________________
हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
मुगलसाम्राज्य-उस समय दिल्ली में मुगल सम्राट मुहम्मद शाह का शासन था। दिल्ली की अकूत संपदा पर लोभ करके लूटने के इरादे से नादिरशाह ने बर्बर आक्रमण किया। विशाल सेना के बावजूद मुहम्मदशाह की पराजय हुई। नादिरशाह ने भरपेट दिल्ली को लूटा और कत्ल आम किया। नागरिकों को ही नही लूटा बल्कि प्रांतों के सूबेदारों से भी धन वसूला गया। मुगल साम्राज्य का राजचिन्ह छीन लिया गया। सारांश यह कि मुगल साम्राज्य की रही-सही मान मर्यादा को इस आक्रमण ने नेस्तनाबूद कर दिया। नादिरशाह ने अपने लड़के नसरूल्लाह का विवाह औरंगजेब के पौत्र अजीजुद्दीन की पुत्री से किया और अपार संपदा लेकर वापस लौट गया। इसके आक्रमण का इस देश की राजनीति और इतिहास पर दूरगामी प्रभाव पड़ा।
मुहम्मदशाह की मृत्यु के पश्चात् सन् १७४८ ई० में उसका पुत्र अहमदशाह गद्दी पर बैठा। यह 'रंगीले' से भी अधिक रंगीनमिजाज था। इसका हरम एक मील में फैला हुआ था, जहाँ वह दिन-रात रंगरेलियों में मशगूल रहता था। उसके नाम पर उसकी माँ कुदसिया बेगम शासन करती थी । दरबारी - षड़यत्र चल रहे थे। उसके वजीर गाजीउद्दीन ने सामंतो को मिला कर उसे पदच्युत कर दिया और उसे अंधा करके सलीमगढ़ में कैद कर दिया। १७५४ ई० में जहाँदारशाह के पुत्र आलमगीर 'सानी' को गद्दी पर बैठाया गया।
आलमगीर (द्वितीय) के समय दिल्ली पर पुनः अहमदशाह अब्दाली का भयंकर आक्रमण हुआ। १७५६ ई० अब्दाली ने भारत पर चौथा आक्रमण किया । बादशाह पराजित हुआ। अब्दाली ने भी दिल्ली को बेरहमी से लूटा। अब्दाली के आक्रमण और देशी सामंतो के स्वच्छन्द हो जाने के कारण मुगल साम्राज्य सिकुड़ कर दिल्ली के आसपास तक सीमित हो गया। आलमशाह की स्थिति साहू की मुत्यु के पश्चात् मराठों के छत्रपति जैसी थी। इसने अपना सारा राजकाज अपने वजीर इमादुलमुल्क को सौंप दिया था। यह बेईमान लालची और उच्छृंखल था। अब्दाली ने जाते समय नजीबुद्दौला को अपना पूर्णाधिकारी तथा मुगलसम्राट का बख्शी बनाया, इस प्रकार सम्राट् का वास्तविक अधिकार-सुख नजीब भोगने लगा। इससे वजीर इमादुलमुल्क नाराज हुआ और उसने १७५९ में सम्राट् को षड़यंत्रपूर्वक मरवा डाला । सम्राट् का पुत्र अलीगौहर उस समय पटना में था। सन् १७५९ में उसने शाहआलम की उपाधि के साथ सम्राट् की गद्दी सभॉली लेकिन १७७९ तक वह दिल्ली नही आया। इधर दिल्ली पर मराठों ने प्रभुत्व जमा लिया और सम्राट् को दिल्ली बुलाया। सन् १७६५ तक वह वजीर के भय के कारण अवध के नवाब शुजाउद्दौला के यहाँ शरणार्थी था। इलाहाबाद की संधि के अनुसार वह अंग्रेजों के संरक्षण में चला गया। अंग्रेजों ने उसे २६ लाख रूपया वार्षिक पेन्शन दिया और बदले में बंगाल, बिहार और उड़ीसा की दीवानी का अधिकार प्राप्त कर लिया।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org