Book Title: Gunsthan Siddhanta ek Vishleshan
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 102
________________ १ ९४. दुरभिगन्ध-नामकर्म ९५. तिक्तरस - नामकर्म ९६. कटुकरस-नामकर्म ९७. | कषायरस नामकर्म ९८. | अम्लरस नामकर्म ९९. | मधुररस - नामकर्म १००. कर्कशस्पर्श नामकर्म १०१. मृदुस्पर्श- नामकर्म १०२. गुरुस्पर्श- नामकर्म १०३. लघुस्पर्श- नामकर्म १०४. शीतस्पर्श - नामकर्म १०५. उष्णस्पर्श - नामकर्म १०६. स्निग्धस्पर्श - नामकर्म १०७. रुक्षस्पर्श-नामकर्म १०८. नरकानुपूर्वी नामकर्म १०९. तिर्यञ्चानुपूर्वी नामकर्म ११०. मनुष्यानुपूर्वी नामकर्म १११. देवानुपूर्वी नामकर्म ११२. शुभविहायोगति नामकर्म |११३. अशुभविहायोगति-नामकर्म ११४. पराघात - नामकर्म ११५. उच्छ्वास- नामकर्म ११६. आतप नामकर्म ११७. उद्योत - नामकर्म ११८. अगुरुलघु-नामकर्म ११९. तीर्थङ्कर नामकर्म - - १२०. निर्माण - नामकर्म | १२१. | उपघात - नामकर्म १२२. | त्रस नामकर्म १२३. बादर-नामकर्म Jain Education International गुणस्थान और कर्मसिद्धान्त ३ 9 9 9 9 19 9119 9 9 9 १ ७६ १ १ 9w1999 1919 19 19 १ १ १ १ १ V ܘ ܟ ܡ D १) १ 19 19 GLM GLM २ ७६ चौथा से 'आठवें के 6 6 ६ भाग तक ७. ७६ १३ १३ १३ १३ १३ १३ १३ १३ १३ १३ १३ १३ १, ४-२ १,२, ४-३ १,२,४-३ १,२,४-३ १३ १३ १३ 22 www १३ ४ १३ १४ १४ १३ १३ १३, १४ - २ तेरहवाँ For Private & Personal Use Only १३ १३ १३ १३ १३ १३ १३ १३ १३ १३ १३ १३ १३ १३ १, ४-२ १३ १३ ५ १३ १३ १३ १३ १४ ६ १४ x x x x x 2 १४ १४ १४ १.४ १४ १४ १४ x x x x xo १४ १४ १४ १४ १,२,४-३ १,२,४-३ | १४ १,२,४-३ | १४ १४ Xxx পলপগ 2 2 2 x x x x x you a १४ १४ दू० ती ० छोड़ १२ X X X X १४ १४ १४ १४ www.jainelibrary.org

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