Book Title: Dhurtakhyan
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Page 52
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धुर्ताख्यान. नुत्तर--सर्वधूर्त बोल्या, हे खंडपाना, अमने बृहस्पति तथा विष्णु पण जीती शके नही तो तुं स्त्रि मात्र केम जीतीश ? प्रखंमपाना--तिवारे हवे तमाशो जुओ हूँ हमणां तमोने हराएँ छ एम कही प्रश्न बोली जे वायुएं अपही ते राजानां वस्त्र तेने जोवाने हुं राजाना हुकमथी निकली तथा पूर्वे घणाकालनां मारा चार दास नाशी गया हता तेनी तथा वस्त्रोनी शोध करती पृथ्वीमा भमती भमती हुँ इहां प्राचीने तमोने ओलख्या जे मारा नाशी गयला चार दास ते तमेजछो अने वस्त्रपण तमेज लइ गया छो जो ए वात न मानो तो सर्व महाजनने भोजन आपो अने जो सत्य मानो तो तमे वस्त्रचोर तथा माहरा दास छो. न--सर्वधूर्त लज्जायमान थया अने विषवाद पामता बेहुरीत उत्तर आपवाने असमर्थ थका दिन थइ कहेवा लाग्या जे हे खंडपाना, ताराथी अधिक बुद्धिवंत जगतमां कोई नही जेणे अमारा जेवा माहा धूर्त माहावुद्धिवंतने जीत्या माटे हवे सात दिवसना वरसाद थकी भुख्या सर्व धूर्तने भोजन करावो. For Private and Personal Use Only

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