Book Title: Hansdutam
Author(s): Rupgoswami
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 8
________________ 448 काव्यसंग्रहः। पिचन् नम्बु थाम मिहिरदुहितुर्वारि मधुरं मृणाली धानो हिमकरकलाकोमलपचः / क्षवं दृष्टस्तिष्ठन् निविड़विटपे शाखिनि सखे ! ' सुखेन प्रस्थान रचयतु भवान् कृष्णिनगरे / 14 // बलादाक्रन्दन्ती रथपथिकमक्रूरमिलितं विदूरादाभीरीततिरनुययौ येन रमपम् / . तमादौ पन्यानं रचय चरितार्था भवतु ते . विरामन्ती सर्वोपरि परमहंसखितिरियम् // 15 // अकस्मादस्माकं हरिरपहरबंशकचयं यमारूढ़ो गूढप्रणयलहरों कन्दलषितम् / * मिति / खे! भवान् वाम्बवत स्यामं रणं मिहिर. दुहितः बनायाः मधुरं वारि जलं पिबन् सिमकारका चन्द्रका नहत कोषाः रच: प्रभाः वामां ताः सुपाडीः मन्नानः क्ष वृष्टः निविड़विटपे घनशाले शानि वृक्षे तिन् वृष्णिन मरे बदुपयों सन प्रस्थान रमत करो बगदिति / सात वेगात् नियनेब: गिदूरात बार दन्ती रदतो बाभीरीतनिः मोपनारीहतिः बेन पथा रचधिक रन बान्नम् चाकरमविनम् चक्ररेण स तं रमसान्तं कर मिव बनुयौ चतुवाति , साटो प्रथम पन्ध रपव ना, है जब सर्वोपरि सर्वेषाम् उपरि विराजन्नी सत्को वर्षमानेति भावः र परमविनिः परमामय योनिमा खितिः पाला बोहा परिता गफमा भवन तन्माद नगरिति भावः / / पवादिति। बाडम्ब ! कनन ! हरिः यः . बार मा बसाक व एकचयं सनसन बार पोरबन

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