Book Title: Hindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 4
Author(s): Shitikanth Mishr
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 15
________________ हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास के प्रति निष्ठावान नहीं थे। वे अपने स्वार्थों से प्रेरित होते थे। इसलिए साम्राज्य के पतन् और देश के पराधीन होने पर रोने वाला कोई नहीं था। प्लासी में अंग्रेजों की विजय भारत के इतिहास में महत्त्वपूर्ण मोड़ लाने वाली घटना थी। १७६४ ई० में बक्सर के युद्ध में कंपनी की विजय ने मुगलसम्राट और अवध के नवाब को मटियामेंट कर दिया। मुगलों के स्थान पर कम्पनी के शासन की दृढ़ नीव स्थापित हुई। (ख) मराठा शक्ति का उत्थान और पतन छत्रपति शिवाजी की मुत्यु के पश्चात् वहाँ भी पारिवारिक विग्रह प्रारंभ हो गया। पेशवा शक्तिशाली सम्राट हो गया। मुहम्मदशाह के समय पेशवा ने दिल्ली पर आक्रमण किया। इन लोगों ने निजाम हैदराबाद और नवाब भोपाल को पराजित किया। साहू ने पारिवारिक षड़यंत्र से मुक्ति हेतु बालाजी को पेशवा बनाया जो धीरे-धीरे वास्तविक शासक हो गया। इसने बीस वर्ष तक शासन किया और गुजरात, मालवा और बुंदेलखण्ड पर मराठों का प्रभुत्व स्वीकार करने पर मुगलसम्राट को विवश कर दिया। सन् १७४९ में शाहू की मुत्यु के समय बालाजी बाजीराव पेशवा था। इसके समय में पानीपत का तृतीय युद्ध हुआ। इससे मराठा शक्ति को धक्का लगा। इनके कमजोर पड़ने से कंपनी को अपनी टाँग फैलाने का सुनहरा अवसर मिला। इस युद्ध में प्रमुख मराठा सरदार मारे गये और रघुनाथ राव ने मराठा-स्ववंत्रता को कंपनी के हाथों गिरवी रख दिया। १७६१ में बाजीरावकी मुत्यु के पश्चात् उसका पुत्र माधवराव पेशवा बना और रघुनाथराव परिवार का वरिष्ट सदस्य होने के कारण प्रति-शासक नियुक्त हुआ था। इसने स्वार्थान्ध होकर निजाम से संधि कर ली, मैसूर के नवाब हैदरअली और अंग्रेजों से संपर्क साधा परन्तु १७६८ के युद्ध के पश्चात् उसे कैद करके पूना भेज दिया गया। सन् १७७२ में पेशवा माधवराव की मुत्यु हो गई। बाद के तीन आंग्ल-मराठा युद्धों से मराठा शक्ति छिन्नभिन्न हो गई। मराठा साम्राज्य पेशवा, भोसले, सिन्धिया, होल्कर और गायकवाड़ राज्यों में विभक्त होकर अंग्रेजों का आश्रित हो गया। इस प्रकार भारत में स्वदेशी साम्राज्यस्थापना का स्वप्न हमेशा के लिए समाप्त हो गया। युगल साम्राज्य और मराठा साम्राज्य दोनों एक ही प्रकार की अन्तर्भूत कमजोरियों के शिकार हुए। मुगल सरदारों की तरह मराठा सरदार भी क्रमशः स्वतंत्र शासक बन गये और परस्पर युद्ध करने लगे। दोनों की राजस्व प्रणाली और प्रशासनिक व्यवस्था भी प्राय: एक जैसी थी। सामंत विलासी थे और किसानों का अधिकाधिक शोषण करते थे। उदीयमान ब्रिटिश सत्ता का मुकाबला वे अपने राज्य को आधुनिक राज्य में रूपान्तरित करके ही कर सकते थे, परन्तु वे ऐसा करने में असमर्थ रहे। जैसे अंतिम मुगल सम्राटों की वास्तविक शक्ति उनके बजीरों में संकेन्द्रित थी, वैसे ही मराठों में पेशवा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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