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समीक्षा
अंत में यह कहा जा सकता है कि योग दर्शन विश्व और भारत के प्राचीन दर्शनों में से एक है। सैद्धान्तिक तौर पर इसमें भी आध्यात्मिक विकास की क्रमबद्ध व्यवस्थाओं का उल्लेख मिलता है जैला कि जैन दर्शन में वर्णित गुणस्थान अभिगम में प्रवधान हैं। यद्यपि गुणस्थान श्रेणियां योग दर्शन में ज्यों की त्यों नहीं मिलती तथापि समान भावना वाली आध्यात्मिक विशुद्धि की भिन्न अवस्थाओं कमेश इनके साथ व समकक्ष अवश्य रखा जा सकता है। इसका अर्थ इतना अवश्य निकलता है कि गुणस्थान आध्यात्मिक उत्थान पतन की जिन व्यवस्थों का उल्लेख करता है वह निरी कल्पना मात्र नहीं है अपित तार्किकता व नैतिकता की कसौटी से बाहर निकले सैद्धान्तिक व्यवहारों का सामान्यीकरण है।
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