Book Title: Dhurtakhyan
Author(s): 
Publisher: 

View full book text
Previous | Next

Page 43
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 42 धुर्ताख्यान. तना चोर तुं क्याथी जइश एवं शांभली गरुडे ते. मनी शाथे मोटो युद्ध करी चारे दिशे पोतानी पांखाने प्रहारे गणा देव दाणवने यमने घेर गेंचाड्यां एम थोडी वारमा शर्व देवतानां शाथने नाशतो जाणी इंद्रे जवाला शस्त्र जलजलतुं वज्र गुरुडने मा. रवा मुकीऊ ते पण गुरुडना शरीरे अफळाइ हेठो पडयो पछे ए वज्र गुरुडने काइ लागु नथी एवु शरव देवताने जाण करवा माटे ते वज्रने गुरुडे पोतानी चांचमां धरी राख्यु पछे गुरुडथी पीहीनो थको इंद्र वीष्णु पासे गयो विष्णु पण कोपांध थयो थको बार शुर्यनातेज जेटलो तेजछे जेमां एवो चक्र लइ गरुडने मारवा दोडयो पछी शनीश्वरादीक ग्रह तथा सर्वऋषी योएं जइ विष्णुने विन्ती करीजे हे स्वामी तमे सर्व व्यापी छो शर्व भुवनना नाथ छो माटे तमो विचार कर्याविना कोप करो ते सारं नही कारण ए गरुडी तारो बंधुछे माटे क्रोध मुकीद्यो ने म्लेछनी परे गोत्रनो क्षय मकरो एवा ग्रह तथा ऋषीयोना वचन सांभलीने सांन्त थयेला श्रीक्रष्णे गुरुड शाथे मेलाप करी पछे गुरुडे घेर जइ अमृत आपी पोतानी मातानुदासपणुंटाल्यु जो गुरुडे वटवृक्ष उपाड्यो ने For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58