Book Title: Gunsthan Siddhanta ek Vishleshan
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 16
________________ द्वितीय अध्याय तत्त्वार्थसूत्र में गुणस्थान सिद्धान्त के बीज तत्त्वार्थसूत्र में गुणस्थान सिद्धान्त के बीज उसके नवें अध्याय में मिलते हैं। नवें अध्याय में सर्वप्रथम परीषहों के सम्बन्ध में आध्यात्मिक विकास की चर्चा हुई है, उसमें बताया गया है - "बादर-सम्पराय की स्थिति में २२ परिषह सम्भव होते हैं। सूक्ष्म सम्पराय और छद्मस्थ वीतराग ( क्षीणमोह ) में चौदह परीषह सम्भव होते हैं। जिन भगवान् में ग्यारह परीषह सम्भव होते हैं।'' इस प्रकार यहाँ बादर-सम्पराय, सूक्ष्म-सम्पराय, छद्मस्थ वीतराग और जिन इन चार अवस्थाओं का उल्लेख हुआ है। पुन: तत्त्वार्थसूत्र के ध्यान प्रसंग में यह बताया गया है – “अविरत, देशविरत और प्रमत्त-संयत - इन तीन अवस्थाओं में आर्तध्यान का सद्भाव होता है। अविरत और देशविरत में रौद्रध्यान की उपस्थिति पायी जाती है। अप्रमत्तसंयत को धर्मध्यान होता है। साथ ही यह उपशान्त कषाय एवं क्षीण कषाय को भी होता है। शुक्लध्यान, उपशान्त कषाय ( उपशान्त मोह ), क्षीण कषाय ( क्षीण मोह ) और केवली ऐसी सात अवस्थाओं का उल्लेख हुआ है, पुन: कर्मनिर्जरा ( कर्मविशुद्धि ) के प्रसंग में सम्यग्दृष्टि, श्रावक, विरत, अनन्तवियोजक, दर्शनमोह-क्षपक ( चारित्रमोह ) उपशमक, उपशान्त ( चारित्र ) मोह, ( चारित्रमोह ) क्षपक, क्षीणमोह और जिन ऐसी दस क्रमश: विकासमान स्थितियों का चित्रण हुआ है। यदि हम अनन्तवियोजक को अप्रमत्त-संयत, दर्शनमोहक्षपक को अपूर्वकरण ( निवृत्ति बादर सम्पराय ) और उपशमक ( चारित्र मोह-उपशमक ) को अनिवृत्तिकरण और क्षपक को सूक्ष्म सम्पराय मानें तो इस स्थिति में वहाँ दस गुणस्थानों के नाम प्रकारान्तर से मिल जाते हैं। यद्यपि अनन्तवियोजक, दर्शनमोहक्षपक, उपशमक, उपशान्त-मोह तथा क्षपक आदि अवस्थाओं को उनके मूल भावों की दृष्टि से तो आध्यात्मिक विकास की इस अवधारणा से जोड़ा जा सकता है, किन्तु उन्हें सीधा-साधा गुणस्थान के चौखटे में संयोजित करना कठिन है, क्योंकि गुणस्थान सिद्धान्त में तो चौथे गुणस्थान में ही अनन्तानुबन्धी कषायों का क्षय या क्षयोपशम हो जाता है। पुन: उपशम श्रेणी से विकास करने वाला तो सातवें अप्रमत्तसंयत गुणस्थान में भी दर्शनमोह और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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