छेद हो जानेका भय हुआ, और इसलिये प्रवचन-वात्सल्यसे प्रेरित होकर उन्होंने दक्षिणा-पथके आचार्योंके पास, जो उस समय महिमा नगरीमें सम्मिलित हुए
* यहां पर यद्यपि द्र मसेन ( दुमसेणो ) नाम दिया है परन्तु इसी पथके 'वेदना' खंडमें और जयधवलामें भी उसे ध्र वसेन नामसे उल्लेखित किया हैपूर्ववर्ती ग्रंथ 'तिलोयपणयत्ती' में भी ध्र वसेन नामका उल्लेख मिलता है । इससे यही नाम ठीक जान पड़ता है। अथवा द्रुमसेनको इसका नामान्तर समझना चाहिये । इन्द्रनन्दि-श्रुतावतारमें द्रुमसेन नामसे ही उल्लेख किया है।
अनेक पट्ठावलियोंमें यशोबाहुको भद्रबाहु (द्वितीय) सूचित किया है और इन्द्रनन्दि-श्रुतावतार में 'जयबाहु' नाम दिया है तथा यशोभद्रकी जगह अभयभद्र नामका उल्लेख किया है। ' * इन्द्रनन्दि-श्रुतावतारमें इन प्राचार्योको शेष अंगों तथा पूर्वोके एक देश धारी नहीं लिखा, न धर्मसेनादिको चौदह पूर्वोके एकदेश-धागे लिखा और न विशाखाचार्यादिको शेष चार पूर्वोके एक देश-धारी ही बतलाया है । इसलिये धवलाके ये उल्लेख खास विशेषताको लिए हुए हैं और बुद्धि-ग्राह्य नथा समुचित मालूम होते हैं। _ 'महिमानगड' नामक एक गांव सतारा जिले में है (देखो, स्थलनामकोश'), संभवतः यह वही जान पड़ता है।