Book Title: Dhurtakhyan
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Page 54
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धुर्ताख्यान. थकी तथा पृथ्वियें आलोटती थकी एवी शेठे जोइने पोताना मनमां भय पाम्यो पछी विचार्यु जे में मारा सेवकने हुकम कीघो जे एने घेरथी बाहेरकाढो पण एथी एनो पुत्र मरण पाम्यो मोटो उत्पात थयो जो एवात राजा सांभलशे तो मने दंड करशे एम विचारीने शेठ पोताना परिवार सहित दीन थइने ते धूर्तणी ने मनाववा लागो अने कहेवा लागोजे हे बहेन, जे भव्यतव्यता हती ते थइ हवे विलाप कीधे सुं थाय ताहारे द्रव्य जोइये ते हुं आपु एमकही पोतानी रत्न जडीत मुद्रीका हती ते धूर्तणीने आपी अने समखवरावी कडं जे राजापासे वात करवी नही पछी ते धूर्तणी मुद्रीका लइ उद्याने आवी सर्व धूर्तीने मुद्रिका देखाडी बजारमा जइ देची तेना पैसा उत्पन्न करीने सर्व धृर्तने भोजन कराव्यं सर्व संतोष पाम्या इति संपूर्ण. त्रण माहा मूर्योनो इष्टांत. मुर्ख पहेलो-मारे गेर चंगीने निरंगी नामे वे स्त्रीयो छे ते मने गणुं सुख आपे छे, एक दीवश हुं पथारीमा सूतो सूतो उघी ग्यो, एटलामा बन्ने स्त्रीओ आवी मारे डावे तेम जमणे पडखे सूइ गई अने मारो अकेको हाथ लइ पोत पोतानी For Private and Personal Use Only

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