Book Title: Gunsthan Siddhanta ek Vishleshan
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

Previous | Next

Page 18
________________ तत्त्वार्थसूत्र में गुणस्थान सिद्धान्त के बीज ११ की दस अवस्थाओं में प्रथम पाँच का सम्बन्ध दर्शनमोह के उपशम और क्षपण से है तथा अन्तिम पाँच का सम्बन्ध चारित्रमोह के उपशम, उपशान्त, क्षपण और क्षय से है। प्रथम भूमिका में सम्यग्दृष्टि का क्रमश: श्रावक और विरत इन दो भूमिकाओं में के रूप में चारित्रिक विकास तो होता है किन्तु उसका सम्यक दर्शन औपशमिक होता है, अत: वह उपशान्त दर्शनमोह होता है। ऐसा साधक चौथी अवस्था में अनन्तानुबन्धी कषाय का क्षपण ( वियोजन ) करता है, अत: वह क्षपक होता है। इस पाँचवीं स्थिति के अन्त में दर्शनमोह का क्षय हो जाता है। अत: वह क्षीणदर्शनमोह होता है। छठी अवस्था में चारित्रमोह का उपशम होता है अत: वह उपशमक ( चारित्रमोह ) कहा जाता है। सातवीं अवस्था में चारित्रमोह उपशान्त होता है। आठवीं में उस उपशान्त चारित्रमोह का क्षपण किया जाता है, अत: वह क्षपक होता है। नवी अवस्था में चारित्रमोह क्षीण हो जाता है, अत: उसे क्षीणमोह कहा जाता है और दसवीं अवस्था में 'जिन' अवस्था प्राप्त होती है। इस प्रकार हम देखते हैं कि उमास्वाति के समक्ष कर्मों के उपशान्त और क्षय की अवधारणा तो उपस्थित रही होगी, किन्तु चारित्रमोह की विशुद्धि के प्रसंग में उपशम श्रेणी और क्षायिक श्रेणी से अलग-अलग आरोहण की अवधारणा विकसित नहीं हो पाई होगी। इसी प्रकार उपशम श्रेणी से किये गए आध्यात्मिक विकास से पुनः पतन के बीच की अवस्थाओं की कल्पना भी नहीं रही होगी। जब हम उमास्वाति के तत्त्वार्थसूत्र और तत्त्वार्थभाष्य से कसायपाहुड की ओर आते हैं तो दर्शनमोह की अपेक्षा से मिथ्यादृष्टि सम्यक् मिथ्यादृष्टि (मिश्र-मोह) और सम्यग्दृष्टि तथा चारित्रमोह की अपेक्षा से अविरत, विरताविरत और विरत की अवधारणाओं के साथ उपशम और क्षय की अवधारणाओं की उपस्थिति भी पाते हैं। इस प्रकार कसायपाहुड में सम्यक् मिथ्यादृष्टि की अवधारणा अधिक पाते हैं। इसी क्रम में आगे मिथ्यादृष्टि, सास्वादन और अयोगी केवली की अवधारणाएँ जुड़ी होंगी और उपशम एवं क्षपक श्रेणी के विचार के साथ गुणस्थान का एक सुव्यवस्थित सिद्धान्त सामने आया होगा। इस तुलनात्मक विवरण से हम पाते हैं कि तत्त्वार्थसूत्र के समान ही कसायपाहुडसुत्त में न तो गुणस्थान शब्द ही है और न गुणस्थान सम्बन्धी चौदह अवस्थाओं का सुव्यवस्थित विवरण ही है, किन्तु दोनों में गुणस्थान की अवधारणा से सम्बन्धित कुछ पारिभाषिक शब्द पाए जाते हैं। कसायपाहुड में गुणस्थान से सम्बन्धित पारिभाषिक शब्द हैं - मिथ्यादृष्टि, सम्यक्-मिथ्यादृष्टि ( मिश्र ), अविरत सम्यग्दृष्टि, देश-विरत/विरताविरत ( संयमासंयम ), विरत संयत, उपशान्तकषाय एवं क्षीणमोह तुलना की दृष्टि से तत्त्वार्थसूत्र में सम्यक् Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150