Book Title: Dhurtakhyan
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Page 56
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धुर्ताख्यान. घोई गई एटले ते पग में डावा पगउपर मुक्यो ते जोई रीछडीए गुसे थइने मारा जमणा पग उपर शांबेलांनो छुटो धा कर्यो एवी रीते मारो जमणो पग भांग्यो त्यारे खरी क्रोधायमान थइ रीछडीने गाळो देवालागी के तुं मोटी फुवड छे तने अ. देखाई तथा घणो अहंकार छे तुं धणीने बीलकुल पत करती नथी वळी रात्रे तो बीजा पुरुषने भोगवे छे त्यारे रीछडी कहेवा लागी के तमारी पण घणी ' खराब टेवो छे. तेनो तो पेहेलां त्याग करो? पछी ने कहो वळी तुं हमेशां चारे चोवटे खुली रीते मे छे अने ते वात आखू शेहेर पण जाणे छे आ आपणो धणी तो बीचारो गाय जेवो छे बीजो होय तो नाक कान कापी नांखे ते शांभळीने क्रोध चढपाथी मोटुं सांबेल लावी तेणीए मारा डाबा पग उपर मारीने ते पण भांगी नाख्यो. मारो पग ते भाग्यो तो तारो पग में भाग्यो एम आपण बनेनुं साटुं वळयुं ए प्रकारे कही तेओ तो आनंद पामी हवे मारा जेवो महा मूरख, के, गमार, आदुनी. आमां सोध्यो पण मळवो मुशकेल छे. पछी त्रीजी रख बोळवा लाग्यो के, हे बुधीवंत शेठ! मारा समा For Private and Personal Use Only

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