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उपशान्त मोह प्राप्ति-------------------एकादश उपशान्त मोह गुणस्थानक क्षपक श्रेणी आरूढ--------------------अष्टम अपूर्वकरण गुणस्थानक
क्षीण मोह अवस्था--------------------निज स्वरूप अवस्था(12वां गुणस्थान) मूलशंकर देसाई कृत गुणस्थान नामक कृति में निम्नलिखित नामों से इन 14 गुणस्थानों का वर्णन किया गया है1. मिथ्यात्व 2. सासादन 3. मिश्र 4. अविरत सम्यक्त्व 5. देश संयत 6. प्रमत्त संयत 7. अप्रमत्त संयत 8. अपूर्वकरण 9. अनिवृत्तिकरण 10. सूक्ष्म सम्प्रराय 11. उपशांतमोह 12. क्षीणमोह 13. सयोगकेवली 14. अयोगकेवली। दिगम्बर सम्प्रदाय से सम्बद्ध बाल ब्रह्मचारिणी डॉ. प्रमिला जैन कृत गणस्थान मजरी में प्रस्तुत इनके नामकरण में यहाँ भेद दिखता है- 2. सासादन की जगह सासादन सम्यक्त्व तथा 3. मिश्र की जगह सम्यक्त्व मिथ्यात्व । श्वेताम्बर सम्प्रदाय से सम्बद्ध आचार्य श्रीमत विजय सुशील सूरीश्वरजी म. सा. कृत गुणस्थानक प्रश्नोत्तर सार्द्धशतक में प्रस्तुत नामकरण भेद को इस प्रकार समझा जा सकता है- 3. मिश्र की जगह सम्यग् मिथ्यादृष्टि गुणस्थान 5. देश संयत की जगह देश विरति या विरताविरत 8. अपूर्वकरण की जगह निवृत्तिकरण 9. अनिवृत्तिकरण या बादर सम्पराय गणस्थान। डॉ. सागरमल जैन कृत गुणस्थान सिद्धान्तः एक विश्लेषण तथा जीव समास नामक कृतियों में नामकरण भेद इस प्रकार व्यक्त किया जा सकता है - 4. अविरत सम्यक्त्व की जगह अविरत सम्यक्दृष्टि 9. अनिवृत्तिकरण की जगह अनिवृत्ति बादर गुणस्थान ।। श्वेताम्बर सम्प्रदाय से सम्बद्ध आचार्य रत्नशेखर सुशील सूरीश्वरजी म. सा. कृत चौदह गुणस्थान में इस प्रकार स्पष्टता की गई है कि गुणश्रेणी के चौदह स्थानक ही गुणस्थान है - चतुर्दश गुणश्रेणि स्थानकानि तदादिमम्। मिथ्यात्वाख्यां द्वितीयंतु, सास्वादनामिधमातृतीयं मिश्रकं चतुर्यं सम्यग्दर्शनमव्रतम्। श्राद्धत्वं पञ्चमं षष्ठं प्रमत्त-श्रमणामिधम।।सप्तमं त्वप्रमत्तं चा पूर्वात् करणमष्टमम्। नवमं चानिवृत्त्याख्यं, दशमं सूक्ष्म लोभकम।। एकादशं शान्तमोहं, द्वादशं क्षीणमोहकम्। त्रयोदश सयोग्याख्यमयोगाख्यं चतुर्दशं। यहाँ नामकरण भेद को इस प्रकार व्यक्त किया जा सकता है - 4. अविरत सम्यक्त्व की जगह अविरत सम्यक्दृष्टि 5. देश संयत की जगह देश विरत 10. सूक्ष्म सम्प्रराय की जगह सूक्ष्म लोभ 11. उपशांतमोह की जगह शांत मोह।
उपर्युक्त वर्णित विभिन्न अभिगमयुक्त विचारों का विश्लेषण करने के पश्चात आध्यात्मिक विकास की स्थितियों को 14 गुणश्रेणियों या विकास क्रमों में वर्गीकृत कर स्पष्ट किया जा सकता है।
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