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जैनसाहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश निर्वाणको प्राप्त हुए उसी रात्रिको उजयिनीमें चंडप्रद्योतका पुत्र 'पालक' राजा रसज्याभिषिक्त हुआ, इसका राज्य ६० वर्ष तक रहा, इसके बाद क्रमश: नन्दोंका राज्य १५५ वर्ष, मौर्योंका .१०८, पुष्यमित्रका ३०, बलमित्र-भानुमित्रका ६०, नभोवाहन (नरवाहन) का ४०, गर्द भिल्लका १३ और शकका ४ वर्ष राज्य रहा । इस तरह यह काल ४७० वर्षका हुा । इसके बाद गर्दभिल्ल के पुत्र विक्रमादित्यका राज्य ६० वर्ष, धर्मादित्यका ४०, भाइल्लका ११, नाइल्लका १४ और नाहडका १० वर्ष मिलकर १३५ वर्षका दूसरा काल हुा । और दोनों मिलकर ६०५ वर्ष का समय महावीरके निर्धारण वाद हुप्रा । इसके बाद शकोंका राज्य और शंकसम्वत्की प्रवृत्ति हुई. ऐमा बतलाया है।' यही वह परम्परा और कालगणना है जो श्वेताम्बरोंमें प्रायः करके मानी जाती है। - । परन्तु श्वेताम्बर-सम्प्रदायके बहुमान्य प्रसिद्ध विद्वान् श्रीहेमचन्द्राचार्यके 'परिशिष्टपर्व' से यह मालूम होता है कि उजयिनीके राजा पालकका जो समय (६० वर्ष) ऊपर दिया है उसी समय मगधके सिंहासन पर श्रेगिकके पुत्र कूणिक ( अजातशत्रु ) और कूरिणकके पुत्र उदायीका क्रमशः राज्य रहा है । उदायीके नि:सन्तान मारे जाने पर उसका राज्य नन्दको मिला। इसीमे परिशिष्टपर्वमें श्रीवर्धमान महावी रके निरिणसे ६० वर्षके बाद प्रथम नन्दराजाका राज्याभिषिक्त होना लिखा है । यथा:---
अनन्तरं वर्द्धमानस्वामिनिर्वाणवासरात ।
गतायां पष्ठिवत्सर्यामेप नन्दोऽभवन्नपः ॥६-२४३।। इसके बाद नन्दोंका वर्णन देकर, मौर्यवंशके प्रथम राजा सम्राट चन्द्रगुप्तके राज्यारम्भका समय बतलाते हुए, श्रोहेमवन्द्राचार्य ने जो महत्वका श्लोक दिया है. वह इस प्रकार है:
एवं च श्रीमहावीरमुनर्वर्षशते गते ।
पंच पंचाशदधिके चन्द्रगुप्तोऽभवन्नृपः ॥८-३३६|| - इस श्लोक पर जालं चाटियरने अपने निर्णयका ख़ास प्राधार रक्खा है 'और डा० हर्मन जेकोबीके कथानुसार इसे महावीर-निर्वाणके सम्बन्धमें अधिक "संगत परम्पराका सूचक बतलाया है। साथ ही, इसकी रचना परसे यह अनुमान किया है कि या तो यह श्लोक किसी अधिक प्राचीन ग्रन्थ परसे ज्योंका त्यों