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(ब) प्रमोद- परहित तुष्टिमुर्दिता (स) करुणा- दुखी प्राणी को देखकर ह्रदय काँप जाना दुख दूर करने का यथा संभव प्रयास करना (द) माध्यस्थ भावना- अत्यन्त घोर पापी का भी तिरस्कार न करना
इस गुणस्थान में आत्मा की विशिष्ट शुद्धि हो जाने से छः आवश्यकों का अभाव हो जाता है। "आया समाइए, आया समाइस्स अटठे" अर्थात् आत्मा ही सामायिक है और आत्मा ही सामायिक का अर्थ है। इस प्रकार उत्तम ध्यान के योग से आत्मा की शुद्धि होती है। इस गुणस्थान में आत्मा संकल्प- विकल्प से मक्त होती है। 9. अनिवृत्तिकरण(बादर सम्पराय) गुणस्थानसम्पराय= चारित्र मोहनीय कषाय बादर= स्थूल। मोह के सूक्ष्म स्वरूप की उपस्थिति के चलते इसे बादर सम्पराय गुणस्थान कहा जाता है। बादर(स्थूल) कषायों का क्षय या उपशम इस गुणस्थान का शाब्दिक अर्थ है। इसका काल एक अन्तर्मुहूर्त का है। जब जीव केवल (9 में से 6 कषाय भाव- हास्य, रति, अरति, भय, शोक व घृणा को छोड़कर) बीजरूप(संज्जवलन) लोभ को छोड़कर शेष समस्त काषायिक भाव विनिष्ट कर देता है या उपशमकर लेता है तब उसे यह अवस्था प्राप्त होती है। उपशम की स्थिति में इन परिणामों के पनः प्रकटीकरण की संभावना को नकारा नहीं जा सकता फिर भी आध्यात्मिक विकास यात्रा के पथिक का मनोबल इतना दृढ़ हो चुका होता है तथा चारित्र पना विशुद्धि की सामान्य दशाओं में पतनोन्मुख होने की संभावना अतिअल्प हो जाती है। सूक्ष्म लोभ से जुड़ी जो 9 कषाय हैं उनमें से उक्त 6 के शेष रहने से ही मुख्य काषायिक परिणामों के उदय की संभावना को व्यक्त किया गया है। भाव निर्जरा- कषायों या इच्छाओं का यम रूप त्याग भाव निर्जरा है। वृत्ति को मनोवैज्ञानिक आधार माना जा सकता है- क्योंकि पदार्थ अच्छा या बुरा नहीं होता किन्तु पदार्थ के प्रति जो राग है वह दुख का मूल है वही त्याज्य है। जीव में धीरे-धीरे पदार्थों को एक-एक करके छोड़ते जाने से उससे मक्ति की वत्ति विकसित होती है | फिर पदार्थ को स्वयं के सुख-दुख का कारण नहीं मानता। मर्यादित आहार भी राग छुटने की प्रवृत्ति का एक भाव है। व्युच्छित्ति- जिस गुणस्थान में जिन कर्मप्रकृतियों के बंध, उदय तथा सत्ता की जो स्थिति है वह उसी तक ही रहे अर्थात् आगे के किसी गुणस्थान में उस कर्म प्रकृति का बंध, उदय एवं सत्ता का न होना व्युच्छित्ति है। इस गुणस्थान में प्राप्त अध्यावसायों की निवृत्ति नहीं होने से इसे अनिवृत्तिकरण बादरसाम्पराय गुणस्थान कहा जाता है। इसमें अप्रत्याख्यानादि बारह बादर कषाय और नौ कषायो का उपशमन या क्षयण आरम्भ होता है। 10. सूक्ष्म सम्पराय गुणस्थानइस गुणस्थान में आत्मा के उपरोक्त 6 भावों भी क्षय या उपशम हो जाते हैं और फिर रह जाता है मात्र सूक्ष्म लोभ। दिगम्बर जैन दर्शन के मुताबिक यह कहा जा सकता है कि 28
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