Book Title: Hansdutam
Author(s): Rupgoswami
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 20
________________ काव्यसंग्रहः / विल मा रोदीरिक्ष सखि ! पुनर्यास्यति हरि सवापानक्रीड़ा निविड़परिचयापहिलताम् / - इति वैरं यस्यां पथि पथि मुराररभिनवप्रवेशे नारीवा रतिरमसजल्या ववनिरे // 38 // ....... पञ्चभिः कुलकम् / सखे ! साचाहामोदरवदनचन्द्रावकसनस्क रत्म मानन्दप्रकरलहरीचुम्बितधियः / सुहस्तवामीरीसमुदयशिरोग्यम्तविपदस्तवाश्योरानन्द विदधति पुरा पौरवनिताः // 4 // भावनि विसरि, प्रबधन पझोः बभोर्षे परिजनानां विधापन म बोषि भावयति, अनः बारात ग पसायानि समापवरषि नीरवान्निः मा तरवानाम् उत्तमा वडा नख रति भाव: नव वयोवीना मेवराजीनां पधितां गोचरमा यो पुनर्नवमप भाषेवर्षः / 18. जिविवि / प!ि जिन बचा बचा पा रोडोन रितिसचिन नगरे हरिः समः नापा श्रीड़या बराबण्या निविड़ा सान्द्रा बानो बा परियो अंग बोति भावः नसा परिना पापल्यता नास्थति परमेव बोलिरको भविष्यवानि भाय। सरारे: सणसवभिनव जो वक्षा परि तील पधि पधि प्रतिपचं नारीच बरं चन्द रबिरबन रामायग्रेन बसाः पापा वगिरे भवचिवः / पापभिसाम् / 28 // बरे रनि। बरे! वा प्रों क्षात् प्रसाकीमतका रामोदरपदमपन्द्रस बरसान्द्रख पारनेन बसोकनेन सरन्

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