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धार्मिक या आध्यात्मिक मूल्य -नैतिक मूल्य या परमार्थ मूल्य
कलात्मक मूल्य - आर्थिक मूल्य आदि।
मूल्य प्रधानता के आधार पर ही साधक तत्त्वादि के संदर्भ में अवलोकन व बोध ग्रहण करता है एवं तदानुरूप ही चारित्र पथ का अनुसरण करता है। मूल्य मनोवृत्तियों की दृढ़ता में भी सहायक हैं। गुणस्थानक विकास के संदर्भ में मूल्यों की भूमिका को देखें तो कहा जा सकता है कि असत् व शुभाशुभ परिणाम प्रेरित सांसारिक मूल्यों की उपस्थित व्यक्ति को सम्यकत्व से नीचे के तीन गुणस्थानों (मिथ्यात्व, मिश्र व सासादन) की ओर ले जाने का कारक या निमित्त बनती है जबकि आध्यात्मिक व नैतिक मूल्यों की प्रधानता उसे चतुर्थ गुणस्थान से ऊपर के गुणस्थानों की ओर गति कराने में सहायक होती है। मूल्य अभिवृत्ति की दृढ़ता के कारण को मोड़ने का सामर्थ्य रखते हैं। इन पर संस्कार और वातावरण का प्रभाव होता है। मूल्यों के सृजन व सामन्जस्य के मिश्रण पर वातावरण का इतना प्रभाव होता है कि वे मानसिक द्वंद व संघर्षों को झेलने में चट्टान का कार्य करते हैं। मुल्य ही आत्मबल, विश्वास व चारित्र व्यवहार को दृढ़ बनाते हैं और इसके सहारे तय होते हैं आध्यात्मिक विकास यात्रा के सोपान। 3. अभिप्रेरण की विचारधाराएं- (Theories of Motivation) मनोविज्ञानियों का मानना है कि कोई भी व्यक्ति यदि किसी कार्य में शारीरिक-मानसिक रूप से संलग्न होता है तो उसके पीछे प्रेरणा प्रदान करने वाले जो घटक हैं वे हैं आवश्यकता, वातावरण और स्थापित व्यवस्थाएं। यहाँ अभिप्रेरण की सर्वाधिक प्रचलित तीन प्रमुख विचारधाराओं के साथ गणस्थान के मनोवैज्ञानिक पक्ष का विश्लेषण करना न्याय संगत होगा। (अ) मास्लो की आवश्यकता-क्रम अभिप्रेरण विचारधारा
आत्मिक
अहम्
सामाजिक आवश्यकताएं
सुरक्षात्मक आवश्यकताएं
शारीरिक आवश्यकताएँ
चित्रः- मास्लो की आवश्यकता-क्रम अभिप्रेरण विचारधारा
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