Book Title: Gunsthan Siddhanta ek Vishleshan Author(s): Sagarmal Jain Publisher: Parshwanath Shodhpith VaranasiPage 30
________________ श्वेताम्बर साहित्य में गुणस्थान सिद्धान्त के बीज २३ कठिनाइयाँ हैं। यदि हम यह मानते हैं कि ईस्वी सन् की पाँचवीं शताब्दी में होने वाले भद्रबाहु वराहमिहिर के भाई हैं तो सबसे पहला प्रश्न यह उठेगा कि वी० नि० सं० ६०९ अर्थात् ईस्वी सन् द्वितीय शती में होने वाले बोटिक निह्नव की चर्चा इसमें क्यों नहीं है ? दूसरे यह कि ईसा की पाँचवीं शताब्दी के अन्त तक तो गुणस्थान की अवधारणा स्पष्ट रूप से आ गई थी उनका अन्तर्भाव नियुक्तियों में क्यों नहीं हो पाया, जबकि आचारांगनियुक्ति तत्त्वार्थ के समान मात्र दस अवस्थाओं की ही चर्चा करती है वह परवर्ती ग्यारह गुणश्रेणियों अथवा चौदह गुणस्थानों की चर्चा क्यों नहीं करती है ? नियुक्तियों में उपलब्ध विषयवस्तु की दृष्टि से हमें यही मानना होगा कि वे लगभग ईस्वी सन् की दूसरी शताब्दी की रचना है। पुन: वी० नि० सं० ५८५ तक होने वाले निह्नवों का उल्लेख और वी० नि० सं० ६०९ में होने वाले बोटिक शिवभूति का अभाव यही सिद्ध करता है कि नियुक्तियाँ वी० नि० सं० ६०९/ई० सन् १४२ के पूर्व लिखी गई हैं। इस प्रकार वे ई० सन् की द्वितीय शताब्दी के पूर्वार्ध में लिखी गई हैं। यहाँ प्रश्न यह उठता है कि क्या इस काल में कोई भद्रबाहु हुए हैं ? हमने कल्पसूत्र की पट्टावली का अध्ययन करने पर यह पाया कि आर्य कृष्ण और आर्य शिवभूति, जिनके बीच सचेलता और अचेलता के प्रश्न को लेकर विवाद हुआ था और बोटिक सम्प्रदाय की उत्पत्ति हुई थी, के समकालिक एक आर्यभद्र हुए हैं। ये आर्य शिवभूति के शिष्य थे, ये आर्य नक्षत्र एवं आर्य रक्षित से ज्येष्ठ थे और इनका काल ई० सन की द्वितीय-तृतीय शताब्दी ही रहा है। अत: यह मानना होगा कि नियुक्तियाँ इन्हीं आर्यभद्र की रचनाएँ हैं और आगे चलकर नाम साम्य और भद्रबाहु की प्रसिद्धि के कारण उनकी रचनाएँ मानी जाने लगीं। जिस प्रकार प्रबन्धों के लेखकों ने प्राचीन भद्रबाहु और वराहमिहिर के भाई भद्रबाहु के कथानक मिला दिये हैं उसी प्रकार नियुक्तिकार आर्यभद्र से भद्रबाहु की एकरूपता कर ली गई। पुन: नियुक्ति साहित्य में गुणस्थान की अवधारणा की अनुपस्थिति एवं तत्त्वार्थ के समान दस गुणश्रेणियों का उल्लेख यही सिद्ध करता है कि वे तत्त्वार्थसूत्र की समकालिक अथवा उससे क्वचित् पूर्ववर्ती रचनाएँ हैं। पुनः प्रज्ञापना जैसे विकसित आगम में गुणस्थान सिद्धान्त के साथ-साथ आध्यात्मिक विकास की इन दस गुणश्रेणियों की चर्चा का अभाव है। प्रज्ञापना का रचनाकाल विद्वानों ने ई० सन् की प्रथम शताब्दी माना है, अत: हमें यह मानना होगा कि नियुक्तियाँ ई० सन् की द्वितीय शताब्दी से लेकर तृतीय शताब्दी के पूर्व निर्मित हुई हैं, अत: उन्हें आर्यभद्र की रचना मानकर ई० सन् की द्वितीय शताब्दी के प्रथम चरण में रखना अनुपयुक्त नहीं होगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150