Book Title: Gunsthan Siddhanta ek Vishleshan
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 26
________________ तत्त्वार्थसूत्र में गुणस्थान सिद्धान्त के बीज सन्दर्भ-ग्रन्थ १. सूक्ष्मसम्परायच्छद्मस्थवीतरागयोश्चतुर्दश ।। १० ।। एकादश जिने ।। ११ ।। बादरसम्पराये सर्वे ।। १२ ।। तत्त्वार्थसूत्र, अध्याय ९. २. तदविरतदेशविरतप्रमत्तसंयतानाम् ।। ३५ ।। हिंसाऽनृतस्तेयविषयसंरक्षणेभ्यो रौद्रमविरतदेशविरतयोः ।। ३६ ।। आज्ञाएपायविपाकसंस्थान विचयाय धर्ममप्रमत्तसंयतस्य ।। ३७ ।। उपशान्तक्षीणकषाययोश्च ।। ३८ ।। शुक्ले चा पूर्वविदः ।। ३९ ।। परे केवलिनः ।। ४० ।। - तत्त्वार्थसूत्र, अध्याय ९. ३. सम्यग्दृष्टिश्रावकविरतानन्तवियोजकदर्शनमोहक्षपकोपशमकोपशान्तमोहक्षपकक्षीणमोहजिनाः क्रमशोऽसंख्येयगुणनिर्जराः ।। ४७ ।। तत्त्वार्थसूत्र, अध्याय ९. ४. कसायपाहुडसुत्त, सं० पं० हीरालाल जैन, वीरशासन, संघ कलकत्ता १९५५ देखें - Jain Education International — बोद्धव्वा ।। ८२ ।। अणागारे ।। ८३ ।। रिसोभवे ।। ९१ ।। सम्मत्तदेसविरयी संजम उवसामणा च खवणा च । दंसण- चरित्त मोहे अद्धापरिमाणणिद्देसो ।। १४ ।। सम्मत्ते मिच्छत्ते य मिस्सगे चेय विरदीय अविरदीए विरदाविरदे तहा दंसणमोहस्स उवसामगस्स परिणामो दंसणमोहक्खवणापट्ठवगो कम्मभूमि जादो सुहुमे च संपराए बादररागे च बोद्धव्वा ।। १२१ ।। उवसामणाखएण दु पडिवदिदो होइ सुहुम रागम्हि ।। १२२ ।। खीणेसु कसाएसु य सेसाणं के व होति वीचारा ।। २३२ ।। संकामणमोवट्टण किट्टीखवणाए खीणमोहंते । दु ।। ११० ।। बोद्धव्वा मोहणीयस्स ।। २३३ ।। १९ खवणा य आणुपुव्वी ५. विस्तृत विवरण हेतु देखें जैन, बौद्ध और गीता के आचारदर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन, भाग २, डॉ० सागरमल जैन, प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर, पृ० ३७९-४७१ एवं पृ० ४८७-४८८. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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