Book Title: Haribhadriyavashyakavrutti Tippanakam
Author(s): Hemchandrasuri Acharya
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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'अभ्युत्थितवाटाप्यन्ते, यत् पुनराला वाटिका गाथाः केना
आव० पहावण'त्ति (५४०-१७) प्राबल्यधावनं च प्रकर्षधावनं च ते उद्धावनप्रधावने गच्छप्रयोजनापेक्षितया करोति गणा
कृतिकर्महारि० विच्छेदक इति, शेष निगदसिद्धं । 'अभ्युत्थितवन्दन'मिति (५४१-१) अभ्युत्थितवन्दनकं नाम यदेवमेव विनयार्थ हा विचार टीप्पणं गुरुभ्यो दीयते तदेवम्भूतमेव वन्दनकं मात्रादीनि न दाप्यन्ते, यत् पुनरालोचनास्वाध्यायप्रस्थापनानुयोगश्रवणादिष्वा
भाव्यं तत्तान्यपि सागारिकाद्यभावे दाप्यन्त एवेति भावः। द्वात्रिंशद्वन्दनकदोषप्रतिपादिका गाथाः केनाप्यभिप्रायेण वृत्ति. ॥८६॥
१ आयरकरणं आढा तबिवरीअं अणाढि होइ । दवे भावे थद्धो चउभंगो दव्वओ भइओ ॥ ५४॥ पब्बिद्धमणुवयारं जं अपितोऽ. |णिजंतिओ होइ । जत्थ व तत्थ व उज्झइ कयकिच्चो वक्खरं चेव ॥ ५४॥ संपिडिए व वंदइ परिपिंडिअवयणकरणओ बावि । टोलब उप्फिडंतो ओसक्कऽहिसकणे कुणइ ॥ ५६ ॥ उवगरणे हत्थंमि व चित्तु निवेसेइ अंकुसं विति । ठिअबिट्टरिंगणं जंतं कच्छमरिंगिअं जाण ॥ ५७ ॥ उटुंतनिसीअंतो उन्वत्तइ मछउव्व जलमज्झे । बंदिउकामो वऽन्नं झसुख परिअत्तए तुरिअं ॥५८ ॥ अप्पपरपत्तिएणं मणप्पओसो अ वेइआपणगं । तं पुण जाणूवरि जाणुहिट्ठओ जाणुबाहिं वा ॥ ५९॥ कुणइ करे जाणुं वा एगयरं ठवइ करजुअलमज्झे । उच्छंगे || करइ करे भयंति नितहणाईअं॥६०॥ भयइ व भइस्सइति व इअ वंदइ होरयं निवेसंतो। एमेव य मित्तीए गारवसिक्खाविणीओऽहं ॥६१॥
नाणाइति मुत्तुं कारणमिहलोगसाहगं होइ । पूआगारवहेउं नाणग्गहणेऽवि एमेव ॥६२ ॥आयरतरएण हंदि वंदे ण तेण पच्छ पणइस्से। k| काहिइ न पणयभंगं वंदणये मुल्लभावोऽयं ॥ १३॥ हाउं परस्स दिलुि वंदंतो तेणिअं हवइ एअं । तेणोविव अप्पाणं गूहइ ओभावणा मा मे ||
॥ ६४ ॥ आहारस्स उ काले नीहारस्सावि होइ पडिणीअं । रोसेण धमधमंतो जं वंदइ रुटमेअं तु ॥ ६५॥ नवि कुप्पसि न पसीअसि कट्ठसिवो चेव तजिअं एअं । सीसंगुलिमाईहि व तज्जेइ गुरुं पणिवयंतो ॥ ६६ ॥ वीसंभट्ठाणमिणं सब्भावजढे सदं हवइ एअं। कवडंति
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