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ग्रहस्थों की धार्मिक कुल क्रियाओं का पालन करने वालों को ही श्रावक माना गया है वह अधिक से अधिक असंयत सम्यग्दृष्टि नामक चतुर्थ गुणस्थान का अधिकारी होता है।
2- नैष्ठिक श्रावक देश संयम का घात करने वाले अप्रत्याख्यानावरण कर्म के अभाव से क्रमशः व्रतों की बृद्धि करता हुआ दर्शन सामायिक आदि ग्यारह संयम स्थानों और उत्तम लेश्याओं को धारण करने वाला ग्रहस्थ नैष्ठिक श्रावक (ग्यारह प्रतिमा धारी) कहलाता है। ये प्रतिमाऐं हैं
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1- दर्शन प्रतिमा संसार शरीर और भोगों से विरक्त तथा पंचपरमेष्ठी का भक्त ऐसा सम्यग्दृष्टि दर्शन प्रतिमाधारी कहलाता है वह त्रस जीवों से युक्त मद्य, मधु एवं मांस आदि निन्दनीय वस्तुओं का कभी सेवन नहीं करता है।
2- व्रत प्रतिमा पाँच अणुव्रत, तीन गुणव्रत, चार शिक्षाव्रत का निरतिचार पालन करना व्रत प्रतिमा है।
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3- सामायिक प्रतिमा- तीनों समय ( सन्ध्याओं) में मन, वचन और काय को शुद्ध करके सामायिक करने को सामायिक प्रतिमा कहते हैं। शत्रु, मित्र, काँच, मणि, पाषाण, सुवर्ण आ में राग द्वेष के अभाव को भी समता सामायिक कहा गया है।
4-प्रोषधोपवास प्रतिमा- प्रत्येक मास के चारों पर्वों ( अष्टमी चतुर्दशी) में अपनी शक्ति को न छिपाकर जो प्रोषधोपवास का नियम लेता है उसे चार प्रतिमाधारी श्रावक कहते हैं।
5- सचित्त त्याग प्रतिमा इस प्रतिमा को धारण करने वाला श्रावक सचित्त वनस्पति नहीं खाता और सचित्त (अप्रासुक) जल का भी त्यागी होता है।
6-रात्रि भुक्ति त्याग प्रतिमा सूर्यास्त के अड़तालीस मिनट पूर्व और सूर्योदय के पश्चात् अड़तालीस मिनट के भीतर भोजन करना रात्रि भोजन का अतिचार माना जाता है। छठी प्रतिमाधारी निरतिचार रात्री भोजन त्याग व्रत का पालन करता है। स्वामी समतभद्र और कार्तिकेय के मत से इस प्रतिमा को धारण करने वाला श्रावक रात्रि में चारों प्रकार के आहार (खाद्य, स्वाद्य, लेह्य और पेय) का त्याग कर देता है।
7- ब्रह्मचर्य प्रतिमा मन, वचन और काय से स्त्री मात्र का और स्त्री के लिए पुरुष मात्र की अभिलाषा न करने वाले को ब्रह्मचर्य प्रतिमाधारी श्रावक श्राविका कहते हैं।
8- आरम्भ त्याग प्रतिमा- जो जीव हिंसा के कारण नौकरी, खेती, व्यापार आदिक आरम्भ के कार्यों से विरक्त होता है - कार्तिकेयानुप्रेक्षा में जो स्वयं न आरम्भ करता है, न कराता है और न उसकी स्वयं अनुमोदना करता है उसे आरम्भ त्यागी बतलाया है।
9- परिग्रह त्याग प्रतिमा लज्जा निवारण और शरीर की रक्षा मात्र के उद्देश्य से कम से कम साधारण और अहिंसक साधनों से उत्पन्न हुए वस्त्रों के सिवाय अन्य समस्त परिग्रह आसक्ति का त्याग करना ।
10 अनुमति त्याग कृषि आदि आरम्भ में परिग्रह में विवाह आदि में तथा अन्य लौकिक कार्यों में अनुमति देने के त्याग को अनुमति त्याग प्रतिमा कहा गया हैं।
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