Book Title: Gunsthan Siddhanta ek Vishleshan Author(s): Sagarmal Jain Publisher: Parshwanath Shodhpith VaranasiPage 98
________________ गुणस्थान और कर्मसिद्धान्त ९१ इस चर्चा के पश्चात् हम द्वितीय कर्मग्रन्थ की पं० सुखलाल जी की व्याख्या में प्रस्तुत वह तालिका दे रहे हैं, जिसमें यह बताया गया है कि किसकिस कर्मप्रकृति के बन्ध, उदय, उदीरणा और सत्तायोग्य कितने-कितने गुणस्थान १४८ कर्म प्रकृतियों के बन्ध, उदय, उदीरणा और सत्ता का गुणस्थान-दर्शक यन्त्र क्रम क्रम से १४८ उत्तरप्रकृतियों के नाम बन्धयोग्य | गुणस्थान उदययोग्य गुणस्थान उदीरणायोग्य गुणस्थान सत्तायोग्य गुणस्थान - or a vi ni si j ज्ञानावरणीय - ५ मतिज्ञानावरणीय श्रुतज्ञानावरणीय अवधिज्ञानावरणीय मन:पर्ययज्ञानावरणीय केवलज्ञानावरणीय दर्शनावरणीय - ९ चक्षुदर्शनावरणीय अचक्षुदर्शनावरणीय अवधिदर्शनावरणीय केवलदर्शनावरणीय निद्रा निद्रा-निद्रा प्रचला १३. प्रचला-प्रचला १४. स्त्यानर्द्धि ० w g vaca ० १२ G- १ समय न्यून-१२ १ समय न्यून-१२ १२. १समय न्यून-१२ १ समय न्यून-१२ * इसमें ७ को पूरा अङ्क और १/७ को एक सप्तमांश, अर्थात् ७वें गुणस्थान और आठवें गुणस्थान के सात हिस्सों में से एक हिस्सा समझना चाहिये। इस प्रकार दूसरे अङ्कों में भी समझ लेना चाहिये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150