Book Title: Dhurtakhyan
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org .org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अथश्री धूर्ताख्यान प्रारम्यते. ...---- -- श्री मालवा देसमां उज्जेगीनामनी नगरीनी उत्तर शाए एक उद्यान छे तेमां केटलाएक धूर्त माहा ग्यावी, न करवा योग्य कामने करवावाला, सदा नाम उपना करनारा, महानिर्दय, स्त्री बाल वृद्ध या विस्मातीनी घातपरवावाला, बोलवामां अति तर, धूप, अंजन तमा चूर्णनां योग अवस्वापिनी भनी प्रमुख विद्याना बलधी स्वरभेद, विषभेद, / वर्णभेदे करीने जगतने छेतरवा वाला एवा गोशो धुर्त एकठा मलीने फरता फरताआवीने .. तेओना सरदारो मुलदेव कंडरीक षाढ शंश तथा खंडवणा नाममा पांच यहताते एकेकनो परिवार पांचशे पांचशे धूर्तनो .. तेओमां पांचमो सरदार स्त्री हती लेने ते स्त्री धूर्तनो परिवार हतो. एवी रीते मलीने अडीहजार धूर्त त्यां एकठाया मांनो मुलदेव पहेलो सरदार सर्वलोकने For Private and Personal Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धुर्ताख्यान. जाणी तो तथा सर्व धुतानो शिरोमणि ह अंने बीजा तेनाथी उतरती पदवीना हता ते बधा त्यां वशी रह्या छे एटलामां दैवयोगे में वर्षाद आव्यो तेथी कूवा, तलाव, तथा वा वगेरे सर्व जलस्थानक भराई गया. पृथ्वी उप कीचड घणी थयाथी रस्तामां चलाई शका नही, एवं थयु. वर्षाद घणो पडयो तेथी को लोक रस्तामा फरी शके नही अने कोई कां क्रियापण करी शके नहीं तेने लीये ते वष समयमां ते धूतारा लोको भूख तथा तरश' पीडाया छतां पोत पोतामां कहेवा लाग्य। कोई माणस घरथी बाहेर नीकलतो नथी. जे ठगीने धन लावी निर्वाह चलावीए आंद आपणने खावानेकोण देशे ? त्यारे मुलदेव सर्व धूर्तामां मुख्य हतो ते कहेवा लाग्य जेणेजे सांभल्युहोय, तथा अनुभव कर्यो हो वगेरे जेवी जेने खबर होय ते सहु पोत पोत' जाणेली वात कही संभलावो, ते सांभर तेने खोटुं कहेशे अथवा ए केम मनाय / संशय कहाडशे तेना उपर आ सर्व धूर्तानो खाव For Private and Personal Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धुर्ताख्यान. 'च लागु पडशे नेतेणें सर्वेने खावाने आपq अने जे रत रामायणादिक इतिहासो तथा भागवतादिक णोना वचने करी कहेली वात खरी ठेरावी आपशे ने आ सर्व माहजन साथने आश्चर्य उपजावे एवी तोथी रंजन करशे ते बधा धूर्तमां मुख्य तथा महा डिमान गणायो छतां ते सर्वने भोजन देवाना परचमाथी छूटशे. एवं सांभळीने तेने बीजो कंडरीकनामा धूर्त कहेवा लाग्यो के तमे घणुं सारूं कर्तुं अने तमे सर्वथी मोटा माटे प्रथम तमेज जे सांभल्युं अनुभव्युं होय ते ही संभळावो त्यारे मुलदेव बोल्यो. प्रश्नण्मूलदेव-मारी यौवन अवस्थाना समये छेतपदार्थनी अभिलाषाथी माथाउपर जलधारा हन करती थको मारा स्वामीने प्रसन्न करवा सारु पदा मेलववानी इच्छा करीने साथे भातुं लईने i: हायनां छत्र बीजा हाथमा कमंडलु वगेरे साह्य ने हु रस्तामा चाल्योने मार्गमा एक पर्वत मोटो मदोन्मत्त वनगज (जंगली हाथी) मारी चे आवतो में दीठो त्यारे हुं भयथी कंपायमार For Private and Personal Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धुर्ताख्यान थयो थको आ शरीरने शाने आधारे राखं, के शरण ले उं तथा कइ जगामांप्रवेश करूं एवी चिंतव करी मरणना भयवडे काई विचार न करता हूं मंडळमांहे पेठो ते जोइने ते हाथी पण मारी पाछ दोडीने पोतानो शुंडादंड ऊंचो करी लाल चोल ने करी मारी पाछल ते कमंडलमा पेठो त्यारे हुं मह भयने पामीने खूणे खांचेथी नाशी जवानी जगा जं तो ने हाथीने छ महिनासुधी भमादीने ते कमंडलनी ग्रीवामाथी बाहेर नीकल्यो. शारी पाछल ते हाथी पण नीकल्यो ते वखते ते कमंडलनी ग्रीवाना छिद्रमां हाथीना एक चालना अग्रभागनो अं वळगी रह्यो तेथी ते हाथी त्यां रोकाई रह्य अने मारी पाछल आवी शक्यो नही त्या हूं निर्भय थईने आगल चाल्यो. केटलुं / चाल्या पछी रस्तामां ऊंडा पाणीधी भर. गंगा नामनी नदी प्रावी तेने जोड़ने हुं व्या लथगो. जवानी रस्तो ते शिवाय कोइ बीजो नहन ते पीते नदीने हाथवतीतरीने मारा स्वामीने घेर / यो त्यांछ महिना भुख पातर वेटिने तथा म उपर जलधारा सहन करीमीती वंदना .री For Private and Personal Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धुर्ताख्यान. ना मागीने आ उजेणी नगरीनी पासे तमने आवी मल्यो ए वात जो साची होय तो द्रष्टांते करीने तेनी मने खातरी करी आपो एने जो असत्य जाणीने मानो नहीं तो आ सर्व धूनने खावाने आपो. एवं मुलदेवनु कहेवू सांभळीने कंडरीक नामनो बीजो धूतों नो सरदार बोल्यो के जे भारत रामायणादिक ग्रंथाने जाणतो होय तो ते तारा वचनने असत्य केम कहे. प्रश्न मूलदेव-ए तमे सिद्ध करी आपो,जे हाथी कमडलमां केम मायो ने छ महिना सुधी मां भोलवायो केम तेमज ते कमंडलनी चापडीना सुक्षम छिद्रमांथी हुँ अने हाथी बाहेर केम नीकल्या तथा हाथी बाहेर नीकलतां तेनां गलनो अग्रभागनो अंत तेमां अटकी केम तो अने हुं गंगानदीने हाथथी तरीने बीजे ठे केम उतयों त्यार पछी छ महीना भूख परशने सहीने माथा उपर जलनी धारा केम धा ण करी ए सर्व वात शास्त्रनी शांखथी मेलवी आपो. नत्तरण कंडरीक--- हे मूलदेव, सांभळो, भारत मायणादिक जे ग्रंथो सांभलियें छैये ते जो साचा For Private and Personal Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धुर्ताख्यान. हशे तोतमारं बोलवू पण साचुं छे. हाथी कमंडलम केम मायो ईत्यादिक जे तमे पूछ्युं तेनुं समाधानशांभलो ब्रह्माना मुखथी ब्राह्मण नीकल्या, भुजाओथी क्षत्रिय नीकल्या, झांगथी वैश्य नीकल्या अने पगथी शूद्र निकल्या. ए चार वर्ण आखा जगतमांछे, तेनी गणना करतांअंत आवे नही, ते सर्व लोक ब्रह्माना शरीरमां समाया तो तमे अने हाथी ए ये कमंडलमां समाया तेमां श्यो संशय छे, तथा जे ईश्वरना लिंगनो अंत लेवासारं तेने मा. पवा देवताना हजार वर्ष सुधी ब्रह्मा ऊंचो चाल्यो अने विष्णु नीचो चाल्यो तो पण ते लिंगनो अंत आव्यो नहीं. ते पार्वतीना शरीरमा केम समायो! तेमज कमंडलमां हाथी समायो एमां कयो दोष छ,' वली भारतमा व्यास ऋषिए कहुं छे के वंशन गांठमांथी कीचक नामना सो भाइओ उत्पन्न थया छे, कीचक ए नाम उपरथीज ए जणाई आवेछे के वांसने कीचक कहेछ तेमांथी उत्पन्न थया तेथी की चक एवुनाम पड्युं तेनी कथा आवी रीतेछे ते सां ळ.विराट राजानी अग्रमहीषिए पुत्रनी वांछनाए ए For Private and Personal Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धुर्ताख्यान. ऋषिनां आश्रममा जइने तेनी आराधना करी. ऋषिए तेनी ऊपर कृपा करी तेने एक चरु मंत्रिने आप्युं ने कहां के वनमां जइने झाडीनीघटामां बेशीने ए चरनु भक्षण करजे तेथी तने सो पुत्र थशे सारे तेणे वांशनी झाडीमां बेशीने ते चख्नु भक्षण करीने पोताने घेर गई एवा समयमां ते वंशजालमा एक घणा कालनो तप करनारो गांगिल नामनो ऋषि हतो, तेणे नदीने कीनारे एक अपछराने नग्न स्नान करतां दीठी तेने जोइने मुनी क्षोभने पाम्यो तेथी तेना शरीरमांधी एक वी. र्यनोविंदु गळीने नीचे पडयो, ते दैवयोगे वंशनी नाल मांपड्यो तेना प्रभावथी नवहजार गजना प्रमाणनो बलवंत एवो कीचक नामनो पुत्र प्रगट थयो अने जेम जेम ऋषि देवांगनाने जोवा लाग्यो तेम तेम वीर्यना बिंदुओवांशनी नळीमां पडवा लाग्यांतेथी बीजा न. वाणुं पुत्र पेदा थया. पछी ते ऋषि शतवीर्य बिंदुसहित वांशनी नळी त्यां मुकी दईने जतो रह्यो ए वातनी विराट राजाने खबर पडतां तेणे ते नळी रखावी लीधी तेमांथी सर्वांगोपांग सहित सो पुत्र नीकल्या तेओने विराटराजानी स्त्रीए पोताना पुत्र मानी लीधा तेमाटे तेनापुत्र वंशमांथी उत्पन्न थएला कहेवाय छे एऊपर For Private and Personal Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धुर्ताख्यान. थी जुवो के ए सो भाइओ कीचक वांसनी नळीमां केम रह्या तेमज कमंडळमां हाथी सहित तुं समाइ गयो. 3 तथा एक बीजं उदाहरण कहुंछु ते शांभळो, जे ईश्वरें हजार वर्षसुधी जटामां गंगाजीने राखी ते वात साची होय तो छ महिना सुधी कमंडलमां तुं तथा हाथी रह्या एमां नवाइ शानी. ईश्वर हजार वर्ष सुधी गंगाजीने जटामां भुलावी ए साचुं होय तो छ महिना सुधी कमंडलमां तें हाथीने भुलाव्यो ते असत्य केम कहेवाय. ... प्रश्नण्मुलदेव-कमंडलनी ग्रीवाथकी हुं केम नीसरयो अने हाथी वालाग्रने अंते केम अटकी रह्यो ? कंडरीक--ए तारूं संशय दूर करवा माटे एक पुराणमुंवाक्य शांभळ.आकाशमी मारुत अग्नी जलस थावर मनुष्य देवता तिर्यच वगेरे प्रपंच. नाअभावमहाप्रलय कालें जगतनो कर्ता विष्णु जलासने धेशीने तप करे छे तेनी नाभिकमलमा रहेलो ब्रह्मा कमंदल तथा दंड हाथमां लइने बाहेर नीकल्यो त्यारे कमल विष्णुनी नासीमां वळगी रा. हवे जुव For Private and Personal Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धुर्ताख्यान. के ब्रह्माजी विष्णुनी नाभिधी बाहेर नीकल्यो ने कमल अटकी रह्यो ए साचुं होय तो तुं कमंडलनी ग्रीवाथी बाहेर नीकल्यो छतां हाथीना वालाग्रनो अंत अटकी रह्यो एमां शुं अयुक्त छे. प्रश्न मूलदेव- हुं कमंडलनी ग्रीवा द्वारें बाहेर केम नीकल्यो ? उत्तर कंडरीक- ते ऊपर एक भारतनु वचनकहुं छं. कोई एक समये ब्रह्माने तपस्या करतां दिव्य सहस्र वर्ष थह गयां एवं देवताओ जाणीने क्षोभ ने पाम्या थका विचार करवा लाग्या के हवे एने विघ्न करवो जोइए त्यारे इंद्र कहेवा लाग्या के पुवें महादेवें अग्नि कर्म करतां ऊर्धवस्थित वस्त्रा पा र्वती दीठी ते वेला शिवने क्षोभ थयुं अने मदननावेगथी वीर्य स्खलित थयुं तेथी वस्त्रादिक मलिन थ. यां ते खंखेरतां पासे एक कलशो पडयो हतो तेमां वीयर्ना बिंदुं पडयां तेथी द्रोणाचार्य उत्पन्न थयां एवी रीते इश्वर पण स्त्रीने जोइने क्षोभने पाम्या तो बीजानु शुंकहे. एक श्रीवीतराग देवाधिदेव त्रै. For Private and Personal Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धुर्ताक्यान. लोक पूजित श्री महावीर विना सकल लोकने स्त्रीए वश कर्यो छे. गौतम वसिष्ठ पराशर जमदग्नि कस्य प अगस्ति प्रमुख महा ऋषिओ अमराधिप हरि हरादिक सर्व महा पुरुषोने स्त्रीओए दास कर्या ते माटे स्वर्गनी वेश्या तिलोत्तमाने इंद्रे कछुके ब्रह्माने तपथी मुकावे एव॒ इंद्रनु वचन शांभळीने तिलोत्तमा वे. श्या अदभुत वेष धारण करी शृंगार स जीने ब्रह्मानी आगल गइ त्यां पोताना पीनस्तन युगल ऊचां करीने नाभिमाग देखाइती हातना चाला करती जंधा उरस्थल नितंबने हलावती नाचवा लागी तेने जेईन ब्रह्मा एकेंद्रियनी परें सकलेंद्रिय व्यापार रहित थयो छतां तेनी सांबे नेत्रोनी दृष्टि मलावीने अवलोकन करवा लाग्यो त्यारे ब्रह्मानुं मन विकारने पाम्युं जाणीने तिलोत्तमा दक्षिणदिशा तरफ फरिगई ते जोईने ब्रह्माएते तरफ बीजु मूख कर्यु त्यारे तिलोत्तमा पश्चिम तरफ फरी गई ते समये ब्रह्माए पश्चिमे मुख कर्यु तेमज उत्तर दिशा तरफ चोथु मुख करयुं त्यारे तिलोत्तमा उपर उची गई ते जोईने ब्रह्माए पण उत्तर तरफ पांचमुं मुख करयुं ते वखते ब्रह्मानुं मन कामने वश थई गयुं एम For Private and Personal Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धुर्ताख्यान. जाणीने ईश्वरें ब्रह्मानु पांचमुं मुख पोताना नखोवती उखेडी नाख्युं तेथी ब्रह्मा कोपथी आंधलो थयो थको पोताना डावा हाथनी तरजनी आंगली बडे पोताना कपाल उपर क्रोधना आवेशथी पशीनो आ. व्यो हतो ते लुछीने पृथ्वी उपर मुक्यो तेथी ए. क बलवंत स्वेत कुंडली नामे पुरुष उत्पन्न भयो ते. वोज ब्रह्मानी आज्ञामागीने ईश्वरनी पाछल दोडयो तेथी ईश्वर भयने पामीने नाशतो नाशतो बद्रीकाश्रममा जईने नियमे करी विष्णुने मली कथु के मने शिक्षा आपो त्यारे विष्णुए पोताना कपालमां थी लोहीनी शीर खोलीने तेनी हेठल ईश्वरे ब्रह्मानु मस्तक पकडयु तं दिव्य सहस्त्र वर्ष सुधी पण रुधिर धाराएं भरायुं नही. पछीतेने इश्वरे एक आंगलीथी लुछयुं तेवारे ब्रह्मानामस्तक कपालें एने विष्णुनी रु. धिरधारा तथा ईश्वरनी आंगली ए त्रणेना संयोगेरक्तकुंडली नामे एक पुरुष उप्तन्न थयो तेवोज ईश्वरनी आज्ञा मागीने श्वेत कुंडलीनी साथे लडवालायक थयो पछि ते बन्नेनी लडाई थई तेमांदिव्य सहस्त्र वर्ष वीति गयां त्यारे देवताए ते युद्धनुं निवारण करयु अने ते बने योद्धामांनो एकने इंद्रने आपी For Private and Personal Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धुर्ताख्यान. दीधो ने बीजाने सूर्यने स्वाधीन करयो अने को के ज्यारे भारत थाय त्यारे युद्धनी वृद्धि करवा सारु ए बनेने तमे मनुष्य लोकमां मोकलजो त्यार पछी भारतना समये सूर्य कुंतीनु रूप लावण्य जोई मोह पामीने तेने भोगवी तेथी कुंडली नामनो पु रुष अवतरयो.पुरा मास थयाथी तेने कुंतीए कानमांथी प्रसव्योतेनु नाम कर्ण पाडयुं हवे जो ए पुरुष कानमाथी नीकल्यो होय तो कमंडलनी ग्रीवाथी तुं के मन नीकले 6 प्रश्न मुलदेव-अगाध जलथी भरेली गंगा नदीने हुं भुजावडे केम तस्यो? उत्तर कंडरीक..-तेनी प्रतीत थवा सारु रामायणनो वृत्तांत शांभळ. रामचद्रंनी आज्ञा वडे हनुमत सीतानी शुद्ध लेवा जतां पोताना हाथवती समुद्रने तरीने लंका नगरीमा गयो अने सीताने जई म ल्यो त्यारे सीताए रामचंद्रजीना कुशलना समाचार पुछीने कडं के समुद्रने केम तरी आयो त्यारे हनु मंते जवाब आयो के. For Private and Personal Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धुर्ताख्यान, श्लोकः तव प्रसादात्पवनप्रसादात् // नर्तुश्चते देवितव प्रसादात् // त्रिनिः प्रसादै रनुगम्ययसोय || तीगो मयागोष्पदवत् समुद्रः // 1 // तमारी कृपा अने पवननी कृपा वडे तथा तमारा भार श्री रामचंद्रजीनी कृपाथी ए बणना प्रसादथी एक पगनी पेठे हुं समुद्रने तरीने आंही आव्यों. ए उपरथी विचार कर के भुजा वडे हनुमान आखा समुद्रने तरी गयो त्यारे तें गंगा नदीने भुजाथी तरी ए कांह मोटी बात नथी 7 . प्रश्न मुलदेव--में छ महिना सुधी माथेजलधारा केम धारण करी? उत्तरण कंडरीक-ए पण ब्राह्मणनी श्रुतिओ ऊपरथी सिद्ध थाय छे ते शांभळ, लोकना कल्याणने अर्थे देवताओए प्रार्थना करीने गंगा For Private and Personal Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धुर्ताख्यान. ने कह्यु के तमे मनुष्य लोकमां पधारो त्यारें गंगाजीए कह्यु के मने आकाशमांथी पडती कोण धरी शकशे? त्यारे परमेश्वरें कयु के हुं धरीश, पछी तेने ईश्वरें धारण करी जो ईश्वरें दिव्य सहस्र वर्ष सुधी गंगाने धारण करी होय तो तुमाहा पुरुष गणायो छतां छ महिना सुधी जलधारा माथा ऊपर धारण करे एमां मोटाइ शांनी? 8 इति कंडरीकेनोक्तं मुलदेव प्रति प्रत्युक्तर कथानाष्ट मिदं इति श्री धूर्ताख्याने प्रथमाख्यानकं संपूर्णम् // 1 // त्यारें मुलदेव कंडरीकने कहे छे. प्रश्न मुलदेवः-जे कांई ते दीडं होय, तथा शांभल्युं होय, अथवा जेनो अनुभवकरयो होय ते __ कहे तेवारे कंडरीक बोल्यो उत्तर कंडरीक-हुं नानी अवस्थामां महा अविनीत तथा महा दुर्दतहतो. तेथी माता पिताए रीश करीने मने घेरथी बाहेर कहाडी मुक्यो. हुं देशे For Private and Personal Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir घुर्ताख्यान. देश भमतो भमतो गोमहिष अजा एलक खर करभ समाकुल पुष्प फल समृद्धिवान अनेक वनखंड शोमित एवा महा समृद्धिवाला एक गाममां गयो. तेमां मेघनिकुरंष समान एक वडनुं झाडमें दीढुं. तेनी हेठळ सप्रभाव एक कमल नामनो यक्ष छे तेनी यात्रा पूजा करवा सारं स्नान करी, निर्मल वस्त्र पहेरी, फळ फूल धूपादिक पूजोपकरण लईने पूजतां महाजन समूहने वांछित वर दिये छे. एम जोईने हुं ते यक्षने प्रणाम करवा गयो. त्यां गामना लोक रमतांदिठां. एवामां अकस्मातसनड बद्ध एने कवचवंत अनेक आयुध नाखता कलकलाट शन्द करता चोरनी धाड पडी. त्यारे हुं तथा समस्त गामना लोक, वगेरे सर्वे एक चीडामां पेशी गीआ. त्यां सर्वे लोके खुशीथी क्रीडा करवा मांडी. गामना लोक नाशी गया एम जाणीने चोरोनी धाड पाछी फर एटलामां त्यां एक बकरी चरती चरती आवी तेणे ते आखा चीडांने गली ली, ते बकरीने एक अजगर गली गयो अजगरने एक दीकनामनी पक्षिणी गली गई. ते उडीने एक बडना झांड उपर जई बेठी तेवामां ते वड हेठल कोई For Private and Personal Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धुर्ताख्यान, एक राजानुं लशकर आवी उत्तरीउ. तेमां राजा नो एक मांतेलो हाथी हतो तेने ते ढीक पक्षिणी ना पगनी साथे बांध्यो.. ढीक पक्षिणीनुं पग नीचे लटकतो हतो तेथी लोके जाण्यु के आ वडवाई छ. एवा हेतुथी तेमां हाथीने बांधतांज ते पंक्षिणीये पोतार्नु पग उंचु करयु. तेनी साथे हाथी पण उंचो खंचायो. तेणे एक मोटी चीश पाडी. ते शांभलीने महावते कयु के, कोईक हाथीने उपाडी लईजाय छे एम बुम पाडतो ते महावत राजा. आगळ गयो. राजाए पोताना योडाओने हुकम करयो के हाथीने वाळो. एवी आज्ञा थतांज हथी रो हाथमा लइने अनेक शब्द वेधी माणस दोड्या. तेमणे हथीआरोवती ते पक्षीनी पांख तथा माथु कापी नाख्युं. त्यारे ते पंखणी जमीन ऊपपडी. राजाए तेनो पेट चीरवानो हुकम करयो. पेट चीरतां तेमाथी अजगर नीकल्यो. तेनुं पेट पण चीराव्यु. तेमांधी बकरी नीकळी. तेनुं पेंट फडावतां तेमाथी चीभडं नीकम्युं. तेने चीरतां सेमांथी हुँ अने गामना लोक हाथमां वांसा लइने रमता रमता नीकली आव्या. तेमज बीजा For Private and Personal Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धुर्तालयान. केटलाएक लोक पोताना ढोरो सहित नौकळी आ. व्या. ते सर्व राजाने प्रणाम करीने पोतपोताने ठेकाणे गया.ने हुं पण त्यांची नीकल्यो ऊजेणी नगरीए तमारा पासे आव्यो. न एखापाठः--भाइ, ए सर्वे साचुं छे. प्र०कंमरीका-तो चीभडामां गाम आ केम समायु? नएलाषाढः-भाई शुंतें विष्णुपुराण शांभल्यु नथी के अमने पुछे छे? जो न सांभल्यु होय तोसांभल. पूर्व आ जगत पंच महाभूत रहित जल एकार्णव करी मुक्युं हतुं त्यां एक मोहूँ इंडं हतुं ते जलना तरंगोमांघणाकालभटकतोथको कोइ एक समय फाट्यो तेनांबे कटकां धयां तेमांगें एक कटक आ पृथ्वि थइ ने अर्धा इंडामा सर्वसुर नरादि मनुष्य चतुष्पद वगेरेसमाया त्यारे चीभडामा एक गाम केम न समाय?? बीजु अरण्य पर्वमा मार्कड ऋषिए युधिष्ठिर आगल पोतानी अनुभवेली वात कही छे ते सांभल. मार्कड ऋषि युगना अंतमां जल एकार्णव समय For Private and Personal Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रिय . indi धुर्ताख्यान सर्व जगतनीसाथे ते कल्लोलमां भटकनोथकोत्रस थावर सुर नरादिक सर्वेने बूडतो मुंकीने ते समुंद्रमा एक मेरुसमान ऊंचुंवडनुं झाड दीर्छ, तेनीशाखाऊपर जई बेठो.त्यां एक महा स्वरुपवान वाळक दीठो तेने ऋषिए कहूं के, हे वत्स ! तुं आ पाणीमां तणाइ जशे माटे मारा हाथने झाल. एम कहीने ऋषिए पोतानो हाथ लांबो कर्यो. ते हाथने पकडीने ते बाळक मार्कड ऋषिने गळी गयो, तेणे बाळकना पेटमा पर्वतोतथा वनो वगेरे सहित पृथ्वी दीठी.तेमां दिव्य सहस्र वर्ष सुधी फरतां छतां ते बाळकना पेटनो पार पाम्यो नही. पछी ते ऋषि बाहेर नीकल्यो, ए उपरथी सिद्ध थाय छे के ज्यारे बाळकना पेटमां सुरासुररुप आ जगत् समायुं त्यारे चीभडामा एक गाम केम न समाय! . प्रकंदरीकः--ढीक पंखणीना पेटमां अजगर, तेना पेटमां बकरी, तेनां पेटमांचीभड, तेमांते लोक ए सर्व केम समाया? न एलाषाढः तेनो समाधान आवी रीते छे ते सांभळ;-मूठमां आवे एवा देवकीजीना ऊदरना For Private and Personal Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धुर्ताख्यान. मध्य भागमां श्रीकृष्ण रह्यो, तेना पेटमा अनेक पर्वतों तथा वनी, सहित पाखी पृथ्वी रही. ते जो साचुं होय तो ढीक पंग्वणीना पेटमां अजगर रखो ते खोटुं केम कहेवाय ? 3 / / प्र० कंदरीक-चीभडाप्रमुखमांरहेलो हुं अने मारी सार्थना लोको ए सर्व मुवा केम नहीं? नएलाषाढ---जे पृथ्वी ऊपरऋषिओना व्यापार युद्धादिकना आरंभ, व्यवहारादिक ऊत्सव, वगेरे छतांते पृथ्वी कृष्णना पेटमां जीवती केम रही? जोए वात साची होय तो तुं अने गामना लोको केम जीवता न रहे? 4 प्र० कंदरीक-कृष्णनां पेटमां जगत् केम समायो हसे ? नएलाषाढ-नेनो ऊत्तर शांभळ--पूर्वे ब्रह्मा अने विष्णुनो पोनामां विवाद थयो. तेवारे ब्रह्मा कहेवा लाग्योके. मारा मुखथी. बाहथी, ऊरस्थळथी तथा पादथी अनुक्रमे चार वर्णनी ऊत्पत्ति थई. तेथी हुंज जगतनो कर्ता छु. For Private and Personal Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 10 धुलाख्यान. ..त्यारे कृष्ण क्रोध चडावीने कठण वचनोवडे को का लाग्यो के, तुंमारो चेटक छे. रे मूर्ख!तने बोल तां कांई लाज आवती नथी? जे मुखमां आकाश अने भुमी गाळछे, पर्वत दाहाछे, समुद्र जिव्हाछे एवा मारा मुखमां तु पेशीने सर्व जगतने जो तो तने देखाशे. तुंतोमारा नाभीना कमलमाथी उप्तन्न थयेलोछे ते मारीपासे एम बोले ए सारं लागतुं नथी. ए उदाहरणथी समजी लेवु. 5 जस्तपभावेणनलिआई॥ तंचेवकहकेयरघाइ॥ कुमुआई अन्नसंभाविआई // चंदनवहसंति // प्रकंदरीक-एवा मोटा आकारनी ढीक पखणी कोईए शांभळीछे? के जेना पेटमां अजगरादिक सर्व समाई गया, एनो उत्तर आपो. - न एलाषाढ-भाई द्रौपदीना स्वयंवर मंडपमांनांधनुष्यमांपर्वत,अग्नि समाया हताते वात गुंतें शांभळी नथी? जो न शांभळी होय तो शांभळ, For Private and Personal Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धुतल्यान द्रौपदराजाए उद्घोषणा करावी के, मारो देवता द्विष्टित धनुष्य चडावे, अने राधावेध करे. ते राजा द्रौपदीने परणे. एवं शांभळीने त्यां अनेक राजा मेंहा बलवंत आव्या.अने धनुष्य चढावतापहवामांरपा पछी शिशुपाळ धनुष्य चढ़ाववाने उठयोः सेवारे श्रीकृष्णे तेधनुष्य उपर मेरुपर्वत, गरुड, हळमुसळ, सर्प, शंख, चक्र अने गदा, एटलानो भार मुक्यो. तोय पण ते क्लीष्ठपणाथी धनुष्यने चहावा लाग्यो, त्यारे श्रीकृष्णे चंद्र, सूर्य, अग्नि, समुद्र, पर्वत तथा पृथ्विनो भार तेनां उपर मुक्यो. तोयपण धनुष्य आरोपतां अर्धागुळ असंधीत रह्यो तेवारे धनुष्यने श्रीकृष्णे पोताना पगे करीने ठेल्युं एटले शीशुपाळ धनुष्य सहीत पृथ्विउपर पडयो, पछी ते धनुष्य अर्जुने लिधुं त्यारे तेनो भार पृथ्विथी पण सहन थयो नही माटे भीमनां हाथ उपर भार मुंकीने अर्जुने नीचुं जोई कांनशुधी धनुष्य लई यांण खेचीने मच्छवेध करया अने द्रौपदीने परण्या. हवे वीचारो के ते धनुष्य एवो मोटो हतो जेने वाशे पर्वत आदि सर्वे समाया. तो ढोक पक्षणीनां ऊदमां अजगर आदि समायएमांतेशु आश्चर्यनी बात छे. 6 For Private and Personal Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धुर्ताख्यान. वळी एक रामायणनु दृष्टांत कहुं छु ते सांभळ. रावण जेवारे सीतार्नु हरण करीने चाल्यो, तेवारे जटायु नामनो पक्षी तेनी सामे युद्ध करवा लाग्यो, रावणे चंद्रहास खड्गे करी ते जटायु पक्षीनी पांखो छेदी, तेथी ते जटायु पक्षी पृथ्वि ऊपर पडयो ते व. खते सीताजीए ते पक्षीने एवी अवस्थामांजोइने कछु के हे पक्षी ! तारी पाखोनुं छेदन थयु, पण मारा शीयळ व्रतनांप्रतापथी कहुंछुके तुंने रामचंद्र जीनां दुतनांदरसण थशे, तेवखतेतारीगएली पाखो पाछी आ वशे. ते पछी केटलाएक दीवसे रामचंद्रनी आज्ञाधी सीतानीसुद्ध लेवासारु हनुमंत फरतो फरतो जटायु पक्षीनी नजीक आव्यो, अने वीचारवालाग्यो के, आ कोई मोटो पर्वत देखायछे, माटे एनी ऊपर चडीने जोऊं तो सर्वे पृथ्विमंडळ देखासे. एवं चितवन करीने हनुमंत ते पर्वतपासे गयो तेवारे हनुमंतर्नु मन वीचारमा पेठोके आ तो कोई पक्षी छे, पर्वत नथी तेटलामां जटायुए तेने पूछयु के तमे कोणछोने क्याथी आव्यो, त्यारे हनुमंतें कह्यु के हु-रामचंद्रनो दुत छु अने सीताजीनी शोध करवासारु नीकल्यो छु. पछी जटायु बोल्यो के सीताजीने तोरावण लंका न For Private and Personal Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धुर्ताख्यान. गरीमा लइगयो अने तुं फोगट अरण्यमा फरेछे, मारे तुं ऊतावळथी जइने रामचंद्रने समाचार आप अने मारीपण पांखो रावणे सीतानीसारु युद्ध करतां छदीने मने पृथ्वि ऊपर नाख्यो छे, एवं सांभळीने हनुमंते जटायु प्रते कह्यु के, ते रा. वण साये युद्ध कयु ने मने सीतानां समाचार पण कधा तेथी तारुं भलं थाओ. एवं हनुमंतनु वचन सांभळतांज जटायु पक्षीने पोतानीगएली पांखो पाछी प्रात्प थई. अने आकास मार्गे ऊडीने स्वर्गेगयो. माटे जटायु पक्षी पर्वत जेवो मोटो हतो, तो ढीक पक्षणी मोटी केम न होय ? 7 प्रकंदरीकः-ऊपर कह्या प्रमाणे एलाषाढ़ें उत्तर आप्यो. ते सांभळी कंडरीक केहेवालाग्यो. हे एलाषाढ ! हवे तेंजे अनुभव्यु, दीडं अने सांभल्युं होय ते तुं कहे. न० एलाषाढः--हुं यौवन अवस्थामां, धनने लो. भे धातुविदांदीक व्यसनने लीधे करीने,जगतमां धननी आसाए बील्ल पर्वतादी स्थानको मांहि, जंत्रमंत्र For Private and Personal Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धुल्यिानं. माने जे ठेकाणे धातु होय तेवे ठेकाणे धनमी आशाए ममतां ममतां, शोध करतां मने एवी खबर मळी के पूर्व दिशा ऊपर एक हजार जोजननो पर्वत छे अने ते ठेकाणे सहस्र वेषीरसर्नु एक पील्लछे, अने ते एक जोजननी शिलाथी ढांकेलुछे ते शिला ऊसाडीने ते स्वर्ण कुंडमांधी रस लेवो; पछी हुं एक सोसोजोजन प्रमाणे पृथ्विने क्रमे क्रमे ओलंगीने, ते पर्वत ऊपर जइने ते शिला ऊपाडीने स्वर्ण कुंडमांधी रस लीधो; अने ते स्वर्ण कुंड पाछो तेज शिलाथी जेम हतो तेम ढांकीने मारे घेर अाव्यो, अने ते रसनां योगे करीने धणुएक स्वर्ण ऊपजावीने कुबेर समान धनवान थयो त्यार पछी हुंमोटा भोग भोगवतोयाचकलोकने दान देतो, अने दुनीयामां घणोज प्रसिद्ध थयो, एवी मारी ऋडिने प्रसिद्धि सांभळीने अकस्मात मध्यरात्रे पांचसो चोर माझं घर लूटवा लाग्या ते वखते मारा मनमां एवो वीचार ऊत्पन्न थयो के, हुं जीवते छतां माहारं धन ए चोर लोकोने हाथ केम जवादऊं. ए, चिंतवीने साहसीकपणुं आदरी सस्त्र लइने युद्ध करतां, एक एक वांणनां प्रहारथी करीने में दस दस चोरने मारया, ते देखीने जेम जेम किंकर एकठा For Private and Personal Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धुतीमान थाय तेम सर्वे चोर एकठा थई प्रोध करीने माहारी अपर तुरी पच्या अने मारा माथानां करकेकटका करीने पासे एक बोरडीनं झाडतं तेमां मारामाणां ने बांधी माझं घरबार छूटीने चोरलोको जतारखा पछी ते कुंडळसहीत मामाच पोरडीमा बोर खावा लाग्यु, अने जेवारे प्रभाते सूर्योदय थयो ते वखते मारा माथाने बोरखातुं जोइ जीवतुं जा. णी लोकोए लीधु, एने बीजां सर्व मारा अंगोपांग मेळवीने ते उपरे माथाने मुक्युं, पछी हुं पाछो जेवो पुर्वे हतो, तेथी वीशेशनिरुपम रुपलावण्ये करीने विराजमान थयो. ए माहारं प्रत्यक्ष अनुभवेलुं छे.माटे जो ए वात नमांनो तो सर्वधर्तने भोजन आपो, ने जो खलं मानो तो सास्त्रनी सांखे मेळनी आपो. न सस- हे एलाषाढ, ते जे कडं ते सर्वे खरुंज छे. एमां कांई खोटुं नथी; कारण पुराण, स्मृति, भारत, रामायणादिक ग्रंथोनेविषे एवी घणी वातो छ. प्रण एलाषाढ--त्यारे मारो मुवेलो मस्तक शजीव केम थयो. For Private and Personal Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir . ... . . धुर्ताख्यान.. नए सस-पुर्वे यमदग्नी नामनो ऋषि हतो,तेनी रेणुका नामनी स्त्री हती,एने तेस्त्रीना सिपळना महिमाथी कुसुमित वृक्ष नमताहतां,तेवामां कोई राजा अश्व उपर बेसीने नीकल्यो एनेते राजा रेणुकाने देखीने तेनां मनमां अभीलाष उत्पन्न थयो, पछी केटले क दीवसे शीळ भंग थवाने लीधे वृक्षने अणनमतां देखी यमदग्नी ऋषिय, पोतानां पुत्र परशुरामने कडे के एपापिणी रेणुकार्नु मस्तक छेदीनांख.परशुरामे पितानी आज्ञाए करीने पोतानी माता रणुकार्नु मस्तक छेदी नाख्यु पछी यमदग्नीये पोतानां पुत्रने अाज्ञाका री जांणीने ते उपर संतोष थई कहुं के हे पुत्र,काईवर माग, तुं जे मागे ते हुं आपुं; त्यारे पुत्रे एवं मांग्यु के हे पिताजी! मारीमाताजीने पाछी संजीवन करोते वारे यमदग्नी ऋषिये कहुं तथास्तु एवं कहेतावारने रेणुका पाछी तत्काळ जीवती थई. हवे तुं वीचार कर के, ए वात जो सत्यछे तो तुं जीवतो थयो ते असत्य केम कहेवाय? 1 वळी बीजो द्रष्टांत कहुंछु ते तुंसांभळ, पुर्वे जरासंध राजा कृष्ण संगाते युद्ध करतांपोताना शरीरनां थे For Private and Personal Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धुरिमान भाग थया, ते बेउ भागो पाछा पोतानी मेले संघाई ने फरीथी युद्धमा लडता हतां, तो तुं पाछो जीवतो थयो एमां शी नवाइछे. 2 वळी एकत्रीजो द्रष्टांत कहुंछु के सुंदअने निशुंद नाम नांचे दैतो सहोदर हता, ते सर्वलोकोनो क्षय करवाने वास्तेकाल जेवाथैने ऊव्या, तेवारे सर्व देवताओए, ते नोवध करवाने अर्थे पोतानांशरिरनो तील तील जेट लो भागलइने,तेने एकठो करीने सर्वांग सुंदराकार रुपलावण्यनुं निधान एवी एक तिलोत्तमा नामनीअपसरा नीपजावी. पछी ते अपसरा सर्व देवताओने प्रणाम करीने केहेवालागी के,मने जे हुकम फरमावो ते हुं करवाने तईयार . त्यारे देवताओए कयु के, शंद एने निशुंद नामनां वे दैतो छे तेनो नाश कर. पछी तिलोत्तमा ते देतो पासे जईने कटाक्षयुक्त हावभाव, विभ्रंम, वीलास देखाडती नाचवा लागी; ते नांरुप उपर मोहित थईने विध्यांध थई बेउ दैतो पोत पोतामां शस्त्रे करी वढीने मरण पाम्या. For Private and Personal Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -- धुर्ताल्यानः UAE श्लोक स्त्रीणांकृतेन्नातृयुगस्यभेदः।। संबंधभेदेस्त्रियएवमूलं // अप्राप्तकामाबहवोनरेंज्ञ॥ नारीभिरुबेदितराजवंशाः // 1 // हवे सर्वदेवे मळीने तिल तिल भागनी अपसरा उत्पन्न करी, तो तारांछेदेला अंगापांग मेळव्यां तेथी तुं केम नहि नीपजे. 3 वळी एक द्रष्टांत कहुंछु ते सांभळ के, पवननो पुत्र हनुमंत ते बाल अवस्थामा पोतानी माता अंजनीने पुछवा लाग्यो के, हे मातुश्री, हुंदुख्यो थाऊं तो सुं खाउं? तेबारे अंजनी बोली के, हे पुत्र !राता वनफलं खाजे; त्यार पछे कोईक वेळांये हनुमंते उगतो सूर्य देखीने जाणे रक्त वनफळछे; ते लईने खाउं, एवं पीचारी तेने ग्रयो, ते वारे तेणे सलनां प्रहारथी हनमंतनुं सतखंड चुर्ण कर्यु ते हनमंतनी माता अंजनी जोईने विलाप करवा लागी, त्यारे पवने पानीते For Private and Personal Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धुर्ताख्यानः स्त्रीने विलाप करती जोईने पुछवाथी पोताना पुत्रने परलोके गयानां समाचार जांणी, पवन कोपायमान थईने पाताळमा पेसीरयो,पछीपवनने नीरोधे देवताओ तथा सर्व जक्तवासी जीव अती आकुळ व्याकुछ थईने मरण पामवा लाग्या, पछी सर्व देवो पाताकमां जईने पवनने मनावी लाव्या; अने चुर्णीत सर्व अंगोपांग एकठाकरी हनुमंतने जीवतो कयों, अने. सर्व ठेकाणे सांधता एक हनुनो अंस जडयो नही. तेथी एक हनुए रहित छे, माटे तेनुं नाम हनुमंत पाडयो. हवे जो पवनना पुत्रने चूर्ण कर्यो, ने ते पाछो जीवतो थयो ते सत्यछे, तो तें कडं जे हूं जीवतो थयो तो ते पण सतज छे. 4 वळी एक उदाहरण कहुंछं ते सांभळ. राम अने रावणनो माहा युद्ध थयो, ते वखते रावणना शुभटे खड्ग बाणादी प्रहारे करीने, अनेक वानरोना अंग छेद्यां अने लक्षमणने रावणे शक्ती पाणनां प्रहारे करीने भुमी उपर पाडयो, तेथी रामचंद्रे शोकातुर थईने विलाप करवा मांडयो, ते वखते हनुमंतें For Private and Personal Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धुर्ताख्यान. द्रोणपर्वत उपरथी विसल्या औषधी लावीने, लक्षमणने शक्ति बांण लाग्यु हतुं ते काढयुं त्यारे, छेदांग वानराओ जीवतां थयां ए साचुं छे तो ते जे कहुं ते पण साचंछे. 5 तथा हे मित्र एलासाढ ! स्कंधनी ऊत्पत्ती सांभळी नथी? एतो घणा ग्रंथोमां प्रसीद्ध वानछे जो तें नही सांभळी होय तो सांभळ कहुंछु, एक वखत हिमाचल पर्वतनी गुंफामां पार्वती संगाथे ईश्वरने संभोग करतां देवताइ हजार वर्ष वहि गयां, अने ते वखते देवताओने तारक नामना दैते बहुज ऊपद्रव करवा मांडयो पछी सर्वे देवतांओतारक दैत्यने मारवानोउपायचिंतववा लाग्या,जे इश्वरनां वीर्य विना बीजो कोइ तारक दैत्यने मारी सकनार नथी;अने इश्वरनी पासे अग्नी सिवाय बीजो कोइ पण जइने केहेवा लाग्या के, अनर्थनां करनारा दैत्यनो नाश करवोछे; माटेहे उपकारी पुरुष ! तुं देवताओना समुदाय उपर आ वखते उपकार कर,कारण के सर्वे देवताओ हाल. मां चिंतारुपी समुद्रमांबुडेलाछे, माटे तारा शिवाय बीजु कोइ पण उगारवाने समर्थ नथी, माटे तु गुफा For Private and Personal Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धुर्ताख्यान. घरमा जईने, ईश्वरने पोतानुं दरसण आप तो कदाचीत तुने देखीने ईश्वर संभोग क्रीडा मुकी देसे; एवं देवताओये कह्यु, त्यारे अग्नी बोल्यो, के हे देवताओ! ईश्वर जो बीजी अवस्थामां होय तो पण ईश्वरनी समक्ष कोईनाथी जवाय नही, त्यारे हमणा ईश्वर संभोगी अवस्थामांछे तो तेनीपांसे सीरीते जवाय. कारण के, षटवांगधारी. सूलपाणी, नर्केपाळधारी, समसानवासी, एवो जे ईश्वर, तेनी सनमुख पोतानुं अमंगलीकपणो वांछतो कोण जाय घणुं शुं कहुं जे ईश्वर, घणा जणनां देवतां. लिगोत्थान करीने नाचे, एने तेनाथी ईद्र सरिखानेपण बीक लागे तो मारी शी गुजास. एने जो कदापी ईश्वर कोपायमान थाय तो मारी शी गती थाय, ते माटे हे देवताओ!मने आसंकटमां नाखसो नहीं; तेवारे इंद्रे अग्नीने कह्यु, के. हे अग्नी! तुं ईश्वरथी बीहीतो नहीं. केमके, ए पार्वतीने वशछे जे पुरुष कोईथी दमाय नहीं तेने स्त्री एक दीवसमां दमवाने समर्थ छे माटे जो पार्वती ईश्वरने एकार्य करवाने कहे तोपण ईश्वर ते करछे. सुं तें ईश्वरनी अर्धामा जे पार्वती तेनाथी बीहतो For Private and Personal Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धुर्ताख्यान. जोयो नधी; ते माटे संका मुकीने तुं ईश्वरनी पासे जा, एने कदाच जो ईश्वर तारा उपर रुठसे तो पार्वती, मन राखवासारुतुने कोइ प्रकारको उपद्रव करसे नही. एवं इंद्रनु वचन सांभळी अग्नी हीमाचल पर्वतनी गुफामां गयो, त्यां ईश्वरने तेणे संभोगासक्त दीठो, तेवारे इश्वर अग्नीने पोताना संभोगमांअंतराय करवा आवेलोजोइने, तेने मारवा उठयो ते देखीने तेने पार्वतीए वार्यों पछी इश्वरे अग्नीने पुछथु के तुं कोणछे ? त्यारे अनी बोल्यो हुं भीक्षक ब्राह्मणछु, अने भीक्षा मागवा आव्यो छु,त्यारे इश्वरे कडं के मारा वीर्यनु पान कर, एवं कही ईश्वरे पोतानु वीर्य अग्नीने प्रशन करवा आप्यु. पछी अग्नी ए ते पीधु ते वीर्यना तापथी करीने अग्नी दाझ. वा लाग्यो एने महा कष्टवान थयो, तेथी ते वीर्य समुद्रमा जईने वमन करी नाख्यु, ते दीवसथी जगतमां एवी प्रसिद्धी चाली के, सर्व रत्न स. मुद्रमां वीर्यथी उत्पन्न थयांछे; पछी अग्नीना उदरमां कंडक वीर्यनो अंस बाकी रह्यो, ते अंसने जइने पदम सरोवरमा वमन करी नाख्यो, ते वखते ते सरोवरमां ऋत्तीका नामनी छ अपत्सराओ For Private and Personal Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 13 धुर्ताख्यान. स्नान करती हती, तेनी योनीमां जईने ते वीर्य पडयुं तेथी ते अप्सराओने गर्भ रह्यो, अने का. लांतरे, मस्तक, बाहु, हृदय, केड, शरीर, चरण, ए छ अंगनेक्रमे करीने एकेकी अप्सरायें प्रसव्या, पछी ते सर्व अपत्सराओ आश्चर्य पांमी ने, ते छ अंगोने माहोमांहे यथास्थानके जोड्यां ते पारानीपेठे मळीगयां, ते वखते षट मुखधारी स्कंद एटले कारतिकस्वामी उत्पन्न थया, तेणे युद्ध करीने तारक दैत्यने हरायो; हवे जो के जुदी जुदी स्त्रीओना उदरना उत्पन्न थयेला अंगो मळीने एक स्कंद उत्पन्न थयुं, ए वातमां जो संदेह नथी, तो ते जे वात कही तेमां स्यो संदेह छे. ? // 6 // प्रएलाषाढ, ते जे शरीर मेळव्यानु का ते तो ठीकज छे, पण माझं छेदेलु मस्तक बोरडीनां बोर केम खाई सकतुं हतुं ? ते शास्त्रनी शांखे मेलवी आपो. नण्सस,-राहुनुं माथु वीष्णुएं चके करीने छेयुं, ते आकाशमा फरेछे अने सूर्य तथा चंद्रने For Private and Personal Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धुर्ताख्यान. प्रसेछे, जो ए सत्यछे तो तारुं छेदेखें माथु षोरडीना बोर खाय, ए केम असत्य होय. ? // 7 // प्रश्नणालाषाढ,-में मारगमां चालतां एकेक दगले सो सो जोजन भूमी केम ओलंगी? नण्सस, विष्णुए यज्ञनेविषे बळीराज पासेथी त्रण डगला भरीने पृथ्वि मांगी, त्यारे विष्णुएं त्रण ङगलामां कानन सहित सर्व पृथ्वि अति क्रमी, जो ए सत्य छे तो, तुं एक डगलामां सो जोजन भूमी केम ओलंगी न जाय.?॥८॥ प्रएलाषाढ, हे मित्र! में एवी मोटी जोजन प्रमाणनी सिल्या सीरीत उपाडी? ते सास्त्रनी सांखे प्रतीत उपजावो. नतरण सस-राम अने रावणनां युद्धमा शक्ती वाणना प्रहारे लक्षमण मुर्छा पांमीने पृथ्वि उपर पडयो, त्यारे हनुमंते विसल्या औषधीने सारु मूळसहित द्रोण पर्वत उपाडी आण्यो, For Private and Personal Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धुर्ताख्यान. जो अनेक माहासिल्याओ सहित एवो जे द्रोण पर्वत ते हनुमंते उपाडयो, तो तुं एक जोजन प्रमाणनी सिल्या केम न ऊपाडे, ? तथा लोकमां एवं संभळायछे के पृथ्वि वधवा मांडी. स्यारे विष्णुएं वराह रूप धरीने पृथ्विने राढ उपर ऊपाडी ए सत्य छे तो ते जे सिल्या उपाडी ते पण सत्य छे. // 9 // इति धूर्ताप्राख्याने तृतियमाख्यानकं. प्रश्नएलाषाढ,--हे मीत्र सस, हवे ते जे अनुभव्युं दीडं होय ते कहे ? उत्तरसस,-हुँ सरद ऋतुमां एक गामथी बाहेर दूर पर्वतनीपासे एक खेतर हतुं त्यां गयो, ते वेलाएं एक मदोन्मत्त हाथी पर्वत उपरथी नीचे उतरीने मने मारवा दोडयो, हुं नासवानुं ठांम जोतो जोतो एक अती मोटोतिल वृक्ष देखीने ते वृक्ष उपर चडयो, पछी हाथीएं मने हेठो पाडवा सारं वारंवार ते तिल वृक्षने धंधोळवा मांडयुं, तेथी करीने तिलनां अनेक ढगलाओ ते वृक्ष उपरथी, For Private and Personal Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 36 धुर्ताख्यान. हेठे खरी पड्या; अने तेनी उपर हाथीना भमवाथी ते ढगलाओ यंत्रनी परे पीलाईगी ते त्यां तेलनी एक मोटी नदी वहेवा लागी. अने अतीसे कादव थयो, ते कादवनी चीकाशमां हाथी खुची गयो, पछी चीस पाडतो भुख अने त्रषानी पीडाथी हाथी मर्ण पाम्यो. पछी हूं ते हाथीने मुएलो जांणीने ते झाड उपरथी हे, उतयों, अने ते हाथीनुं चर्म उतारीने तेनो मोटो एक दडो कयों अने दस धडा तेलना भरीने पीधा, तथा एक भार तिलनो खड खाईन फरी ते दडो तेलथी भरीने मारी खांधे ऊपाडी गामनी बाहेर एक मारगमां वृक्षनी शाखायें वळगाडीने घेर आव्यो पछी में मारा छोकराने नीसानी आपीने ते दडो लेवासारं वृक्ष पासे मोकल्यो; अने तेणे त्यां दडो दीठो नही, पछी वक्षने मारा छोकराएं हाथीनीपरे मूळसहीत उखेडीने सर्वलोक देखतां ते दडो लई घेर आव्यो पछे हुं त्यांथी परवारो तमारापाशे आव्यो. ए वात में पोतें प्रत्यक्ष अनुभवी छे. माटे जो न मानो तो सर्वधूतने भोजन आपो. अने मानो तो शास्त्रनी शांखे मेळवी आपो.? For Private and Personal Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धुर्ताख्यान नत्तर खंझपाना,-हे मीत्र, ते जे कर्तुं ते शेरवे भारत रामायणांदिक ग्रंथोसाथै मळतुं छे माटे खरं छे खोडं नथी. प्रश्नसस,-हे सर्व धूर्त शिरोमणी बाई जो ए मारी कहेली वात खरी छे एम तमे कहोछो, तो तिलनो जाड एवो मोटो केम होय जेनाथी तेलनी मोटी नदी वहेवामांडी तथा दश धडा तेलना केम पीवाय? तथा भारप्रमाण खोल केम खवाय? ए सर्व शास्त्रनी शांखे मेळवी आपो. नुत्तर खंमपाना,-भारतमाहे हाथीओना मदजर्णाथी नदीओ चाळीछे तेमांअनेक गज रथ घो. डा अने पायदल तणाइ गयां, माटे जुओ के गजना मद जर्णथी नदी वही तो तेलनी नदी केम न वहे! 1 तथा भीमें बक राक्षसने मारों त्यारे तेने खावाने अर्थे एक महीष तथा शोलखांडी अन्न एक हजार धडा मद्यना आण्या हता ते सर्व भीमे आरोग्या ए वात सत्यछे तो तुं दश घडा तेल केम न पीये! तथा एक भार खड केम न खाय?॥२॥ For Private and Personal Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धुर्ताख्यान. तथा कुंभकर्ण उघी ऊठया पछी एक हजार घडा मद्यनां पांन करतो तथा अनेक मनुष्य अने पशुना भक्षण करतो, तो तमे दश घडा तेल पीधुं तथा एक भार खड खाधु ते केम न मनाय.? // 3 // तथा अगस्त ऋषीएं समुद्र पीधो अने स्वर्गथी उतरी माहादेवना जटाजुटथी वेहतीथकी गंनानदी जहनु ऋषीने आश्रमे गह ने ऋषीये तेनों पान करी ने एक हजार वर्षसुधी उद्रमा राखी तेथी गंगानो नामपण जान्हवी थयु. जो ए वातो खरी छे तो तुं तेलना दश धडा पीयेते केम खोटुं कहेवाय.?॥४॥ प्रभ सस,-में मोटो हाथीना चामडानो दडो शीरीते उपाइयो तेपण कदापी कष्टें उपडायो पण एकले गांममां केम आण्यो.? नत्तरण खंझपाना,-अरेभाइ शश तें शुं गरुड आख्यान सांभल्युं नथी जे मने पुछेछे जो न सांभलीउं होय तो सांभळ कस्यपऋषीनी 1 कद्रु 2 विनता ए थे स्त्रीयोएं कोइ समे रमत करतां होड कीधी जे For Private and Personal Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धुर्ताख्यान. आपणे बेहुमांथी जे जीते तेने घेर हारनारी दाशी. थइ रहे पछे रमतांथका विनताहारी गइ. अने कहुजीती तेथी ते विनता कगुने घेर दाशी थह रही. पछे शोक्य ने बेरेकद्रुएं विनताने घणो दुख देवा मांड्यो. एम घणोकाळ शुधी दासपणो करतां विनता गर्भवती थइ. पछे त्रण इंदा प्रसव्यां ते. माथी तुरत पोतानुं दाशपणो टालपाने एक इंदु भेषु तेमांथी विछी नीकल्या. वळी केटले काल बीजो इंदु भेषु तेमाथी जंधा रहीत पूत्र नीसों तेणे कहां जे हेमाता तमे पेलो इंदु काचु भेघु अने बीजु पण पुरुं पाक्याविना भेछु माटे हुं अधुरो ज न्मयो तेथी तारो दाशपणो टल्यो नही. हवे बीजो इंदुपालजे तेथी तारा मनोर्थ पुरांथशे. पछे केटले का. ले स्वभावें त्रीजें इंदु भेदायुं तेमांधी शर्प कुलनो काल माहाबलवंत एवो गरुडपक्षी प्रगटयो ते बालपणे रमतो कद्रुना बेटा शर्पने नीत्य मारे पछे शर्व शर्प कद्रु आगल जइ रोवा लागा तेथी कद्रु विनिताने ओलंभो देवालागी अने कहेवालागी जे हे दाशडी तुतारा गुरुडने वार नही तो तु दुखपागीश एम शांभली विनता दुख धरती रोवालागी ते देखी For Private and Personal Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धुर्ताख्यान. गुरुडे रोवानो कारण पुछयो पछे माताएं शर्व दाशपणानो वृत्तांत शंभलावीने कह्यु के बद्रीकाश्रमे अंध ताहरो पिता वशेछे ते अमृतना ठाम जाणे छे ते माटे तेने पुछ. एंबुं मातानुं वचन शांभली गरुड पिताने पाशेजह पगे लाग्यो. पिताएंस्पर्श पत्रने ओलख्यो. पछे गरुड कहेवालागो हे पीताजी हुं भुख्योछु शु खाउं ? तेवारे कस्यप ऋषीये कद्यु इहांपाशे एक मोटो पद्मशरोवर छे तेहां बारजोजनना शरीरवालो एक हाथी छे तथा तेटलोज मोटो एक कांचबो छे ते बेहु पोतपोतामां वढवाड करे छे तेमने जइने खाजे. भुख्यो रहीश नही. पछे गरुड त्यां जइ ते बेहुनो भक्ष करी पाछो फरता मार्गमां अनेक पक्षीनो निवाश एवो मोटो वट वृक्ष दीठो तेना नीचे ब्रह्माना विर्यथी उपना वालीखील्य नामे शाडात्रण क्रोड ऋषीयो तप तपेछे ते वृक्ष उपर बेठो पोताना शरीरने भारे कडकडतो वडांग्यो पछी गुरुडे जोयु रखे ऋषी चंपाइ जाये एम चिंतवी ते वडने चांचे उपाडीने आकाशने ढांकतो शर्व देव दानवने चांचे चमत्कार उपजावतो शमुंद्रना बेटविचे मुक्यो ते वटवृक्षे अलंकृत For Private and Personal Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पान. धुर्ताख्यान. 41 भूमीनो नाम लोकें लंका दीधुं. पछे ते लंका रावणनी राजधानी थइ फरी गरुडे आवी पीताने पुछयु हे तातजी! भुख्यो र्छ \ खाउं ऋषीये कयु शर्व राक्षशने खाजा तेशर्व राक्षसने खाडगरडे पीताने अमृतनी ठाम पुछी ऋषीएं कडं हे वत्स! पाताळने नीचे धगधगायमान अग्नि शरव दिसे विट्यो शरव शुराशुरनी रखवालथी रहेलं एवो अमृतनो कुंद छे त्यांथी कोइ अमृतलइशके नहीं पण अनेक मधु घृत जल पापी अग्निने शंतुष्ट करतो कुंदमाहे जवा आपे अने तेमांथी अमृत लेवायतेने पण आई लावतां अनेक विघ्न उपजे एवो ऋषीनुं वचन शां. भली,पोतानी थे पांख मधुघृत तथा जल धारण करी पातालमा जइ अग्नीने शंतोषी पछे अग्नीएं देखाड्या अमृतना कुंदमाथी अमृत लइचाल्यो रशतामां कुंदरक्षक देवताओएं उद्घोषणा करी जे कोइ पक्षी अमृत लइजायछे ते शांभली शर्वे देवदानव क्षोभ पाम्याथका पोतपोताना स्थानकथी मुदगर मुशल शक्ति हल खड्ग दंडादीक शस्त्र लइ तेनी पाछल दोड्यां. अने हणो हणो छेदोछेदो एवो पोकार करता गरुडने कहेवा लाग्या अरे पापी अमृ For Private and Personal Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 42 धुर्ताख्यान. तना चोर तुं क्याथी जइश एवं शांभली गरुडे ते. मनी शाथे मोटो युद्ध करी चारे दिशे पोतानी पांखाने प्रहारे गणा देव दाणवने यमने घेर गेंचाड्यां एम थोडी वारमा शर्व देवतानां शाथने नाशतो जाणी इंद्रे जवाला शस्त्र जलजलतुं वज्र गुरुडने मा. रवा मुकीऊ ते पण गुरुडना शरीरे अफळाइ हेठो पडयो पछे ए वज्र गुरुडने काइ लागु नथी एवु शरव देवताने जाण करवा माटे ते वज्रने गुरुडे पोतानी चांचमां धरी राख्यु पछे गुरुडथी पीहीनो थको इंद्र वीष्णु पासे गयो विष्णु पण कोपांध थयो थको बार शुर्यनातेज जेटलो तेजछे जेमां एवो चक्र लइ गरुडने मारवा दोडयो पछी शनीश्वरादीक ग्रह तथा सर्वऋषी योएं जइ विष्णुने विन्ती करीजे हे स्वामी तमे सर्व व्यापी छो शर्व भुवनना नाथ छो माटे तमो विचार कर्याविना कोप करो ते सारं नही कारण ए गरुडी तारो बंधुछे माटे क्रोध मुकीद्यो ने म्लेछनी परे गोत्रनो क्षय मकरो एवा ग्रह तथा ऋषीयोना वचन सांभलीने सांन्त थयेला श्रीक्रष्णे गुरुड शाथे मेलाप करी पछे गुरुडे घेर जइ अमृत आपी पोतानी मातानुदासपणुंटाल्यु जो गुरुडे वटवृक्ष उपाड्यो ने For Private and Personal Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धुर्ताख्यान. बीजे ठेकाणे मुक्यो तो है शश तुं दडो उपाडीने गाममां केम न आणे.? एमां कांह अशंभव नथी.१ , तथा श्रीकृष्णे शात दीवश गोवरधन पर्वत उपाडयो तो तुं तेलथी भरेलो दो शावाशते न उपाडे ? // 2 // . वली शमुद्रमा शेतुबांधती वखते वानराओएं अनेकयोजनथी वृक्ष उखेडी आणया तो तारो छोकरोवृक्ष उखेडी नाखे तेमा शुं आश्चर्य जाणवो.३ वली अशोकवनमां हनुमान नामना वानरायें अनेक अशोक वृक्ष उखेडी नाख्या जो ए वातो शत्यछे तो तारो पुत्र वृक्ष उखेडी नाखे. एमा शी मोटाइ जाणवी. // 4 // इति धुर्ताख्याने चतुर्थमाख्यानकं प्रश्नण्यास-- हे खंडपाना, हवे तमे जे अनुभव्युं होये ते कहो ? नुत्तरखंडपाना-तमे सर्वे मारे पगे लागो तो हुँ सर्वने भोजन आपुं. शस--भोजनने वास्ते अमे मोटा पुरुष तारा आगल दीनथइ पगे केम लागीएं. ? For Private and Personal Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धुर्ताख्यान. __ खंडपाना—(हसीने ) में जे अनुभव्युं ते सां. भलो. हुं यौवन समयमा रुप लावण्यनु निधान हती. कोहक समये हुं रुतुवंती छतां मंडपमां सूती हती त्यां पवन मारं लावण्य जोइने विस्मय पामी मने भोग्वी. केटलेक कालें पुत्र आव्यो ते जन्मती वखते मारीसाथै वातकरी जतो रह्यो. ए में अनुभन्युछे जो असत्य कहोतो सर्वने भोजन आपो जो सत्य कहोतो सास्त्रनी सांखे मेलवी आपो. मूलदेव-कुंताने पवने भोगव्याथी भीमनामे पुत्र थयो. तथा अंजनाने पवने भोगवी तेथी हनुमंत पुत्र थयो. ए जो पुराणनी वात सत्य छे तो पवने भोगव्याथी तुं पुत्रवती थइ ए पण सत्य छे. खंमपाना-ते पुत्र मारीसाथे आलाप संलाप करीने तरत केम जतो रह्यो ? मूलदेव-पाराशर ऋषीएं योजनगंधा (जेना शरीरनो दुर्गध एक योजन सुधी जाय एवी) माछण भोगवी तेथी व्यासनामे पुत्र जनम्यो. तेणे जनम For Private and Personal Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धुर्ताख्यान. समये माताने कयु के मुझने अवसरे संभारजो, एम कही तत्काल वनमां गयो. पछी ऋषीनां प्रभावें योजन गंधा अक्षत योनी थइ. तेने सांतनु राजाएं भोगवी तेथी विचित्रवीर्य नामे पुत्र थयो. ते विचित्रवीर्य अपुत्रिक मरण पाम्यो पछे वंशनो विच्छेद थाय छे एवं योजनगंधाएं विचारीने पोताना पुत्र व्यासने संभार्यों थको ते वनथी आव्यो तेने माताएं का हे पुत्र वंशनो उद्धार करो. पछी विचित्रवीर्यनी स्त्रीथी व्यासनां प्रभावें पांडु, धृतराष्ट्र, ए वे पुत्र थया ने विचित्रवीर्यनी दासी एटले भोग स्त्री तेनाथी विदुर उत्पन्न थयो. जो व्यास जन्मतांज वनमा जतो रह्यो तो तारो पुत्र जन्मतांज अदृश्य थइ गयो एवात कोण न माने.? खंडपाना-मारी उमांनामे सखी हती तणीएं मने देवदानव आकर्षवानी विद्या आपी तेथी में सूर्यने आकर्षी प्राण्यो तेनी साथे में संभोगसुख भोगव्या तेथी हुं केम बली न गई ? कंदरीक-कुंतीएं सूर्यने भोगवी ते नही बली तो तुं केम बले ? For Private and Personal Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धुर्ताख्यान. __ खंडपाना-एक वखते में अग्नीने आकर्षी तेनीसाथे संभोग कयों तेथी मने महातेजवंत पुत्र थयो. पण हुं बली नहीं ते केम ए शास्त्रनी सांखे मेलवी आपो.? एलाषाढ-कोइ एक समये यमनी स्त्री धुर्मोणा होम आपवा वास्ते होम सालामा गइ हती ते. वारे ते अग्निसाथे क्रीडा करवा लागी त्यां अकस्मात् यमने आवतो देखी भयभ्रांत थइने धुर्मोणाएंपाणीनी परें संभोगपूरोथयाविनाज अनिने पेटमाहें उतार्यो यमपण स्थिलोपांग तथा स्थिल कटीमेषला इत्यादि लक्षणे स्त्रीने सापराध जाणीने उदरमा गली देव सभाएं गयो तिहां देवताओएं हांसी करी पुछीएं जे तमने व्रणेने सुख छे तेवारे यंमना मुखथी उदरने मार्गे धुमोणा नीकली तथा उद्ररथी मुखने मार्गे अग्नि निकल्यो ते वनमां नाशी गयो यम तेनी पछवाडे दोड्यो वनमा जइने हाथीने अग्नी आव्याना समाचार पुछया पण हाथीए का जवाब दीधो नही तेथी यमे हाथीनी वाचा छेदी नां For Private and Personal Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धुर्ताख्यान. खीने यम पोताने ठेकाणे आव्यो हवे जे यमनी स्त्रीने अग्नीएं भोगवी तेथी ते स्त्री बली नही. तोतुं अग्नी साथे भोगभोगवतां केम बले.? (5) खंम्पाना—में एक वखत इंद्रने आकर्षीने ईद्रसाथे भोगभोगव्यो तेथी इंद्रसमान पुत्र आव्यो जुओके अपच्छराने मुकीने मने इंद्रे भोगवी ए वात केम संभवे. ? सस०-गौतम ऋषीनी स्त्री अहिल्याने इंद्रे भोगवी ते वात गौतम ऋषीएं जाण्याथी इंद्रने श्राप आपी सहस्त्रभंग करी इंद्रना छात्रोने आप्यो पछे ते छात्र कामज्वरे पीडयाथका इंद्रने घणोज कष्ट देवा लागा पछे सर्व देवताओएं गौतम ऋषीने विनंती करी इंद्रने मुकाव्यो अने सहस्त्रभंगने ठेकाणे हजार लोचन थयां वली इंद्रे कुंतीने भोगवी तेथी माहा धनुर्धर अरजुन नामे पुत्र आव्यो जो आहिल्या तथा कुतीने इंद्रे भोगी तो ताराजेवी सरुपवान् स्त्रीने इंद्र सा वास्ते न भोगवे. ? For Private and Personal Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धुर्ताख्यान. खंडपाना-तमे माहारं नाम ठांम गोत्र अने मायावीपणो जाणोछो के नथी जाणता.? मूलदेव-पाटलीपुर नगरे गौतम गोत्री नागसर्मा नामे ब्राह्मणनी पुत्री नागश्रीनी कुखे तुं अपनी छो अने खंडपाना तारूं नाम जगत्र प्रसीद्ध छे. खंडपाना-माहारं नागश्रीनी पुत्रीनी सरिखु. रुप देखीने तमने संसय उपजेछे पण हुं तेनी पुत्री नही. हुतो राजाना रजकनी दग्धिकानामे बेटीछउं माहारूं घेर राजाना मंदिरनीपरे धनधान्ये करी संकीर्णछे अने हुं हजार मजुरनी साथ राजाना अतःपुरना वस्त्र धावाना धधो. करतीहती कोइसमे हु बस्त्रनी पोठभरी एक हजार मजुरोनी साथे धोवा गइ हती तिहां ते मजुरोएं सर्व वस्त्र धोइ तापमां सुकववासारु मुक्यां एटलामां मोटो तोफानी वायरो लागो तेथी सर्व वस्त्र उडीगयां पछे में मारा सर्व मजुरोने कयुं जे तमाराथी जिहां जवाय तिहा नाशी जाओ कांइ चिंता करसोमां For Private and Personal Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धुर्ताख्यान, राजा जे कसे ते हुं पोते सहन करीस पछी हुं गोहनु रुप धारण करी रात्रे नगरना उद्याने क्रीडा करती थकी रही प्रभातें विचार्यु जे रखे कोई गोह जाणीने मने मारी नाखे माटे आमृलतानो रुपधरी असोकनां झाडमां वलगी रही पछी न्यायवंत राजाएं पवने हराणा वस्त्रनी वात जाणीने पडहो वजडाव्यो जे अहो रजको जे जिहां गया होय ते तिहाथी पाछा पोताने घेर आवो तमो सर्वने अभय छे ते वात सांभली सर्व रजक घेर आव्या हुं पण आमृलतापणो मुकी मूल स्त्रीनुं रुप धारण करी घेर आवी पछे माहारो पीता नदीने कांठे ते वस्त्रोनी पोठ लेवा गयो तिहां वाघर सर्व अंगाले खाधा एवं जाणी वनमाहं वाघर जोवा सारंभमता अमता एक ऊंदरनुं पुछडं लाधु तेहना अनेक मोटा वाघर नीपजावी हरष सहीत माहारो पीता घेर आव्यो ए वात खरी छे के खोटी छे ? सस-ब्रह्मा विष्णु जेनो पारपाम्या नही एहवो मोटो ईश्वरनुं लिंग हतु तो ऊंदरनु पूंछड मोटुं केम न संभवे तथा हनुमंतनो पूंछडो सास्त्रमा घणो मोटो संभलाय छे कारणके जेथी आखी लंका For Private and Personal Use Only Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धुर्ताख्यान. विटाणी तथा अग्नीएं बाली जो हनुमंतनो पूछडं मोटुं हतु तो उंदरनु पूंछडं मोटु केम न होय ? तथा पुराणमांहे सांभल्युंछे के गंधारीकाबर राजा अरण्यमां मनुष्यपणो मुकी कुरुप कुद्रुम थयो पूर्वे ते नधुष राजा हतो अने युद्ध करतां इंद्रने जित्यो त्यारे इंद्रने अपमान थयुं जाणी बृहस्पतिएं तेने श्राप दीधो तेथी जंगलमां अजगर थयो एटलामां राजथी भ्रष्ट थयेला पांचे पांडवो तिहां अरण्यमां आव्या तेमांथी एक भीम भमतो भमतो अजगर पासे गयो तेने अजगरे गल्यो ते वात सांभली युधिष्ठिर ते अजगरपासे गयो तेवारे अजगरे युधिष्ठिरने सात प्रश्न पुछ्या तेना उतर युधिष्ठिरे आप्या पछी ते अजगरे भीमने पाछो वमन कीधो अनेपोते पण अजगरपणुं मुकी पाछो नधुष राजा थयो जो ए वात खरी छे तो तुं गोह तथा आमृलतापणाने धारण करीने वलि पाछी स्त्रि सावास्ते न थाय? // 3 // प्रश्न-खंडपाना बोली, हे धूर्त राजाओ जो तमे सर्वे माहारं वचन प्रमाण करो तो हुं सर्वने भोजन आपुं अने कदाचित् हुं तमने मारी बुद्धिथी हरावीश तोपछी तमे जगतमा एक कोडीमात्र मुलना धशो. For Private and Personal Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धुर्ताख्यान. नुत्तर--सर्वधूर्त बोल्या, हे खंडपाना, अमने बृहस्पति तथा विष्णु पण जीती शके नही तो तुं स्त्रि मात्र केम जीतीश ? प्रखंमपाना--तिवारे हवे तमाशो जुओ हूँ हमणां तमोने हराएँ छ एम कही प्रश्न बोली जे वायुएं अपही ते राजानां वस्त्र तेने जोवाने हुं राजाना हुकमथी निकली तथा पूर्वे घणाकालनां मारा चार दास नाशी गया हता तेनी तथा वस्त्रोनी शोध करती पृथ्वीमा भमती भमती हुँ इहां प्राचीने तमोने ओलख्या जे मारा नाशी गयला चार दास ते तमेजछो अने वस्त्रपण तमेज लइ गया छो जो ए वात न मानो तो सर्व महाजनने भोजन आपो अने जो सत्य मानो तो तमे वस्त्रचोर तथा माहरा दास छो. न--सर्वधूर्त लज्जायमान थया अने विषवाद पामता बेहुरीत उत्तर आपवाने असमर्थ थका दिन थइ कहेवा लाग्या जे हे खंडपाना, ताराथी अधिक बुद्धिवंत जगतमां कोई नही जेणे अमारा जेवा माहा धूर्त माहावुद्धिवंतने जीत्या माटे हवे सात दिवसना वरसाद थकी भुख्या सर्व धूर्तने भोजन करावो. For Private and Personal Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धुर्ताख्यान. एम सर्व धूर्तानां वचन सांभली खंडपाना हर्ष. पामी थकी सर्वने भोजन देवामाटे महा बीहामणां स्मशांनमां जई कोईनो तत्कालनो मुकेलो मरण पामेलो बालक लइ तेने नवरावीने ऊजे. णी नगरीमा कोई श्रीमंतने घेरगई तिहाँ जेहनो अनेक व्यापारे व्यग्रचित थयलोछे एवो घरनो धणी आसनपर बेठेलो दीठो तेहनी पासेजई दीन थई कहेवालागी जे अहोशेठ हुं दरिद्री ब्राह्मणनी स्त्रिछु, अनाथ छु अशरण छ तारी पासे आ मारा बाळकने पालवासारु धन मांगवा आवी छ एम वारंवार तेने कहेवा लागी अने ते व्यापारीनो चित व्यग्र हतो, माटे सेवकने कह्यु ए रांडने घरथी बाहेर काढो तेथी ते सेवके तेने घरथी बाहेर काढवामांडी तेवारे ते कपट करीने पृथ्वि उपरपडी घणो आक्रंद करती उठी अने रोतीथकी मोटे सादे पोकार करवा लागी अरे लोको जुओ आ दुष्ट व्यापारीएं धनना गर्दै आंघलो थइने हुं अनाथ निराधारनो पुत्र मार्यो मने आशा हती जे आ पुत्र मोटो थशे पछी हुंमारासर्व मनोरथ संपूर्ण करीश ते मारी आशा रुपणीवेल आ पापी शेटें जंगली हाथीनी परे मूलथी छेदी नांखी एवीरीते विलाप करती केस छुटा मुकी छाती कुटती For Private and Personal Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धुर्ताख्यान. थकी तथा पृथ्वियें आलोटती थकी एवी शेठे जोइने पोताना मनमां भय पाम्यो पछी विचार्यु जे में मारा सेवकने हुकम कीघो जे एने घेरथी बाहेरकाढो पण एथी एनो पुत्र मरण पाम्यो मोटो उत्पात थयो जो एवात राजा सांभलशे तो मने दंड करशे एम विचारीने शेठ पोताना परिवार सहित दीन थइने ते धूर्तणी ने मनाववा लागो अने कहेवा लागोजे हे बहेन, जे भव्यतव्यता हती ते थइ हवे विलाप कीधे सुं थाय ताहारे द्रव्य जोइये ते हुं आपु एमकही पोतानी रत्न जडीत मुद्रीका हती ते धूर्तणीने आपी अने समखवरावी कडं जे राजापासे वात करवी नही पछी ते धूर्तणी मुद्रीका लइ उद्याने आवी सर्व धूर्तीने मुद्रिका देखाडी बजारमा जइ देची तेना पैसा उत्पन्न करीने सर्व धृर्तने भोजन कराव्यं सर्व संतोष पाम्या इति संपूर्ण. त्रण माहा मूर्योनो इष्टांत. मुर्ख पहेलो-मारे गेर चंगीने निरंगी नामे वे स्त्रीयो छे ते मने गणुं सुख आपे छे, एक दीवश हुं पथारीमा सूतो सूतो उघी ग्यो, एटलामा बन्ने स्त्रीओ आवी मारे डावे तेम जमणे पडखे सूइ गई अने मारो अकेको हाथ लइ पोत पोतानी For Private and Personal Use Only Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धुर्ताख्यान. छातीउपर राख्यो ते वखते मारा घरमां दीवो बळतो हतो तेमांनी वाट उदर आवी खेंचीने चालतो थयो अने बरोबर मारा उपर उंचे अधर रही, डाबी आंख उपर ते बळती वाट नांखी त्यारे में विचार्यु के, हाथी ते वाट दुर कर हवे जो डाबो हाथतेआंथी खसेडुं तो रंगीने गुसो चडे अने जो जम' खसेडुं तो चंगी गुसे थइ माथु फोडे, पछी में विचायु के मारी आंख जाय तो भळे, पण स्त्रीनो स्नेह तुटे नहीं तो सारु, एम वीचारी जेमनो तेम रह्याथी मारी डाबी आंख बळी गई तेथी मारूं नाम शुक्रराज पड्युं एवी रीते मात्र स्त्रीनां स्नेहनी खातर में मारी आंख खोई माटे मारी महा मूरखाइनो तमो बुद्धीवंत वीचार करो. त्यारे बीजो मुर्ख कहेवा लाग्यो के, मारी मूर्खाइनी पण वात सांभळजो ? मारे पण खरी अने रीछडी नामे वे स्त्रीओ हती में मारो जमणो पग खरीने अने डाबो पग रीछडीने सोंपयो हतो एवी रीते हुं हमेशां सुख भोगवतो कारण के सत्री साथे हमेशां काम तो होयज हवे एक दीवश हुं ज्यारे घेर ग्यो त्यारे खरी पाणी लइने मारो जमणो पग धोवा लागी अने रीछडी ते नजर राखीने जोवा लागी. हवे खरी जमणो पग For Private and Personal Use Only Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धुर्ताख्यान. घोई गई एटले ते पग में डावा पगउपर मुक्यो ते जोई रीछडीए गुसे थइने मारा जमणा पग उपर शांबेलांनो छुटो धा कर्यो एवी रीते मारो जमणो पग भांग्यो त्यारे खरी क्रोधायमान थइ रीछडीने गाळो देवालागी के तुं मोटी फुवड छे तने अ. देखाई तथा घणो अहंकार छे तुं धणीने बीलकुल पत करती नथी वळी रात्रे तो बीजा पुरुषने भोगवे छे त्यारे रीछडी कहेवा लागी के तमारी पण घणी ' खराब टेवो छे. तेनो तो पेहेलां त्याग करो? पछी ने कहो वळी तुं हमेशां चारे चोवटे खुली रीते मे छे अने ते वात आखू शेहेर पण जाणे छे आ आपणो धणी तो बीचारो गाय जेवो छे बीजो होय तो नाक कान कापी नांखे ते शांभळीने क्रोध चढपाथी मोटुं सांबेल लावी तेणीए मारा डाबा पग उपर मारीने ते पण भांगी नाख्यो. मारो पग ते भाग्यो तो तारो पग में भाग्यो एम आपण बनेनुं साटुं वळयुं ए प्रकारे कही तेओ तो आनंद पामी हवे मारा जेवो महा मूरख, के, गमार, आदुनी. आमां सोध्यो पण मळवो मुशकेल छे. पछी त्रीजी रख बोळवा लाग्यो के, हे बुधीवंत शेठ! मारा समा For Private and Personal Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धुर्ताख्यान. नवली कोईपण मूर्ख आ दुनियामां मळशे नही. एक दीवश अमे स्त्री भरतार बन्ने जणां एक पथारीमां सुताहता त्यां अमो बेऊ वच्चे एवी शरत थई के, पहलां बोले ते सुगंधी घीमांझबोली, तथा शाकर मेळवीने दश पोली जमाडे एवी शरतथी अमो बन्ने मौनपणे रहया एटलामां अमारा गरमां खातर पाडबाने चोर आव्या भीतमाखातर पाडी घरमां पेशी तेयोएं सघळागरेणांवस्त्र मोती सोनामोहोरो वीगेरे खुब माल लीधो चोरो चोरी जाय छे. तो पण मार शरतने खातर अमो बने मांथी. एके बोल्या नह त्यारे चोरो मारी स्त्रीनां आंग उपरथी दागीन कहाडवा लाग्या तेयारे स्त्री बोली उठी हे स्वाम आपणुं शपलं द्रव्य चोर चोरी गया ते शांभळतांज में ताळी दई कहयुं के बस तुं शरत हारी गई माटे आजे घी शाकरथी भरपुर पोळी तमें आपो एवी रीते चोरो तो शघळु द्रव्य चोरी गया अने तेथी लोकोमां पण शरमावं पडयुं अने मारुं नाम मोटो मुर्ख पाडयु. // इतिधूर्तआख्यानसमाप्तः // For Private and Personal Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only