Book Title: Dhurtakhyan
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Page 6
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धुर्ताख्यान. ना मागीने आ उजेणी नगरीनी पासे तमने आवी मल्यो ए वात जो साची होय तो द्रष्टांते करीने तेनी मने खातरी करी आपो एने जो असत्य जाणीने मानो नहीं तो आ सर्व धूनने खावाने आपो. एवं मुलदेवनु कहेवू सांभळीने कंडरीक नामनो बीजो धूतों नो सरदार बोल्यो के जे भारत रामायणादिक ग्रंथाने जाणतो होय तो ते तारा वचनने असत्य केम कहे. प्रश्न मूलदेव-ए तमे सिद्ध करी आपो,जे हाथी कमडलमां केम मायो ने छ महिना सुधी मां भोलवायो केम तेमज ते कमंडलनी चापडीना सुक्षम छिद्रमांथी हुँ अने हाथी बाहेर केम नीकल्या तथा हाथी बाहेर नीकलतां तेनां गलनो अग्रभागनो अंत तेमां अटकी केम तो अने हुं गंगानदीने हाथथी तरीने बीजे ठे केम उतयों त्यार पछी छ महीना भूख परशने सहीने माथा उपर जलनी धारा केम धा ण करी ए सर्व वात शास्त्रनी शांखथी मेलवी आपो. नत्तरण कंडरीक--- हे मूलदेव, सांभळो, भारत मायणादिक जे ग्रंथो सांभलियें छैये ते जो साचा For Private and Personal Use Only

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