Book Title: Gunasthan ka Adhyayan
Author(s): Deepa Jain
Publisher: Deepa Jain

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Page 166
________________ है। संघर्ष रहित समाज की दिशा में सोचें तो हम पाते हैं कि गुणस्थान पथ में हार तो है ही नहीं, है तो सिर्फ जीत का परिमाण। यहाँ कोई किसी का मार्ग अवरोधक नहीं बनता अपितु जीत के मार्ग पर अग्रसर होने के समय सहधर्मी साधक वात्सल्यपने का भाव लिए अभिप्रेरक बनता है। इसमें न राग होता है और न ही द्वेष, सिर्फ होता है सहपथअनुगामी के प्रति निश्कांछित प्रेम। इस प्रकार का अनोखा प्रगति पथ गुणस्थान ही है जो अपने सहअभ्यासी साधक जीवों को प्रेम व सहकार की भावना के साथ प्रेरणात्मक संवेग प्रदान करता है इस वर्तमान लौकिक दुनिया के सफलता मानक प्रतिस्पर्धी मान्य प्रतिमानों के विपरीत। समर्पित श्रद्धानुगामी साधक गुणस्थानक अवस्थाओं की जरूरतों के अनुरूप स्वयं को ढालते हुए परमसिद्ध पद में लीन होकर चिर आनन्द की अनुभूति करता है। जीव जब तक संसार में रहेगा तब तक शास्वत सुख की प्राप्ति नहीं होगी मोक्ष पाकर ही उसे शास्वत सुख की प्राप्ति हो सकती है मोक्ष ही चरम लक्ष्य है। अंत में यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि गुणस्थान अवधारणा के तार एक सुखमय मानव जीवन व मानवीय मूल्यों से जुड़े हुए हैं। इसमें निहित हैं जियो और जीने दो, बहुजन हिताय बहुजन सुखाय जैसे मूल्य जो न सिर्फ मानव जाति की अपित् समग्र जीव सृष्टि का उद्धार करने में निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं। 166

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