Book Title: Dhurtakhyan
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Page 45
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धुर्ताख्यान. __ खंडपाना—(हसीने ) में जे अनुभव्युं ते सां. भलो. हुं यौवन समयमा रुप लावण्यनु निधान हती. कोहक समये हुं रुतुवंती छतां मंडपमां सूती हती त्यां पवन मारं लावण्य जोइने विस्मय पामी मने भोग्वी. केटलेक कालें पुत्र आव्यो ते जन्मती वखते मारीसाथै वातकरी जतो रह्यो. ए में अनुभन्युछे जो असत्य कहोतो सर्वने भोजन आपो जो सत्य कहोतो सास्त्रनी सांखे मेलवी आपो. मूलदेव-कुंताने पवने भोगव्याथी भीमनामे पुत्र थयो. तथा अंजनाने पवने भोगवी तेथी हनुमंत पुत्र थयो. ए जो पुराणनी वात सत्य छे तो पवने भोगव्याथी तुं पुत्रवती थइ ए पण सत्य छे. खंमपाना-ते पुत्र मारीसाथे आलाप संलाप करीने तरत केम जतो रह्यो ? मूलदेव-पाराशर ऋषीएं योजनगंधा (जेना शरीरनो दुर्गध एक योजन सुधी जाय एवी) माछण भोगवी तेथी व्यासनामे पुत्र जनम्यो. तेणे जनम For Private and Personal Use Only

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