Book Title: Dhurtakhyan
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Page 50
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धुर्ताख्यान, राजा जे कसे ते हुं पोते सहन करीस पछी हुं गोहनु रुप धारण करी रात्रे नगरना उद्याने क्रीडा करती थकी रही प्रभातें विचार्यु जे रखे कोई गोह जाणीने मने मारी नाखे माटे आमृलतानो रुपधरी असोकनां झाडमां वलगी रही पछी न्यायवंत राजाएं पवने हराणा वस्त्रनी वात जाणीने पडहो वजडाव्यो जे अहो रजको जे जिहां गया होय ते तिहाथी पाछा पोताने घेर आवो तमो सर्वने अभय छे ते वात सांभली सर्व रजक घेर आव्या हुं पण आमृलतापणो मुकी मूल स्त्रीनुं रुप धारण करी घेर आवी पछे माहारो पीता नदीने कांठे ते वस्त्रोनी पोठ लेवा गयो तिहां वाघर सर्व अंगाले खाधा एवं जाणी वनमाहं वाघर जोवा सारंभमता अमता एक ऊंदरनुं पुछडं लाधु तेहना अनेक मोटा वाघर नीपजावी हरष सहीत माहारो पीता घेर आव्यो ए वात खरी छे के खोटी छे ? सस-ब्रह्मा विष्णु जेनो पारपाम्या नही एहवो मोटो ईश्वरनुं लिंग हतु तो ऊंदरनु पूंछड मोटुं केम न संभवे तथा हनुमंतनो पूंछडो सास्त्रमा घणो मोटो संभलाय छे कारणके जेथी आखी लंका For Private and Personal Use Only

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