Book Title: Dhurtakhyan
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Page 51
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धुर्ताख्यान. विटाणी तथा अग्नीएं बाली जो हनुमंतनो पूछडं मोटुं हतु तो उंदरनु पूंछडं मोटु केम न होय ? तथा पुराणमांहे सांभल्युंछे के गंधारीकाबर राजा अरण्यमां मनुष्यपणो मुकी कुरुप कुद्रुम थयो पूर्वे ते नधुष राजा हतो अने युद्ध करतां इंद्रने जित्यो त्यारे इंद्रने अपमान थयुं जाणी बृहस्पतिएं तेने श्राप दीधो तेथी जंगलमां अजगर थयो एटलामां राजथी भ्रष्ट थयेला पांचे पांडवो तिहां अरण्यमां आव्या तेमांथी एक भीम भमतो भमतो अजगर पासे गयो तेने अजगरे गल्यो ते वात सांभली युधिष्ठिर ते अजगरपासे गयो तेवारे अजगरे युधिष्ठिरने सात प्रश्न पुछ्या तेना उतर युधिष्ठिरे आप्या पछी ते अजगरे भीमने पाछो वमन कीधो अनेपोते पण अजगरपणुं मुकी पाछो नधुष राजा थयो जो ए वात खरी छे तो तुं गोह तथा आमृलतापणाने धारण करीने वलि पाछी स्त्रि सावास्ते न थाय? // 3 // प्रश्न-खंडपाना बोली, हे धूर्त राजाओ जो तमे सर्वे माहारं वचन प्रमाण करो तो हुं सर्वने भोजन आपुं अने कदाचित् हुं तमने मारी बुद्धिथी हरावीश तोपछी तमे जगतमा एक कोडीमात्र मुलना धशो. For Private and Personal Use Only

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