Book Title: Gunsthan Siddhanta ek Vishleshan
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

Previous | Next

Page 95
________________ ८८ गुणस्थान सिद्धान्त : एक विश्लेषण ८. अपूर्वकरण - इस गुणस्थान के प्रारम्भ में तो ५८ कर्म-प्रकृतियों का बन्ध सम्भव होता है किन्तु मध्य में ५६ का और अन्त में मात्र २६ कर्म- प्रकृतियों का ही बन्ध सम्भव रह जाता है, क्योंकि इसके अन्तिम समय में ज्ञानावरणीय की पाँच, दर्शनावरणीय की चार ( पाँचों निद्राओं को छोड़कर ), वेदनीय की एक ( मात्र सातावेदनीय ), मोहनीय की नौ नोकषाय तथा नामकर्म की एक, गोत्रकर्म की एक तथा अन्तरायकर्म की पाँच कर्म-प्रकृतियाँ ही बन्ध योग्य रह पाती हैं। इस प्रकार इस गुणस्थान के अन्त में बन्धयोग्य कर्म-प्रकृतियाँ मात्र २६ रह जाती हैं। इस गणस्थान में बन्ध-योग्य कर्म-प्रकृतियों में सबसे बड़ी कमी नामकर्म की प्रकृतियों में होती है। इसकी पूर्व गुणस्थान में बन्धयोग्य ३१ में मात्र एक कर्म-प्रकृति ही शेष रहती है। सत्ता की अपेक्षा से इस गुणस्थान के प्रारम्भ में अधिकतम १४८ और न्यूनतम १४२ कर्म-प्रकृतियों की सत्ता रहती है। यद्यपि जो साधक श्रेणी प्रारम्भ कर लेते हैं उनमें उपशम श्रेणी वालों में १३९ और क्षपक श्रेणी वालों को १३८ कर्म-प्रकृतियों की सत्ता प्रारम्भ में रहती है किन्तु क्षपक श्रेणी वाले जीवों में इस गुणस्थान के अन्त में मात्र १०३ कर्म-प्रकृतियों की ही सत्ता शेष रहती है। उदय और उदीरणा की अपेक्षा से पूर्ववर्ती गुणस्थान की उदययोग्य ७६ कर्म-प्रकृतियों में से सम्यक्त्व मोह और अन्त के तीन संहनन कम होने से इस गुणस्थान में उदययोग्य ७२ और उदीरणायोग्य ६९ कर्म-प्रकृतियाँ ही शेष रहती हैं। ९. अनिवृत्तिकरण - अनिवृत्तिकरण नामक नवें गुणस्थान के प्रारम्भ में अधिकतम २२ कर्म-प्रकृतियाँ का बन्ध सम्भव होता है। किन्तु इस गुणस्थान के अन्त में मात्र १८ कर्म-प्रकृतियों के बन्ध की ही सम्भावना रहती है। उनमें ज्ञानावरण की पाँच, दर्शनावरण की चार, वेदनीय की एक (सातावेदनीय), मोहनीय की एक (सूक्ष्मलोभ), नामकर्म की एक और गोत्रकर्म की एक (उच्चगोत्रकर्म) तथा अन्तराय की पाँच इस प्रकार कुल १८ कर्म-प्रकृतियों का बन्ध सम्भव होता है। जहाँ तक सत्ता का प्रश्न है इसके प्रारम्भ में १३८ और अन्त में १०३ कर्म-प्रकृतियों की ही सत्ता शेष रह सकती है। ज्ञातव्य है कि इस गणस्थान के प्रारम्भ में जहाँ मोहनीय कर्म की २१ कर्म-प्रकृतियों की सत्ता सम्भव होती है वहाँ इस गुणस्थान के अन्त में मात्र मोहनीय कर्म की २ कर्मप्रकृतियों की सत्ता शेष रह सकती है। एक सूक्ष्मलोभ और दूसरा तीन वेदों में से कोई एक वेद। जहाँ तक उदय और उदीरणा का प्रश्न है पूर्ववर्ती गुणस्थान की उदययोग्य ७२ कर्म-प्रकृतियों में से हास्यषटक् कम होने से इस गुणस्थान में उदय की अपेक्षा से ६६ कर्म-प्रकृतियों का उदय और उदीरणा की अपेक्षा से ६३ कर्म-प्रकृतियों की उदीरणा सम्भव होती है। उदय का विवरण इस प्रकार है --- ज्ञानावरण की पाँच, दर्शनावरण की छह ( स्त्यानगृद्धि-त्रिक को छोड़कर ), वेदनीय की दो, मोहनीय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150