Book Title: Gunsthan Siddhanta ek Vishleshan
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 124
________________ गुणस्थान सिद्धान्त की अवधारणाओं का तुलनात्मक अध्ययन ११३ तमोन्मुखी प्रवृत्तियों में संलग्न होता है। सत्त्वगुण इस अवस्था में पूर्णतया तमोगुण और रजोगुण के अधीन होता है। यह रज समन्वित तमोगुण-प्रधान अवस्था है। २. सास्वादन गुणस्थान की अवस्था में भी तमोगुण प्रधान होता है। रजोगुण तमोन्मुखी होता है, फिर भी किंचित् रूप में सत्त्वगुण का प्रकाश रहता है। यह सत्त्वरज समन्वित तमोगुण प्रधान अवस्था है। ३. मिश्र गुणस्थान में रजोगुण प्रधान होता है। सत्त्व और तम दोनों ही रजोगुण के अधीन होते हैं। यह सत्त्व-तम समन्वित रजोगुण प्रधान अवस्था है। ४. सम्यक्त्व गुणस्थान में व्यक्ति के विचार-पक्ष में सत्त्वगुण का प्राधान्य होता है। विचार की दृष्टि से तमस् और रजस् गुण सत्त्वगुण से शासित होते हैं, लेकिन आचार की दृष्टि से सत्त्वगुण तमस् और रजस् गुणों से शासित होता है। यह विचार की दृष्टि से रज-समन्वित सत्त्वगुण प्रधान और आचार की दृष्टि से रज-समन्वित तमोगुणप्रधान अवस्था है। ५. देशविरत सम्यक्त्व गुणस्थान में विचार की दृष्टि से तो सत्त्वगुण प्रधान होता है, साथ ही आचार की दृष्टि से भी सत्त्व का विकास प्रारम्भ हो जाता है। यद्यपि रज और तम पर उसका प्राधान्य स्थापित नहीं हो पाता है। यह तमोगुण समन्वित सत्त्वोन्मुखी रजोगुण की अवस्था है। ६. प्रमत्तसंयत गुणस्थान में यद्यपि आचार-पक्ष और विचार पक्ष दोनों में सत्त्वगुण प्रधान होता है, फिर भी तम और रज उसकी प्रधानता को स्वीकार नहीं करते हुए अपनी शक्ति बढ़ाने की और आचार-पक्ष की दृष्टि से सत्त्व पर अपना प्रभुत्व जमाने की कोशिश करते रहते हैं। ७. अप्रमत्तसंयत गुणस्थान में सत्त्वगुण तमोगुण का या तो पूर्णतया उन्मूलन कर देता है अथवा उस पर पूरा अधिकार जमा लेता है, लेकिन अभी रजोगुण पर उसका पूरा अधिकार नहीं हो पाता है। ८. अपूर्वकरण नामक गुणस्थान में सत्त्वगुण रजोगुण पर पूरी तरह काबू पाने का प्रयास करता है। ९. अनिवृत्तिकरण नामक नवें गुणस्थान में सत्त्वगुण रजोगुण को काफी अशक्त बनाकर उस पर बहुत कुछ काबू पा लेता है, फिर भी रजोगण अभी पूर्णतया नि:शेष नहीं होता है। रजोगुण की कषाय एवं तृष्णारूपी आसक्तियों का बहुत कुछ भाग नष्ट हो जाता है, फिर भी रागात्मक आसक्तियाँ सूक्ष्म लोभ के छद्मवेश में अवशेष रहती हैं। १०. सूक्ष्म सम्पराय नामक गुणस्थान में साधक छद्मवेशी रजस् को जो सत्त्व का छद्म स्वरूप धारण किये हुए था, पकड़कर उस पर अपना आधिपत्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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