Book Title: Gunasthan ka Adhyayan
Author(s): Deepa Jain
Publisher: Deepa Jain

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Page 136
________________ (अ) तमोगुण- जो जीव की निष्क्रियता, जड़ता और अज्ञान का द्योतक है। तमोगुणी व्यक्ति के संदर्भ में गीता का कथन है- आयुक्तः प्राकृतः स्तब्धः नैष्कृतिकोलसः। विषादी दीर्घसूत्री च कर्ता तामस उच्यते।। 81 281। यहाँ इस सूक्ति में वर्णित लक्षणों को इस प्रकार स्पष्ट किया जा सकता हैआयुक्त- जिसके मन और इन्द्रियाँ वश में नहीं हैं व श्रद्धान तथा आस्तिकता का अभाव है। प्राकृत- जिसे अपने कर्तव्य का कुछ ज्ञान नहीं है। स्तब्ध- जो धनादि का मद करने वाला है। शह- जो धूर्त हेयोपादेय, विवेकशून्य दूसरों की आजीविका हरने वाला है। आलस- जिसकी इन्द्रियों व अंतःकरण में आलस भरा हुआ है। विषादी - निराशा और चिन्ता में डूबा रहने वाला। दीर्घसूत्री- कार्यों को भविष्य पर टालने वाला, स्थगित करने वाला। गीता के महानायक भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को संबोधित करते हुए आगे कहते हैंअधर्म धर्ममति या मन्ते तमसा वृता । सर्वार्थान्विपरीतांश्च बुद्धिसा पार्थ तामसी ।। 181 32 ।। इसका अर्थ है कि हे अर्जुन ! जिसकी बुद्धि अज्ञानमय अंधकार से भरी हुई है, अधर्म को धर्म मानकर सभी अर्थों को विपरीत देखती है या मानती है वह तामसी है। तामसी पकृति के लक्षणतामसी पकृति के लक्षणों को स्पष्ट करते हुए कहा गया है कि मोघाशा मोघाकर्माणो मोघज्ञाना विचेतसः। राक्षसी मासुरी चैव प्रकृति मोहनी श्रिता ||91121। इस सूक्ति का विश्लेषण इस प्रकार किया जा सकता है- मोघाशा- व्यर्थ की आशा करने वाले। मोघकार्माण- व्यर्थ के कार्य करने वाले अर्थात श्रद्धा रहित दान पूजा व तपश्चरण करने वाले। मोहज्ञान- तात्विक अर्थ से शून्य ज्ञान वाले। विचेतस- विक्षिप्त चित्त और विषय वासनाओं में रहने वाले ये सभी राक्षसी आसुरी और मोहनीय प्रकृति वाले जीव तामसी प्रकृति के धारक माने जाते हैं। तामसी प्रकृति का प्रभावतामसी प्रकृति का क्या प्रभाव होता है इसकी स्पष्टता निम्नलिखित सूत्र में मिलती है- एतां दुष्टिमउष्टभ्य नष्टात्मनोल्प बुद्धयः। प्रभवन्त्युग्रकर्मणः क्षयायः जगतो हिताः।।619।। अर्थात् मिथ्याज्ञान का आलम्बन करने वाले आसुरी प्रकृति वाले अपनी आत्मा को नष्ट करने वाले तथा क्रूर कार्य करने वाले समस्त व्यक्ति सारे लोक के लिए अहितकारक व सर्वनाश के निमित्त होते हैं। 136

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