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है। इस परिमाण में दस करोड़ का गुणा करने पर क्षेत्र सागरोपम प्रमाण आता है। इनको भी उद्धार, अद्धा व क्षेत्र के द्वारा मापा जाता है। भाव परिमाणभवनः भावः। भाव शब्द की उत्पत्ति है। इसके दो भेद हैं- (अ) गुण निष्पन्न (जीव व अजीव गुण परिमाण) जीव गुण परिमाण तीन प्रकार(ज्ञान, दर्शन और चारित्र) का है तथा अजीव गुण परिमाण 5 प्रकार(वर्ण, गंध, रस, स्पर्श व संस्थान) का। (आ) नोगुण निष्पन्न जिसे संख्या परिणमन भी कहा जाता है। संख्या के दो भेद है- श्रुत और गणित संख्या। श्रुत जो कि अक्षर, पद, शलोक, संघात, बेढ़, वेष्टक, गाथा, पर्याय, पाद, अनुयोगद्वार अध्ययन, श्रुतस्कन्ध, अंग व उद्देशक आदि का प्रतिनिधित्व करता है उसके पुनः दो भेद किए गए हैंकालिक(आचारांग आदि ग्रंथ) तथा उत्कालिक(प्रज्ञापना व जीवाभिगम आदि ग्रंथ)। गणितीय संख्या के संख्यात, असंख्यात व अनन्त ये तीन भेद हैं। जब जम्बू द्वीप(1 लाख योजन का आकार) जैसे आकार वाले 4 प्याले ( अनवस्थित, शलाका, प्रतिशलाका व महाशलाका)सरसों से भर दिए जाएं तो उन सरसों के दानों की संख्या को उत्कृष्ट संख्यात कहा जा सकता है। सन प्रत्यक्ष व परोक्ष प्रमाण होता है। अनुमान व उपमान के द्वारा इनका प्रमाण तय किया जाता है। दर्शन के 4 भेद (चक्षु, अचक्षु, अवधि व केवल) हैं इसका अनुभव किया जाता है। चारित्र के 5 भेद हैं - (सामायिक- महव्रतों को धारण करने से पूर्व यह चारित्र ग्रहण किया जाता है, क्षेदोपस्थापनीय- सातिचार व निरतिचार भेदरूप यह चारित्र दीक्षा पर्याय क्षेदकर पुनः महव्रतों की स्थापना करने में मददरूप होता है, परिहार विशुद्धि- यह तप विशेष की साधना से अर्जित आत्म-विशुद्धि है , सूक्ष्मसम्पराय- इसमें क्रोधादि कषायोंका क्षय करके साधक 10वें गुणस्थान में पहुँचता है, तथा यथाख्यात- अर्थात् अक्खाय पूर्ण कषाय रहित है(प्रतिपाती-उपशान्त मोह से पहँचा साधक 11वें गुणस्थान को प्राप्त होता है व अप्रतिपातीक्षय करके पहुँचा साधक 12वें गुणस्थआन को सुनिश्चित कर लेता है) । जीवद्रव्य परिमाण-मिथ्यादृष्टि जीव द्रव्य की अपेक्षा से अनन्त हैं क्षेत्र की अपेक्षा से अनन्त प्रदे तथा काल की अपेक्षा से अनन्त अवसर्पिणी-उत्सर्पिणी काल तुल्य हैं। -सास्वादन तथा मिश्र गुणस्थान में अधिकतम पल्योपम के असंख्यात भाग जितने होते हैं तथा जघन्य से इसकी संख्या एक है। -अविरत सम्यग्दृष्टि व देशविरति गुणस्थान में न्यून व अधिकतम दोनों की अपेक्षा से क्षेत्र पल्योपम के असंख्यातवें भाग जितने दोते हैं। -प्रमत्तसंयत जीवों का न्यूनतम परिमाण दो हजार कोटि तथा अधिकतम 9 हजार कोटि का
-अप्रमत्तसंयत जीवों का परिमाण संख्यात कहा गया है। -उपशमक श्रेणी में एक समय न्यनतम एक व अधिकतम 54 जीव प्रवेश कर सकते हैं।
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