Book Title: Gunsthan Siddhanta ek Vishleshan Author(s): Sagarmal Jain Publisher: Parshwanath Shodhpith VaranasiPage 21
________________ Jain Education International & # * on » For Private & Personal Use Only । । । । । आध्यात्मिक विशुद्धि का क्रम उमास्वाति के अनुसार गुणस्थान सिद्धान्त के अनुसार परीषहों के सन्दर्भ में | ध्यान के सन्दर्भ में । कर्मनिर्जरा के सन्दर्भ में मिथ्यादृष्टि सास्वादन सम्यक्-मिथ्यादृष्टि अविरत (सम्यग्दृष्टि) | सम्यग्दृष्टि (दर्शनमोह उपशमक) सम्यग्दृष्टि (अविरतदृष्टि) देशविरत श्रावक देशविरत - प्रमत्तसंयत विरत सर्वविरत (प्रमत्तसंयत) अप्रमत्तसंयत अनन्त वियोजक (उपशान्त दर्शनमोह) | अप्रमत्तसंयत दर्शनमोहक्षपक अपूर्वकरण (निवृत्ति बादर-सम्पराय) उपशमक (चारित्रमोह) अनिवृत्तिकरण सूक्ष्म-सम्पराय सूक्ष्म-सम्पराय उपशान्त कषाय उपशान्त मोहक्षपक उपशान्तमोह छद्मस्थ वीतराग क्षीण कषाय क्षीण-मोह क्षीणमोह जिन केवली (जिन) जिन सयोगी केवली अयोगी केवली गुणस्थान सिद्धान्त : एक विश्लेषण . ; बादर-सम्पराय 24.M www.jainelibrary.orgPage Navigation
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