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४४ जैनसाहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश वजहसे प्रचलित वीरनिर्वाणसम्वत्में १८ वर्षकी वृद्धिका विधान किया है वह भी इस हिसाबसे ठीक नहीं है।
उपसंहार यहाँ तकके इस सम्पूर्ण विवेचन परसे यह बात भले प्रकार स्पष्ट हो जाती है कि आज कल जो वीरनिर्वाणसम्वत् २५६० प्रचलित है वही ठीक है-उसमें न तो बैरिष्टर के० पी० जायसवाल जैसे विद्वानोंके कथनानुसार १८ वर्षकी वृद्धि की जानी चाहिए और न जाल चाटियर जैसे विद्वानोंकी धारणानुसार ६० वर्ष की अथवा एस० वी० वेंकटेश्वरकी सूचनानुसार ६० वर्षकी कमी ही की जानी उचित है। वह अपने स्वरूपमें यथार्थ है। हाँ, उसे गत सम्वत् समझना चाहिये-जैनकाल-गणनामें वीरनिर्वाणके गतवर्ष ही लिये जाते रहे है-ईसवी सन् प्रादिकी तरह वह वर्तमान सम्वत्का द्योतक नहीं है। क्योंकि गत कार्तिकी अमावस्याको शकसम्वत्के १८५४ वर्ष ७ महीने व्यतीत हुए थे और शकसम्वत् महावीरके निर्वाणसे ६०५ वर्ष ५ महीने बाद प्रवर्तित हुआ है, यह ऊपर बतलाया जा चुका है। इन दोनों संख्याओंके जोड़नेमे पूरे २४६० वर्ष होते हैं । इतने वर्ष महावीरनिर्वाणको हुए गत कार्तिकी अमावस्याको पूरे हो चुके हैं और गत कार्तिकशुक्ला प्रतिपदासे उसका २४६१ वाँ वर्ष चल रहा है । यही आधुनिक सम्वत्-लेखन पद्धतिके अनुसार वर्तमान वीरनिर्वाण सम्वत् है। और इसलिये इसके अनुसार महावीरको जन्म लिये हुए २५३१ वर्ष बीत चुके हैं और इस समय गत चैत्रशुक्ला त्रयोदशी (वि० सं० १९६० शक सं० १८५५ ) से, प्रापकी इस वर्षगांठका २५३२ वाँ वर्ष चल रहा है और जो समाप्तिके करीब है। इत्यलम् ।
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