Book Title: Gunsthan Siddhanta ek Vishleshan Author(s): Sagarmal Jain Publisher: Parshwanath Shodhpith VaranasiPage 80
________________ गुणस्थान और कर्मसिद्धान्त ७३ (४) मोहनीय कर्म की छब्बीस कर्म-प्रकृतियाँ - १. मिथ्यात्वमोहनीय, २. अनन्तानुबन्धी-क्रोध, ३ अनन्तानुबन्धी-मान, ४. अनन्तानुबन्धीमाया, ५. अनन्तानुबन्धी-लोभ, ६. अप्रत्याख्यानावरण-क्रोध, ७. अप्रत्याख्यानावरण-मान, ८. अप्रत्याख्यानावरण-माया, ९. अप्रत्याख्यानावरण-लोभ, १०. प्रत्याख्यानावरण-क्रोध, ११. प्रत्याख्यानावरण-मान, १२. प्रत्याख्यानावरण-माया, १३. प्रत्याख्यानावरण-लोभ, १४. संज्वलन-क्रोध, १५. संज्वलन-मान, १६. संज्वलन-माया, १७. संज्वलन-लोभ, १८. स्त्रीवेद, १९. पुरुषवेद, २०. नपुंसकवेद, २१. हास्य, २२. रति, २३. अरति, २४. शोक, २५. भय और २६. जुगुप्सा। (५) आयु कर्म की चार कर्म-प्रकृतियाँ - १. नारक-आयु, २. तिर्यञ्च-आयु, ३. मनुष्य-आयु और ४. देव-आयु। (६) नामकर्म की सड़सठ कर्म-प्रकृतियाँ -- १. नरक-गतिनामकर्म, २. तिर्यञ्च-गतिनामकर्म, ३. मनुष्य-गतिनामकर्म और ४. देव-गतिनामकर्म - ये चार गतिनामकर्म; ५. एकेन्द्रिय-जातिनामकर्म, ६. द्वीन्द्रिय-जातिनामकर्म, ७. त्रीन्द्रिय-जातिनामकर्म, ८. चतुरेन्द्रिय-जातिनामकर्म, ९. पञ्चेन्द्रियजातिनामकर्म - ये पाँच जातिनामकर्म; १०. औदारिक-शरीरनामकर्म, ११. वैक्रिय-शरीरनामकर्म, १२. आहारक्शरीरनामकर्म, १३. तैजस-शरीरनामकर्म और १४. कार्मण-शरीरनामकर्म - ये पाँच शरीरनामकर्म; १५. औदारिकअङ्गोपाङ्गनामकर्म, १६. वैक्रिय-अङ्गोपाङ्गनामकर्म, १७. आहारक-अङ्गोपाङ्गनामकर्म - ये तीन अङ्गोपाङ्गनामकर्म; १८. वज्रऋषभनाराच-संहनननामकर्म, १९. ऋषभनाराच-संहनननामकर्म, २०. नाराच-संहनननामकर्म, २१. अर्धनाराच-संहनननामकर्म, २२. कीलिका-संहनननामकर्म, २३. सेवार्त-संहनननामकर्म - ये छ: संहनननामकर्म, २४. समचतुरस्र-संस्थाननामकर्म, २५. न्यग्रोधपरिमंडल-संस्थाननामकर्म, २६. सादि-संस्थाननामकर्म, २७. वामनसंस्थाननामकर्म, २८. कुब्ज-संस्थाननामकर्म और २९. हुंडक-संस्थाननामकर्म - ये छ: संस्थाननामकर्म; ३०. वर्ण-नामकर्म, ३१. गन्ध-नामकर्म, ३२. रस-नामकर्म, ३३. स्पर्श-नामकर्म ३४. नरकानुपूर्वीनामकर्म, ३५. तिर्यगानुपूर्वीनामकर्म, ३६. मनुष्यानुपूर्वी-नामकर्म और ३७. देवानुपूर्वी-नामकर्म - ये चार आनुपूर्वीनामकर्म; ३८. शुभ-विहायोगतिनामकर्म और ३९. अशुभविहायोगतिनामकर्म - ये दो विहायोगतिनामकर्म। ये कुल उन्तालीस भेद बारहपिण्ड-प्रकृतियों के होते हैं। बन्धन-नामकर्म और संघातन-नामकर्म – इन दो पिण्ड-प्रकृतियों का समावेश शरीर-नामकर्म में ही किया जाता है। ४०. पराघात Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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