Book Title: Gunasthan ka Adhyayan
Author(s): Deepa Jain
Publisher: Deepa Jain

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Page 153
________________ (5) मिथ्यादृष्टि और प्रत्याहार- इसअवस्था में व्यक्ति सत्य या यथार्थ को स्वीकारता व समझता तो है किन्तु ग्रहण नहीं कर पाता यद्यपि दिशा व लक्ष्य उसके सामने तय होते हैं किन्तु आचरण का निमित्त या संयोग नहीं मिल पाता ठीक सम्पदृष्टि चतुर्थ गुणस्थान की तरह। (6) कान्तादृष्टि और धारणा- जिस प्रकार चित्त की स्थिरता में शुद्धता आधार रूप है उसी प्रकार कान्तादृष्टि के द्वारा जीव सत्-असत् में पूर्ण भेद दृष्टि के साथ आत्मशुद्धि के पथ पर साधना में स्थिर होता है। इस धारणा के समर्थन में छहढाला की छठवीं ढाल की ये पंक्तियां युक्ति संगत प्रतीत होती हैंजिन परम पैनी सुबुधि छैनी डारि अंतर भेदिया। वरणादि अरु रागादि तें निज भाव को न्यारा किया||8|| (7) प्रभादृष्टि और ध्यान- जहाँ धारणा में एक देशीय चित्त की स्थिरता रहती है वहीं प्रभादृष्टि और ध्यान अवस्था दीर्घकालिक व चित्त की पूर्ण स्थिरता की द्योतक है। कमोवेश यह स्थिति जैन दर्शन में आठवें से बारहवें गुणस्थान में देखने को मिलती है। यहाँ कर्म क्षय (क्षीण प्राय) हो जाता है। पं. दौलतरामजी अपने बहु प्रचलित लोकग्रंथ छःढाला में कहते हैंनिज माहि निज के हेतु निजकर आपको आपै गयौ । गुण गुणी जाता ज्ञान ज्ञेय मझार कछु भेद न रह्यौ।। (8) परादृष्टि और समाधि- अदवेत मार्तण्ड ज्ञानोदय में समाधि के अनुष्ठान की परम आवश्यकता दिखलाता है। मनोनाश-वासना-नाश तथा तत्व-ज्ञान के युगपद अभ्यास के बिना परमपद की अप्राप्ति के श्रुति-निर्देश द्वारा यह सिद्ध किया है कि सविकल्पक समाधि का अनुष्ठान नितान्त अनिवार्य है। यह सभी योगावस्था का उत्तरार्ध और परादृष्टि का पूर्वार्ध तेरहवें गुणस्थान जैसी समकक्षता रखता है किन्तु इस अंतिम योगावस्था में चित्त सम्पूर्ण शान्त व पूर्ण नैतिक साधन की सिद्धि को प्राप्त होता है अर्थात् निर्वाण की प्राप्ति करता है। यह चौदहवें गुणस्थान से तुलनीय है। समाधिफल-_योग दर्शन में समाधिफल का उप विभाजन एवं विश्लेषण इस प्रकार किया गया (अ) सम्प्रज्ञात समाधिफल-_सविकल्पक समाधि में सात्विक वृत्ति का ध्येय के आकार के रूप में सद्भाव रहता है। समाधि में ध्यान-ध्याता-ध्येय त्रिपुटी का विलय नहीं होता। इस सविकल्पक समाधि के चिरकालिक अनुष्ठान को सम्प्रज्ञात योग कहा है। दौलतराम कृत छहढाला में ध्यान-ध्याता-ध्येय त्रिपुटी की अवस्था को इस प्रकार स्पष्ट किया गया है 153

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