Book Title: Dhurtakhyan
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Page 53
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धुर्ताख्यान. एम सर्व धूर्तानां वचन सांभली खंडपाना हर्ष. पामी थकी सर्वने भोजन देवामाटे महा बीहामणां स्मशांनमां जई कोईनो तत्कालनो मुकेलो मरण पामेलो बालक लइ तेने नवरावीने ऊजे. णी नगरीमा कोई श्रीमंतने घेरगई तिहाँ जेहनो अनेक व्यापारे व्यग्रचित थयलोछे एवो घरनो धणी आसनपर बेठेलो दीठो तेहनी पासेजई दीन थई कहेवालागी जे अहोशेठ हुं दरिद्री ब्राह्मणनी स्त्रिछु, अनाथ छु अशरण छ तारी पासे आ मारा बाळकने पालवासारु धन मांगवा आवी छ एम वारंवार तेने कहेवा लागी अने ते व्यापारीनो चित व्यग्र हतो, माटे सेवकने कह्यु ए रांडने घरथी बाहेर काढो तेथी ते सेवके तेने घरथी बाहेर काढवामांडी तेवारे ते कपट करीने पृथ्वि उपरपडी घणो आक्रंद करती उठी अने रोतीथकी मोटे सादे पोकार करवा लागी अरे लोको जुओ आ दुष्ट व्यापारीएं धनना गर्दै आंघलो थइने हुं अनाथ निराधारनो पुत्र मार्यो मने आशा हती जे आ पुत्र मोटो थशे पछी हुंमारासर्व मनोरथ संपूर्ण करीश ते मारी आशा रुपणीवेल आ पापी शेटें जंगली हाथीनी परे मूलथी छेदी नांखी एवीरीते विलाप करती केस छुटा मुकी छाती कुटती For Private and Personal Use Only

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