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संहनन, अप्रशस्त विहाययोग गति, स्त्रीवेद, नीचगोत्र, तिर्यञ्चगति, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी, उद्योग, तिर्यगायु ) का बंध होता है। 3- अप्रत्याख्यानावरण कषाय उदय जनित अविरति से 12 प्रकृतियों (अप्रत्याख्यान चार, बज्र वृषभ नारांच संहनन, औदारिक शरीर,औदारिक बंधन, औदारिक संघात, औदारिक आंगोपांग, मनुष्यगति, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, मनुष्यायु आदि) का बंध होता है। 4- प्रत्याख्यनावरण कषाय उदय जनित अविरति से 4 प्रकृति ( प्रत्याख्यान कषाय चार) का बंध होता है। 5- संज्वलन के तीव्र उदय जनित प्रमाद से 6 प्रकृति(अस्थिर, अशुभ, असाता वेदनीय, अयशकीर्ति, अरति और शोक) का बंध होता है। 6- संज्वलन और नौं कषाय के मन्द उदय से 58 प्रकृत्(निद्रा,प्रचला, देवायु, तीर्थंकर, निर्माण, प्रशस्त, विहायोगति, पंचेन्द्रियतेजस, कार्मण, आहारक, आहारक आंगोपांग, समचतुरस्र,संस्थान, देवगति, देवगत्यानुपूर्वी, वैक्रियक, वैक्रियक आंगोपांग, वर्ण, रस, गंध, स्पर्श, अगुरुलघु, उपधात, परघात, उच्छवास, त्रस, वादर, पर्याप्तिक,प्रत्येक स्थिर, सुशुभ, सुभग, सुस्वर, आदेय हास्य, रति, भय, जुगुप्सा, पुरुषवेद, संज्वलन, कषायचार, मत्यावरण आदि पाँच दानान्तराय आदि पाँच चक्षुदर्शनावरण, आदि चार यशः कीर्ति, उच्चगोत्र) का बंध होता है। 7- योग से एक सातावेदनीय का बंध होता है। 8- तीर्थंकरप्रकृति का बंध सम्यकदृष्टि के चतुर्थ गुणस्थान से आठवें गुणस्थान के छठवें भाग तक ही होता है। 9- आहारक शरीर, आहारक आंगोपांग का बंध सातवें से आठवें गुणस्थान के छठे भाग तक ही होता है। 10- तीसरे गुणस्थान में किसी भी आयु का बंध नहीं होता है। गुणस्थानों के उदय संबन्धी नियम1- तीर्थंकर प्रकृति का उदय तेरहवें और चौदहवें गुणस्थान में ही होता है। 2- आहारक शरीर और आहारक आगोंपागं का उदय छठवें गुणस्थान में ही होता है। 3- सम्यक् मिथ्यात्व प्रकृति का उदय तीसरे गुणस्थान में ही होता है। 4- सम्यक् प्रकृति का उदय चौथे से सातवें गुणस्थान तक वेदकसम्यकदृष्टि के ही होता है। 5- नरकगत्यानुपूर्वी का उदय दूसरे गुणस्थान में नहीं होता है। 6- चारों आनुपूर्वी का उदय चौथे गुणस्थान में होता है। 7- विरह गति में पहला, दूसरा और चौथा गुणस्थान में ही होता है। 8- दूसरा गुणस्थान गिरते समय ही होता है। 9- दूसरे गुणस्थानवी जीव मरकर नरक नहीं जाता। 10-पहला गुणस्थान एक मिथ्यात्व और चार अनंतानुबंधी के उदय से होता है। 11-दूसरा गुणस्थान चार अनंतानुबंधी के उदय से होता है।
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