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8- परिपक्व(Mature)- यह परिपक्व, स्वतन्त्र एंव स्वयं में पूर्ण होता है। 9- सामाजिक सांस्कृतिक(Socialized Cultured)- कलापारखी। 10- विश्वासी (Trustworthy)- विश्वासी व कृतज्ञ। 11- अपारम्परिक(Unconventional)- समय के साथ विद्रोह करने वाले । 12- विनीत(Sophistication)- तर्कपूर्ण व शान्त प्रकृति के एकान्त प्रिय होते हैं। उपरोक्त को यदि गुणस्थानक स्थितयों के साथ संयोजित करें तो स्पष्ट होता है कि प्रशासक व चक्र विक्षिप्त व्यक्तित्व गुणधारी मिथ्यात्व के प्रेरक हैं, प्रसन्न मुख व धनात्मक चरित्र वाले सद् आचरणी गृहस्थ होते हैं, परिपक्व-विश्वासी तथा अपारम्परिक व्यक्तित्व वाले जीव उच्च नैतिक चरित्रयुत योग्यताओं को धारण करके कषायादि प्रवृत्तियों के नाशक बनते हैं और विनीत व्यक्तित्व के धारक साधना की चरम स्थिति के अधिकारी बन जाते हैं।
व्यक्तित्व विकास के
मनोवैज्ञानिक निर्धारक
बुद्धि या मानसिक
महत्वाकांक्षा एवं उपलब्धि
रूचि एवं दृष्टिकोण (Interest & Attitude or Vision)
इच्छा शक्ति (Will
समझ
संवेगात्मक एवं स्वभावगत विशिष्टताएं (Emotional & Temperamental make up)
(Level of Aspiration & Achievement)
(Intelligence)
Power)
चित्र:
व्यक्तित्व विकास के मनोवैज्ञानिक निर्धारक
बुद्धि या मानसिक समझ व्यक्तित्व विकास का वह आंतरिक पहलू है जो तर्क और विवेक की स्थिति का प्रतिनिधित्व करता है। यह घटक सम्यक्त्वी व मिथ्यात्वी बोध के लिए जिम्मेदार है और इसी पर आचरण की दिशा निर्भर होती है। यदि व्यक्ति महत्वाकांक्षी नहीं है तो वह कुछ भी करने के लिये अभिप्रेरित नहीं होगा उसका व्यक्तित्व पूर्णतः निकम्मा, आलसी, सुस्त और भाग्यवादी के रूप में ही उभरेगा। जबकि दृढ़ इच्छा शक्ति वाले व्यक्ति संवेगात्मक रूप से परिपक्व, विवेकपूर्ण, निर्णायक व धैर्यवान होते हैं। इसके विपरीत कमजोर इच्छाशक्ति वाला सदैव असमंजस की स्थिति में रहता है। संवेगात्मक परिपक्वता के अनुरूप
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