Book Title: Gunsthan Siddhanta ek Vishleshan
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 127
________________ गुणस्थान सिद्धान्त : एक विश्लेषण का नाश होने से सन्तोषरूपी निरतिशय आनन्द की अनुभूति की अवस्था है। ६. पदार्थाभावनी : यह भोगेच्छा के पूर्णत: विनाश की अवस्था है, इसमें कोई भी चाह या अपेक्षा नहीं रहती है, केवल देह यात्रा दूसरों के प्रयत्न को लेकर चलती है। . .७. तूर्यगा : यह देहातीत विशुद्ध आत्मरमण की अवस्था है। इसे मुक्तावस्था भी कहा जा सकता है। योग-दर्शन में आध्यात्मिक विकास-क्रम योग-साधना का अन्तिम लक्ष्य चित्तवृत्तिनिरोध है। योगदर्शन में योग की परिभाषा है - "योग: चित्तवृत्तिनिरोधः"। योगदर्शन में चित्तवृत्ति-निरोध को इसलिये साध्य माना गया कि सारे दु:खों का मल चित्त-विकल्प है। चित्त-विकल्प राग या आसक्तिजनित है। जब राग या आसक्ति होगी तो चित्त-विकल्प होंगे और जब चित्त-विकल्प होंगे तो मानसिक तनाव होगा और जब मानसिक तनाव होंगे तो समाधि सम्भव नहीं होगी। समाधि के लिये चित्त का निर्विकल्प या निरुद्ध होना आवश्यक है। योगदर्शन में चित्त की जो पाँच अवस्थाएँ बतायी गयी हैं, वे क्रमश: साधना के विकास-क्रम की ही सूचक हैं। चित्त की ये पाँच अवस्थाएँ निम्नलिखित हैं - १. मूढ़ : यह चित्त की तमोगुण प्रधान जड़ता की अवस्था है। इसमें अज्ञान और आलस्य की प्रमुखता रहती है। आत्माभिरुचि और ज्ञानाभिरुचि का अभाव होता है। यह अवस्था जैनधर्म के मिथ्यात्व गुणस्थान और बौद्धधर्म के अंधपृथक्जन के समान है। २. क्षिप्त : यह चित्त की रजोगुण प्रधान अवस्था है। इसमें रजोगुण की प्रमुखता के कारण चित्त में चंचलता बनी रहती है। सांसारिक विषय-वासनाओं में अभिरुचि होने के कारण मन केन्द्रित नहीं रहता। इस अवस्था में व्यक्ति अनेक चित्त होता है। वह वासनाओं का दास होता है और अपनी तीव्र आकांक्षाओं के कारण दुःखी बना रहता है। यद्यपि उसमें सत्त्वगुण का संयोग होने से कभी-कभी तत्त्व-जिज्ञासा और संसार की दुःखमयता का आभास होने लगता है। यह अवस्था भी मिथ्यात्व गुणस्थान से ही तुलनीय है। किन्तु यह उस व्यक्ति की अवस्था है जो सम्यक्त्व का स्पर्श कर मिथ्यात्व में गिरा है। अत: किसी सीमा तक इसे सास्वादन और मिश्र गुणस्थान से भी तुलनीय माना जा सकता है। ३. विक्षिप्त : इसमें सत्त्वगुण की प्रधानता होती है किन्तु रजोगुण और तमोगुण की उपस्थिति के कारण सत्त्वगुण का इनसे संघर्ष चलता रहता है। यह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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