Book Title: Dhurtakhyan
Author(s):
Publisher:
View full book text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धुर्ताख्यान. नवली कोईपण मूर्ख आ दुनियामां मळशे नही. एक दीवश अमे स्त्री भरतार बन्ने जणां एक पथारीमां सुताहता त्यां अमो बेऊ वच्चे एवी शरत थई के, पहलां बोले ते सुगंधी घीमांझबोली, तथा शाकर मेळवीने दश पोली जमाडे एवी शरतथी अमो बन्ने मौनपणे रहया एटलामां अमारा गरमां खातर पाडबाने चोर आव्या भीतमाखातर पाडी घरमां पेशी तेयोएं सघळागरेणांवस्त्र मोती सोनामोहोरो वीगेरे खुब माल लीधो चोरो चोरी जाय छे. तो पण मार शरतने खातर अमो बने मांथी. एके बोल्या नह त्यारे चोरो मारी स्त्रीनां आंग उपरथी दागीन कहाडवा लाग्या तेयारे स्त्री बोली उठी हे स्वाम आपणुं शपलं द्रव्य चोर चोरी गया ते शांभळतांज में ताळी दई कहयुं के बस तुं शरत हारी गई माटे आजे घी शाकरथी भरपुर पोळी तमें आपो एवी रीते चोरो तो शघळु द्रव्य चोरी गया अने तेथी लोकोमां पण शरमावं पडयुं अने मारुं नाम मोटो मुर्ख पाडयु. // इतिधूर्तआख्यानसमाप्तः // For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 55 56 57 58