Book Title: Gunsthan Siddhanta ek Vishleshan Author(s): Sagarmal Jain Publisher: Parshwanath Shodhpith VaranasiPage 14
________________ गुणस्थान सिद्धान्त का उद्भव एवं विकास सुरणारयेसु चत्तारि होति तिरियेसु जाण पंचेव । मणुसगदीएवि तहा चोद्दसगुणणामधेयाणि ।। ___ - मूलाचार ( पर्याप्त्यधिकार ), पृ० २७३-२७९, मणिकचन्द दिगम्बर ग्रन्थमाला (२३), बम्बई, वि० सं० १९८०. ७. अध खवयसेढिमधिगम्म कुणइ साधू अपुव्वकरणं सो । होइ तमपुव्वकरणं कयाइ अप्पत्तपुव्वंति ।। अणिवित्तिकरणणामं णवमं गुणठाणयं च अधिगम्म । णिद्दाणिद्दा पयलापयला तध थीणगिद्धिं च ।। -~भगवती-आराधना, भाग २ ( सम्पादक- कैलाशचन्द्र सिद्धान्तशास्त्री ), पृ० ८९० ( विशेष विवरण हेतु देखें, गाथा २०७२ से २१२६ ) ८. सर्वार्थसिद्धि ( पूज्यपाद देवनन्दी ) सूत्र १-८ की टीका, पृ० ३०-४० तथा ९-१२ की टीका, भारतीय ज्ञानपीठ, काशी, १९५५. ९. राजवार्तिक ( भट्ट अकलंक ), ९-१०/११, पृ० ४८८. १०. तत्त्वार्थश्लोकवार्तिकम् ( विद्यानन्दी ), निर्णयसागर प्रेस, सन् १९१८ देखें - गुणस्थानापेक्ष ... १०-३,... गुणस्थानभेदेन ... ९-३६-४, पृ० ४०३ ... अपूर्वकरणादीनां ... ९-३७-२, विशेष विवरण हेतु देखें - ९/३३-४४ तक की सम्पूर्ण व्याख्या। ११. आवश्यकचूर्णि ( जिनदासगणि ), उत्तरभाग, पृ० १३३-१३६. १२. एतस्य त्रयः स्वामिनश्चतुर्थ - पंचम षष्ठ गुणस्थानवर्तिनः...। तत्त्वार्थाधिगमसूत्र ( सिद्धसेनगणि कृत भाष्यानुसारिणिका समलङ्कृतं, सं० हीरालाल रसिकलाल कापड़िया ) ९-३५ की टीका १३. श्री तत्त्वार्थसूत्रम् ( टीका-हरिभद्र ), ऋषभदेव केशरीमल संस्था, रतलाम सं० १६६२, पृ० ४६५-४६६. १४. सम्यग्दृष्टिश्रावक विरतानन्तविंयोजकदर्शन मोहक्षपकोपशमकोपशान्तमोहक्षपकक्षीणमोहजिनाः क्रमशोऽसंख्येयगुणनिर्जराः। ९-४७ - तत्त्वार्थसूत्र, पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान, वाराणसी, १९८४, नवम अध्याय, पृ० १३६, १५. जैन साहित्य और इतिहास ( प० नाथूरामजी प्रेमी ), पृ० ५२४-५२९. १६. देखें - ( अ ) जैन साहित्य का इतिहास, द्वितीय भाग ( पं० कैलाशचन्द्र जी ), चतुर्थ अध्याय, पृ० २९४-२९९. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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