Book Title: Gunsthan Siddhanta ek Vishleshan
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 133
________________ नवम अध्याय गुणस्थान और मार्गणा' जीव की विभिन्न पर्यायों या अवस्थाओं के सन्दर्भ में जिन-जिन अपेक्षाओं से विचार-विमर्श या अन्वेषण किया जाता है, वे सभी मार्गणा कही जाती हैं। जैनदर्शन में जीव के सम्बन्ध में चौदह मार्गणाओं का उल्लेख मिलता है - १. गति, २. इन्द्रिय, ३. काया, ४. योग, ५. वेद, ६. कषाय, ७. ज्ञान, ८. संयम, ९. दर्शन, १०. लेश्या, ११. भव्यत्व, १२. सम्यक्त्व, १३. संज्ञित्व एवं १४. आहारकत्व। जीवसमास (श्वेताम्बर), षट्खण्डागम ( यापनीय ) एवं गोम्मटसार ( दिगम्बर ) आदि कर्म-सिद्धान्त के ग्रन्थों में इन चौदह मार्गणाओं की अपेक्षा से गुणस्थानों की विस्तृत चर्चा की गयी है। १. गतिमार्गणा - गतियाँ चार हैं - १. देव, २. नारक, ३. तिर्यञ्च एवं ४. मनुष्य। इनमें देव और नारक गतियों में मिथ्यात्व से लेकर अविरत सम्यक् दृष्टि तक के प्रथम चार गुणस्थान पाये जाते हैं। तिर्यञ्चों में मिथ्यात्व से लेकर देशविरत सम्यक् दृष्टि तक के पाँच गुणस्थान उपलब्ध होते हैं। यहाँ यह ज्ञातव्य है कि अविरत सम्यक् दृष्टि गुणस्थान मात्र संज्ञी पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च में ही सम्भव है। मनुष्यगति में मिथ्यात्व से लेकर अयोगीकेवली गुणस्थान तक सभी चौदह गुणस्थान सम्भव हैं। २. इन्द्रियमार्गणा - इन्द्रियाँ पाँच मानी गयी हैं। उनमें एकेन्द्रिय जीवों के (१) सूक्ष्म-अपर्याप्त, (२) सूक्ष्म-पर्याप्त, (३) बादर-अपर्याप्त और (४) बादर-पर्याप्त ऐसे चार भेद होते हैं। पुनः द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतरेन्द्रिय जीवों में प्रत्येक के पर्याप्त और अपर्याप्त ऐसे दो-दो भेद होने से कुल छ: भेद होते हैं। पञ्चेन्द्रिय जीवों में (१) संज्ञी पर्याप्त, (२) संज्ञी अपर्याप्त, (३) असंज्ञी पर्याप्त और (४) असंज्ञी अपर्याप्त ऐसे कुल चार भेद होते हैं। इस प्रकार इन्द्रियों की अपेक्षा से जीवों के चौदह भेद होते हैं, जिन्हें चौदह भूतग्राम के नाम से भी जाना जाता है। इनमें एकेन्द्रिय से लेकर चतुरेन्द्रिय तक के जीवों में मात्र एक मिथ्यात्व गुणस्थान होता है जबकि पञ्चेन्द्रिय जीवों में मिथ्यात्व से लेकर अयोगी केवली तक चौदह गुणस्थान सम्भव हैं। ज्ञातव्य है कि करण-अपर्याप्त बादर-पृथ्वीकाय, अपकाय एवं वनस्पतिकाय में तथा उसी प्रकार करण-अपर्याप्त, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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