Book Title: Dhurtakhyan
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Page 41
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धुर्ताख्यान. गुरुडे रोवानो कारण पुछयो पछे माताएं शर्व दाशपणानो वृत्तांत शंभलावीने कह्यु के बद्रीकाश्रमे अंध ताहरो पिता वशेछे ते अमृतना ठाम जाणे छे ते माटे तेने पुछ. एंबुं मातानुं वचन शांभली गरुड पिताने पाशेजह पगे लाग्यो. पिताएंस्पर्श पत्रने ओलख्यो. पछे गरुड कहेवालागो हे पीताजी हुं भुख्योछु शु खाउं ? तेवारे कस्यप ऋषीये कद्यु इहांपाशे एक मोटो पद्मशरोवर छे तेहां बारजोजनना शरीरवालो एक हाथी छे तथा तेटलोज मोटो एक कांचबो छे ते बेहु पोतपोतामां वढवाड करे छे तेमने जइने खाजे. भुख्यो रहीश नही. पछे गरुड त्यां जइ ते बेहुनो भक्ष करी पाछो फरता मार्गमां अनेक पक्षीनो निवाश एवो मोटो वट वृक्ष दीठो तेना नीचे ब्रह्माना विर्यथी उपना वालीखील्य नामे शाडात्रण क्रोड ऋषीयो तप तपेछे ते वृक्ष उपर बेठो पोताना शरीरने भारे कडकडतो वडांग्यो पछी गुरुडे जोयु रखे ऋषी चंपाइ जाये एम चिंतवी ते वडने चांचे उपाडीने आकाशने ढांकतो शर्व देव दानवने चांचे चमत्कार उपजावतो शमुंद्रना बेटविचे मुक्यो ते वटवृक्षे अलंकृत For Private and Personal Use Only

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