Book Title: Gautam Nam Japo Nishdish
Author(s): Dharnendrasagar
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

View full book text
Previous | Next

Page 11
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुरोवाक् जे कीजे गौतम नो ध्यान, ते घर विलसे नवे निधान आचार्यदेवेश श्री पद्मसागरसूरि जैन परम्परा के सामाजिक अङ्ग में गौतमस्वामी का वही स्थान है, जौ वैदिक परम्परा में विघ्नहर गणेश का. जो लोग भगवान महावीर के इन प्रथम शिष्य की महिमा से अपरिचित भी हैं - उनके घर में भी हर शुभ कार्य के आरंभ में गौतमस्वामी को याद किया जाता है. यह उनके केवल भगवान महावीर के प्रथम गणधर होने के कारण अथवा केवलज्ञान उपलब्धि के पश्चात मोक्ष प्राप्त करने के कारण ही नहीं है, इसके पीछे कारण है उनके द्वारा आत्म-शुद्धि के मार्ग पर दृढ़ता से चलते हुए प्राप्त विशेष लब्धियाँ तथा उनके परम कल्याणमय स्वभाव के परिणाम स्वरूप इन लब्धियों से जन-जन को पहुँचा लाभ. गौतमस्वामी को जन सामान्य विघ्नहर रूप में जानता है तो विद्वद समुदाय तथा त्याग मार्ग के अनुगामी उन्हें भगवान महावीर के परम्परा के प्रथम पुरुष तथा तीर्थंकर वाणी को शब्दों में गुंफित करने वाले प्रथम गणधर के रूप में जानते हैं. आज जो भी जैन वाङ्गमय हमें उपलब्ध है, उसका प्राथमिक स्रोत गौतमस्वामी ही हैं. गणिपिटक के रूप में सङ्कलित तीर्थंकर वाणी गौतमस्वामी के नेतृत्व में गणधरों ने सङ्कलित की और सुधर्मास्वामी ने परम्परा को प्रदान की. आश्चर्यजनक संयोग यह है कि जिन इन्द्रभूति गौतम ने तीर्थंकर द्वारा प्रदत्त समस्त को धारण किया वे वैदिक परम्परा के शीर्षस्थ विद्वान भी थे. मीमांसक और यज्ञाचार्य के रूप में सभी ओर इनकी प्रसिद्धि थी. वेद-विद्याओं में पारंगत इन्द्रभूति के स्तर के दूसरे विद्वान उस काल में समस्त उत्तर भारत में नहीं था. ७ For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 ... 124