Book Title: Dhurtakhyan
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Page 55
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धुर्ताख्यान. छातीउपर राख्यो ते वखते मारा घरमां दीवो बळतो हतो तेमांनी वाट उदर आवी खेंचीने चालतो थयो अने बरोबर मारा उपर उंचे अधर रही, डाबी आंख उपर ते बळती वाट नांखी त्यारे में विचार्यु के, हाथी ते वाट दुर कर हवे जो डाबो हाथतेआंथी खसेडुं तो रंगीने गुसो चडे अने जो जम' खसेडुं तो चंगी गुसे थइ माथु फोडे, पछी में विचायु के मारी आंख जाय तो भळे, पण स्त्रीनो स्नेह तुटे नहीं तो सारु, एम वीचारी जेमनो तेम रह्याथी मारी डाबी आंख बळी गई तेथी मारूं नाम शुक्रराज पड्युं एवी रीते मात्र स्त्रीनां स्नेहनी खातर में मारी आंख खोई माटे मारी महा मूरखाइनो तमो बुद्धीवंत वीचार करो. त्यारे बीजो मुर्ख कहेवा लाग्यो के, मारी मूर्खाइनी पण वात सांभळजो ? मारे पण खरी अने रीछडी नामे वे स्त्रीओ हती में मारो जमणो पग खरीने अने डाबो पग रीछडीने सोंपयो हतो एवी रीते हुं हमेशां सुख भोगवतो कारण के सत्री साथे हमेशां काम तो होयज हवे एक दीवश हुं ज्यारे घेर ग्यो त्यारे खरी पाणी लइने मारो जमणो पग धोवा लागी अने रीछडी ते नजर राखीने जोवा लागी. हवे खरी जमणो पग For Private and Personal Use Only

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