Book Title: Gunsthan Siddhanta ek Vishleshan
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 88
________________ गुणस्थान और कर्मसिद्धान्त ८१ उपरोक्त तालिकाओं के आधार पर यहाँ प्रत्येक गुणस्थान में कर्मप्रकृतियों की बन्ध, सत्ता, उदय, उदीरणा, क्षय आदि की अपेक्षा से क्या स्थिति होती है, इसका संक्षिप्त विवरण यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है - १. मिथ्यात्व गुणस्थान - बन्धयोग्य कुल कर्म-प्रकृतियाँ १२० मानी गई हैं। इनमें से प्रथम मिथ्यात्व नामक गुणस्थान में तीर्थङ्करनामकर्म तथा आहारकद्विक् इन तीन कर्म-प्रकृतियों को छोड़कर शेष ११७ कर्म-प्रकृतियों का बन्ध सम्भव है। उदय तथा उदीरणा की अपेक्षा से उत्तरकर्म-प्रकृतियों की संख्या १२२ होती है क्योंकि बन्ध तो मात्र मिथ्यात्व मोह का होता है किन्तु उदय मिश्रमोह और सम्यक्त्वमोह का भी होता है। अत: उदययोग्य कर्म-प्रकृतियाँ १२२ होती हैं। मिथ्यात्व गुणस्थान में मिश्रमोह, सम्यक्त्वमोह, आहारकद्विक् और तीर्थङ्कर नामकर्म इन पाँच की उदय या उदीरणा सम्भव नहीं है, अत: इस गुणस्थान में शेष ११७ कर्म-प्रकृतियों की ही उदय अथवा उदीरणा सम्भव होती है। जहाँ तक सत्ता का प्रश्न है मिथ्यात्व गुणस्थान में १४८ कर्म-प्रकृतियों की सत्ता मानी गई है। यहाँ यह प्रश्न स्वाभाविक रूप से उत्पन्न होता है कि जब बन्ध योग्य प्रकृतियाँ १२० ही हैं तो फिर सत्ता योग्य कर्म-प्रकृतियाँ १४८ कैसे हो सकती हैं ? इसका उत्तर यह है कि बन्ध की अपेक्षा से तो नामकर्म की प्रकृतियाँ ६७ होती हैं, किन्तु सत्ता की अपेक्षा से वे ९३ हैं। इस प्रकार नामकर्म में सत्ता की अपेक्षा से २६ कर्म-प्रकृतियाँ अधिक मानी गई हैं। उसी प्रकार मोहनीयकर्म में भी मिश्रमोह और मिथ्यात्वमोह इन दो कर्म-प्रकृतियों की सत्ता अधिक होती है। अत: नामकर्म की उपरोक्त २६ और मोहनीय कर्म की २ कुल २८ प्रकृतियाँ सत्ता में अधिक होती हैं। इस प्रकार १२० + २८ = १४८ कर्मप्रकृतियों की सत्ता सम्भव है। जहाँ तक मिथ्यात्व नामक प्रथम गुणस्थान का प्रश्न है उसमें उन सभी १४८ कर्म-प्रकृतियों की सत्ता सम्भव है, क्योंकि मिथ्यात्व अवस्था में तीर्थङ्कर नामकर्म की सत्ता भी सम्भव होती है। वह जीव जिसने सम्यक्त्व को प्राप्त करके तीर्थङ्कर नामकर्म का उपार्जन तो कर लिया है, किन्तु यदि वह पूर्व में नरकायु का बन्ध कर चुका है तो अपने मृत्यु-काल में वह नियम से मिथ्यात्व को ग्रहण करता है, क्योंकि मिथ्यात्व के अभाव में नरक में गमन सम्भव नहीं है, यद्यपि नरक में वह पुनः सम्यक्त्व को ग्रहण कर लेता है। उसी अपेक्षा से मिथ्यात्व गुणस्थान में १४८ कर्म-प्रकृतियों की सत्ता मानी गई है। जहाँ तक क्षय और उपशम का प्रश्न है, मिथ्यात्व गुणस्थान में किसी भी कर्मप्रकृति का पूर्णतः क्षय या उपशम नहीं होता। यद्यपि मिथ्यात्व गुणस्थान के अन्त में, जो जीव सम्यक्त्व गुणस्थान में आरोहण करते हैं, वे जीव अनन्तानुबन्धी कषाय आदि का उपशम या क्षय करते हैं। वे जीव सात कर्म-प्रकृतियों अर्थात् For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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